वर्तमान समय समस्याओं का युग है इस युग में अपने आप को तनाव से मुक्त रखने के
लिए सकारात्मक सोच की आवश्यकता है। बिसानी पाड़ा स्थित राजयोग केन्द्र में
तनाव मुक्ति पर आयोजित गोष्ठी को संबोधित करते हुए माउंट आबू से आए भगवान भाई
ने कहा कि 19वीं सदी तर्क की थी, 20 सदी प्रगति की रही तथा 21वी सदी तनावपूर्ण
रहेगी। तनावपूर्ण परिस्थितियों में स्वयं को तनाव से मुक्त रखने के लिए
सकारात्मक सोच की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि विपरित परिस्थितियों में हर
समस्या में, हर बात को सकारात्मक सोचने की कला जीवन को सुखी बनाती है।
नकारात्मक सोच अनेक बीमारियों एवं समस्याओं की जड़ है। वर्तमान परिवेश में सहन
शक्ति की आवश्यकता है। महान पुरूषों ने सहनशक्ति के आधार पर ही महानता प्राप्त
की है। गीता का उदाहरण देते हुए कहा कि जीवन में हर घटना कल्याणकारी है, जो
हुआ वह अच्छा हुआ, जो होगा वह भी अच्छा होगा। जो व्यक्ति दूसरो के बारे में
सोचता है, दूसरो को देखता है वह कभी भी सुखी नहीं रह सकता। कोई हमारे साथ गलत
व्यवहार करता है तो इसका मतलब हमने भी उसके साथ गलत व्यवहार किया होगा।
आध्यात्मिक सत्संग को सकारात्मक सोच का केन्द्र बताते हुए कहा कि सत्संग के
माध्यम से ही हम सकारात्मक सोच अपना सकते है। ब्रह्माकुमारी रेखा ने राजयोग का
महत्व बताते हुए कहा कि राजयोग द्वारा हम अपनी इंद्रियों पर संयम रखकर तनाव
मुक्त रह सकते है। राजयोग की विधि बताते हुए कहा कि स्वयं को आत्मा निश्चय कर
चांद, सूर्
वर्तमान समय समस्याओं का युग है इस युग में अपने आप को तनाव से मुक्त रखने के
लिए सकारात्मक सोच की आवश्यकता है। बिसानी पाड़ा स्थित राजयोग केन्द्र में
तनाव मुक्ति पर आयोजित गोष्ठी को संबोधित करते हुए माउंट आबू से आए भगवान भाई
ने कहा कि 19वीं सदी तर्क की थी, 20 सदी प्रगति की रही तथा 21वी सदी तनावपूर्ण
रहेगी। तनावपूर्ण परिस्थितियों में स्वयं को तनाव से मुक्त रखने के लिए
सकारात्मक सोच की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि विपरित परिस्थितियों में हर
समस्या में, हर बात को सकारात्मक सोचने की कला जीवन को सुखी बनाती है।
नकारात्मक सोच अनेक बीमारियों एवं समस्याओं की जड़ है। वर्तमान परिवेश में सहन
शक्ति की आवश्यकता है। महान पुरूषों ने सहनशक्ति के आधार पर ही महानता प्राप्त
की है। गीता का उदाहरण देते हुए कहा कि जीवन में हर घटना कल्याणकारी है, जो
हुआ वह अच्छा हुआ, जो होगा वह भी अच्छा होगा। जो व्यक्ति दूसरो के बारे में
सोचता है, दूसरो को देखता है वह कभी भी सुखी नहीं रह सकता। कोई हमारे साथ गलत
व्यवहार करता है तो इसका मतलब हमने भी उसके साथ गलत व्यवहार किया होगा।
आध्यात्मिक सत्संग को सकारात्मक सोच का केन्द्र बताते हुए कहा कि सत्संग के
माध्यम से ही हम सकारात्मक सोच अपना सकते है। ब्रह्माकुमारी रेखा ने राजयोग का
महत्व बताते हुए कहा कि राजयोग द्वारा हम अपनी इंद्रियों पर संयम रखकर तनाव
मुक्त रह सकते है। राजयोग की विधि बताते हुए कहा कि स्वयं को आत्मा निश्चय कर
चांद, सूर्
राजयोग के नियमित अभ्यास से ही मन की स्थिरता संभव है। यह बात प्रजापिता
ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू से आए भगवान भाई ने महावीर नगर
स्थित केंद्र में 'राजयोग का जीवन में महत्व' विषय पर कहे। उन्होंने कहा कि
जीवन में शांति, स्थिरता और खुशी के लिए जीवन में स्थिरता, स्वस्थ जीवन शैली,
सकारात्मक चिंतन, साक्षी दृष्टा और आत्मा निर्भयता की आवश्यकता है। काम,
