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Sunday, July 7, 2013

कर्मो से महान या कंगाल बनते हैं - भगवान् भाई


केन्द्रीय काराग्रह में कार्यक्रम

कर्मो से महान या कंगाल बनते हैं - भगवान्  भाई

ग्वालियर 9 जनवरी

यह काराग्रह नहीं बल्कि सुधार गृह है, इसमें आपको अपने सुधार लाने हेतु रखा गया है, शिक्षा देने हेतु नहीं , उक्त उदगार माउंट आबू से प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के मुख्यालय से पधारे हुए राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवान् भाई ने कहे। वे आज यहाँ केन्द्रीय काराग्रह में बंधित  कैदियों को कर्म गति और व्यवहार शुद्धि विषय  पर बोल रहे थे।

उन्होंने कहा कि कार्ग्रह के इस एकांत स्थान पर स्वयं को परिवर्तित करने के लिए सोचो, कि  मैं इस संसार में क्यों आया हूँ? मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है? मुझे परमात्मा ने किस उद्देश्य से भेज है? मैं यहाँ आकर क्या कर रहा हूँ? ऐसी बातों का चिंतन करने से संस्कार और यवहार परिवर्तन होगा। उन्होंने कहा कि  यह काराग्रह आपके जीवन में सुधार लाने हेतु तपोस्थल है।

 भगवान् भाई ने कहा, कि  बदला लेने के बजाय स्वयं को ही बदलने की प्रवृत्ति रखनी है। उन्होंने पुछा कि हम किसके बच्चे हैं? जिस परमात्मा के बच्चे हैं, वह तो शांति का सागर है, दयालु है, कृपालु है, क्षमा का सागर है . हम स्वयं को भूलने से ही ऐसी गलतियाँ कर बैठते हैं। उन्होंने कहा कि हम ऐसा कोई कर्म न करें , जिस कारण धर्म्राज्पुरी में हमें सर झुकाना पड़े, रोना पड़े।

उन्होंने कहा कि हमारी वृत्ति, दृष्टी, कृत्ति में जो अवगुण या बुराइयां बसी हैं, उन्हें दूर भागना है, ईर्ष्या करना झगड़ना-लड़ना, चोरी करना, लोभ, लालच यह तो हमारे दुश्मन हैं। जिसके अधीन होने से हमारे मान सम्मान को चोट पहुँचती है। उन्होंने कहा कि बुराइयां दूर करना तो आदर्श इन्सान की पहचान है, इन अवगुणों ने  और बुराइयों ने हमें कंगाल बनाया, इनसे दूर रहना है।

भगवान् भाई ने कहा कि, आज हमारे व्यवहार में आसुरिता  आनर का मूल कारण, हमारा अशुस\द्ध आहार, हमारा अशुद्ध व्यवहार और बुरा संग है। हमें परमात्मा ने यहाँ सभी बातों से मुक्त कर स्वयं में परिवर्तन लाने का अवसर दिया है, अब यहाँ बैठ खुद को टटोलना है, और अपनी इन्द्रियों को वश में कर स्वयं में सुधार लाना है। उन्होंने कहा कि इस काराग्रह रूपी तपोस्थली पर स्वयं में सुधार लाकर फिर समाज में जाना है।

भगवान् भाईने कर्मो की गुह्य गति का ज्ञान बताते हुयेर कहा कि हमें परमात्मा ने जो कर्मेन्द्रियाँ दी हैं, उनका दुरूपयोग नही करना है . हम लोभ , लालच में आकर इनका दुरूपयोग करते हैं, तो उसकी सज़ा दुःख , अशांति के रूप में हमें ही भोगनी पड़ती है। उन्होंने कहा कि स्वयं के संस्कार में परिवर्तन लाने का आधार है - सत्संग और प्रभु चिंतन। इसीसे हमारा मनोबल और आत्मबल बढ़ता है। ऐसा चिंतन कर अब अपने व्यवहार और संस्कारों में परिवर्तन करना है। आगे कहा कि परमात्मा ने हमें यह क्लार्मेंद्रियाँ दी हैं, इनका दुरूपयोग करने से अगले जन्म में यह इन्द्रियां अधूरे रूप में  होंगी।
हाथ चोरी करने के लिए और आँखें व्यर्थ देखने के लिए नही हैं।

भगवान् भाई ने कहा कि, जब तक हम स्वयं के बारे में, परमात्मा के बारे में, कर्मो के बारे में यथार्थ नहीं ,जाने  तब तक जीवन में स्थायी स\और सच्ची सुख शान्ति नहीं मिल सकती। वास्तव में, हम सभी आत्माएं हैं। परम पिता परमात्मा के बच्चे हैं। आपस मे भाई भाई हैं। आपसी भाई चारा रखने से ही संबंधों में विश्वास आएगा। उन्होंने कहा कि विकार ही मनुष्यात्मा के दुश्मन हैं। हमें उनसे मुक्त बन्ने की आवश्यकता है।

स्थानीय राजयोग ब्रह्माकुमारी सेवा केंद्र के बी के प्रहलाद भाई ने उदबोधन देते हुए कहा कि जब हम अपना मनोबल कमज़ोर करते हैं, तब हम स्वयं को आंतरिक रूप में अकेला महसूस करते हैं। उन्होंने कहा कि स्वयं का मनोबल मज़बूत रखो, स्वयं को असहाय, अकेले, थके हुए महसूस नहीं करो। आध्यात्मिक चिंतन के द्वारा व्यसनों के चिंतन से , कमज़ोर चिंतन से दूर रहा जा सकता है।

जेल अधीक्षक डी एस अलावा जी ने कहा कि मनुष्यात्मा जन्म से अपराधी नही होती, परन्तु  गलत संगत खानपान और दुर्गुणों के कारण अपराधी बन जाती है। जेल शिक्षक श्री भानुदास शर्मा जी ने भी अपना संबोधन देते हुए कैदी बंधुओं से , उनके आचरण में सुधार लाने की अपील की। कार्यक्रम में बी के नरेश भाई भी उपस्थित थे।


भगवान् भाई 8000 से भी अधिक कार्यक्रम जेल के कैदी भाइयों के लिए कर चुके हैं। और अनवरत उनकी यह यात्रा जारी है।

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