क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार इन विकारों पर विजय प्राप्त करने की शक्ति राजयोग से
प्राप्त होती है। राजयोग हमें सकारात्मक चिंतन करने की कला सिखाता है।
उन्होंने कहा कि राजयोग से हम अपने शरीर को वश में कर सकते हैं। उन्होंने कहा
कि सकारात्मक सोच से ही शरीर की बीमारियों से मुक्ति पाना संभव है। स्थानीय
ब्रह्मकुमारी राजयोग सेवा केंद्र की बबीता बहन ने कहा कि राजयोग के निरंतर
अभ्यास से हम अपने कर्मेंद्रियों को संयमित कर सकते हैं।
-- क्रोधमुक्त जीवन विषय पर मुख्य वक्ता तौर बोल रहे थे। प्रजापिता
ब्रह्मïकुमारी ईश्वरीय विवि द्वारा 7 दिवसीय योग शिविर जारी है। उन्होंने कहा
कि राजयोग शिविर राजयोग स्वयं का परमात्मा से संबंध का नाम है। मन और बुद्धि
का आध्यात्मिक अनुशासन राजयोग है। यह विचारों के आवेग व संवेग का
मार्गान्तरीकरण कर उनके शुद्धिकरण की प्रक्रिया है। राजयोग व्यक्ति के संस्कार
शुुद्ध बनाने और चरित्रिक उत्थान द्वारा शारीरिक एवं आध्यात्मिक स्वास्थ्य लाभ
का नाम है। इसके साथ ही यह जीवन की विपरीत एवं व्यस्त परिस्थितियों में संयम
बनाए रखने की कला है। आध्यात्मिकता का अर्थ स्वयं को जानना है। प्र्रेम छोटा
सा शब्द है, पर जीवन में इसका बड़ा महत्व है। साधन बढ़ रहे हैं, लेकिन जीवन का
मूल्य कम होता जा रहा है। उन्होंंने कहा कि सभी को भगवान से प्रेम है।
परमात्मा सूर्य के समान है। उनसे निकलने वाली प्रेम रूपी किरणें सभी पर समान
रूप से पड़ती है। उन्होंने कहा कि शांति हमारे अंदर है, इसे जानने के साथ ही
महसूस करने की भी जरूरत है। भगवान कभी किसी को दुख नहीं देता बल्कि रास्ता
दिखता हैे। काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार के त्याग से ही भगवान के दर्शन
होते हैं। राजयोग के अभ्यास से उनके जीवन में हुए सकारात्मक परिवर्तन को साझा
किए।
उन्होंने कहा कि सहज राजयोग ही आत्मा-परमात्मा के मंगल मिलन का एक सरल उपाय
है। इसी राजयोग ज्ञान एवं ध्यान के नियमित अभ्यास से मनुष्य अपने आंतरिक
ज्ञान, आनंद एवं सुख शांति को उजागर कर सकता है। इससे वह संसारी जीवन में दुख,
कष्ट व समस्याओं के समय अपने आत्मबल एवं आत्मविश्वास के आधार पर संतुलन कायम
रख सकता है और जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता है।
उन्होंने कहा कि मानव जीवन की सार्थकता व सफलता के लिए सत्संग आवश्यक है।
सत्संग को पाकर जीवन मंगलमय बन जाता है, जबकि कुसंगति से जीवन नरकमय हो जाता
है। मनुष्य को सदासत्संग अच्छे संस्कारों से मिलता है। संस्कार भी वही सार्थक
होते हैं, जो महापुरुषों के दर्शन कराएं। संतों की संगति से ही जन्म-मरण के
कष्टों से मुक्ति मिलती है। परोपकारी भावना से कार्य करना चाहिए, इसका फल
स्वयं भगवान देते हैं।
उन्होंने कहा कि क्रोध से तनाव और तनाव से अनेक बीमारियां पैदा होती हैं।
क्रोध के कारण ही मन की एकाग्रता खत्म होती है। इस कारण मन अशांत बन जाता है।
उन्होंने क्रोध को अग्नि बताते हुए कहा कि इस अग्नि में स्वयं भी जलते हैं और
दूसरों को भी जला क्रोध विवेक को नष्ट करता है। क्रोध का प्रारंभ मूर्खता से
आरंभ होकर पश्चाताप में जाकर समाप्त होता है। क्या हो उपाय
उन्होंने क्रोध पर काबू पाने का उपाय बताते हुए कहा कि राजयोग के अभ्यास से
क्रोध पर काबू पाया जा सकता है। इसके लिए निश्चय कर परमपिता परमात्मा को मन
बुद्धि के द्वारा याद करना, उनके गुणगान करना ही राजयोग है।
लिए सकारात्मक सोच की आवश्यकता है। बिसानी पाड़ा स्थित राजयोग केन्द्र में
तनाव मुक्ति पर आयोजित गोष्ठी को संबोधित करते हुए माउंट आबू से आए भगवान भाई
ने कहा कि 19वीं सदी तर्क की थी, 20 सदी प्रगति की रही तथा 21वी सदी तनावपूर्ण
रहेगी। तनावपूर्ण परिस्थितियों में स्वयं को तनाव से मुक्त रखने के लिए
सकारात्मक सोच की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि विपरित परिस्थितियों में हर
समस्या में, हर बात को सकारात्मक सोचने की कला जीवन को सुखी बनाती है।
नकारात्मक सोच अनेक बीमारियों एवं समस्याओं की जड़ है। वर्तमान परिवेश में सहन
शक्ति की आवश्यकता है। महान पुरूषों ने सहनशक्ति के आधार पर ही महानता प्राप्त
की है। गीता का उदाहरण देते हुए कहा कि जीवन में हर घटना कल्याणकारी है, जो
हुआ वह अच्छा हुआ, जो होगा वह भी अच्छा होगा। जो व्यक्ति दूसरो के बारे में
सोचता है, दूसरो को देखता है वह कभी भी सुखी नहीं रह सकता। कोई हमारे साथ गलत
व्यवहार करता है तो इसका मतलब हमने भी उसके साथ गलत व्यवहार किया होगा।
आध्यात्मिक सत्संग को सकारात्मक सोच का केन्द्र बताते हुए कहा कि सत्संग के
माध्यम से ही हम सकारात्मक सोच अपना सकते है। ब्रह्माकुमारी रेखा ने राजयोग का
महत्व बताते हुए कहा कि राजयोग द्वारा हम अपनी इंद्रियों पर संयम रखकर तनाव
मुक्त रह सकते है। राजयोग की विधि बताते हुए कहा कि स्वयं को आत्मा निश्चय कर
चांद, सूर्
वर्तमान समय समस्याओं का युग है इस युग में अपने आप को तनाव से मुक्त रखने के
लिए सकारात्मक सोच की आवश्यकता है। बिसानी पाड़ा स्थित राजयोग केन्द्र में
तनाव मुक्ति पर आयोजित गोष्ठी को संबोधित करते हुए माउंट आबू से आए भगवान भाई
ने कहा कि 19वीं सदी तर्क की थी, 20 सदी प्रगति की रही तथा 21वी सदी तनावपूर्ण
रहेगी। तनावपूर्ण परिस्थितियों में स्वयं को तनाव से मुक्त रखने के लिए
सकारात्मक सोच की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि विपरित परिस्थितियों में हर
समस्या में, हर बात को सकारात्मक सोचने की कला जीवन को सुखी बनाती है।
नकारात्मक सोच अनेक बीमारियों एवं समस्याओं की जड़ है। वर्तमान परिवेश में सहन
शक्ति की आवश्यकता है। महान पुरूषों ने सहनशक्ति के आधार पर ही महानता प्राप्त
की है। गीता का उदाहरण देते हुए कहा कि जीवन में हर घटना कल्याणकारी है, जो
हुआ वह अच्छा हुआ, जो होगा वह भी अच्छा होगा। जो व्यक्ति दूसरो के बारे में
सोचता है, दूसरो को देखता है वह कभी भी सुखी नहीं रह सकता। कोई हमारे साथ गलत
व्यवहार करता है तो इसका मतलब हमने भी उसके साथ गलत व्यवहार किया होगा।
आध्यात्मिक सत्संग को सकारात्मक सोच का केन्द्र बताते हुए कहा कि सत्संग के
माध्यम से ही हम सकारात्मक सोच अपना सकते है। ब्रह्माकुमारी रेखा ने राजयोग का
महत्व बताते हुए कहा कि राजयोग द्वारा हम अपनी इंद्रियों पर संयम रखकर तनाव
मुक्त रह सकते है। राजयोग की विधि बताते हुए कहा कि स्वयं को आत्मा निश्चय कर
चांद, सूर्
राजयोग के नियमित अभ्यास से ही मन की स्थिरता संभव है। यह बात प्रजापिता
ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू से आए भगवान भाई ने महावीर नगर
स्थित केंद्र में 'राजयोग का जीवन में महत्व' विषय पर कहे। उन्होंने कहा कि
जीवन में शांति, स्थिरता और खुशी के लिए जीवन में स्थिरता, स्वस्थ जीवन शैली,
सकारात्मक चिंतन, साक्षी दृष्टा और आत्मा निर्भयता की आवश्यकता है। काम,
क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार इन विकारों पर विजय प्राप्त करने की शक्ति राजयोग से
प्राप्त होती है। राजयोग हमें सकारात्मक चिंतन करने की कला सिखाता है।
उन्होंने कहा कि राजयोग से हम अपने शरीर को वश में कर सकते हैं। उन्होंने कहा
कि सकारात्मक सोच से ही शरीर की बीमारियों से मुक्ति पाना संभव है। स्थानीय
ब्रह्मकुमारी राजयोग सेवा केंद्र की बबीता बहन ने कहा कि राजयोग के निरंतर
अभ्यास से हम अपने कर्मेंद्रियों को संयमित कर सकते हैं।
-- क्रोधमुक्त जीवन विषय पर मुख्य वक्ता तौर बोल रहे थे। प्रजापिता
ब्रह्मïकुमारी ईश्वरीय विवि द्वारा 7 दिवसीय योग शिविर जारी है। उन्होंने कहा
कि राजयोग शिविर राजयोग स्वयं का परमात्मा से संबंध का नाम है। मन और बुद्धि
का आध्यात्मिक अनुशासन राजयोग है। यह विचारों के आवेग व संवेग का
मार्गान्तरीकरण कर उनके शुद्धिकरण की प्रक्रिया है। राजयोग व्यक्ति के संस्कार
शुुद्ध बनाने और चरित्रिक उत्थान द्वारा शारीरिक एवं आध्यात्मिक स्वास्थ्य लाभ
का नाम है। इसके साथ ही यह जीवन की विपरीत एवं व्यस्त परिस्थितियों में संयम
बनाए रखने की कला है। आध्यात्मिकता का अर्थ स्वयं को जानना है। प्र्रेम छोटा
सा शब्द है, पर जीवन में इसका बड़ा महत्व है। साधन बढ़ रहे हैं, लेकिन जीवन का
मूल्य कम होता जा रहा है। उन्होंंने कहा कि सभी को भगवान से प्रेम है।
परमात्मा सूर्य के समान है। उनसे निकलने वाली प्रेम रूपी किरणें सभी पर समान
रूप से पड़ती है। उन्होंने कहा कि शांति हमारे अंदर है, इसे जानने के साथ ही
महसूस करने की भी जरूरत है। भगवान कभी किसी को दुख नहीं देता बल्कि रास्ता
दिखता हैे। काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार के त्याग से ही भगवान के दर्शन
होते हैं। राजयोग के अभ्यास से उनके जीवन में हुए सकारात्मक परिवर्तन को साझा
किए।
उन्होंने कहा कि सहज राजयोग ही आत्मा-परमात्मा के मंगल मिलन का एक सरल उपाय
है। इसी राजयोग ज्ञान एवं ध्यान के नियमित अभ्यास से मनुष्य अपने आंतरिक
ज्ञान, आनंद एवं सुख शांति को उजागर कर सकता है। इससे वह संसारी जीवन में दुख,
कष्ट व समस्याओं के समय अपने आत्मबल एवं आत्मविश्वास के आधार पर संतुलन कायम
रख सकता है और जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता है।
उन्होंने कहा कि मानव जीवन की सार्थकता व सफलता के लिए सत्संग आवश्यक है।
सत्संग को पाकर जीवन मंगलमय बन जाता है, जबकि कुसंगति से जीवन नरकमय हो जाता
है। मनुष्य को सदासत्संग अच्छे संस्कारों से मिलता है। संस्कार भी वही सार्थक
होते हैं, जो महापुरुषों के दर्शन कराएं। संतों की संगति से ही जन्म-मरण के
कष्टों से मुक्ति मिलती है। परोपकारी भावना से कार्य करना चाहिए, इसका फल
स्वयं भगवान देते हैं।
उन्होंने कहा कि क्रोध से तनाव और तनाव से अनेक बीमारियां पैदा होती हैं।
क्रोध के कारण ही मन की एकाग्रता खत्म होती है। इस कारण मन अशांत बन जाता है।
उन्होंने क्रोध को अग्नि बताते हुए कहा कि इस अग्नि में स्वयं भी जलते हैं और
दूसरों को भी जला क्रोध विवेक को नष्ट करता है। क्रोध का प्रारंभ मूर्खता से
आरंभ होकर पश्चाताप में जाकर समाप्त होता है। क्या हो उपाय
उन्होंने क्रोध पर काबू पाने का उपाय बताते हुए कहा कि राजयोग के अभ्यास से
क्रोध पर काबू पाया जा सकता है। इसके लिए निश्चय कर परमपिता परमात्मा को मन
बुद्धि के द्वारा याद करना, उनके गुणगान करना ही राजयोग है।
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