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Saturday, October 29, 2011

शिव सर्वआत्माओं के परमपिता हैं परमपिता परमात्मा शिव का यही परिचय यदि सर्व मनुष्यात्माओं को दिया जाए तो सभी सम्प्रदायों को एक सूत्र में बाँधा जा सकता है, क्योंकि परमात्मा शिव का स्मृतिचि- शिवलिंग के रूप में सर्वत्र सर्वधर्मावलंबियों द्वारा मान्य है। यद्यपि मुसलमान भाई मूर्ति पूजा नहीं करते हैं तथापिवे मक्का में संग-ए-असवद नामक पत्थर को आदर से चूमते हैं। क्योंकि उनका यह दृढ़ विश्वास है कि यह भगवान का भेजा हुआ है। अतः यदि उन्हें यह मालूम पड़ जाए कि खुदा अथवा भगवान शिव एक ही हैं तो दोनों धर्मों से भावनात्मक एकता हो सकती है। इसी प्रकार ओल्ड टेस्टामेंट में मूसा ने जेहोवा का वर्णन किया है। वह ज्योतिर्बिंदु परमात्मा का ही यादगार है। इस प्रकार विभिन्न धर्मों के बीच मैत्री भावना स्थापित हो सकती है। रामेश्वरम्‌ में राम के ईश्वर शिव, वृंदावन में श्रीकृष्ण के ईष्ट गोपेश्वर तथा एलीफेंटा में त्रिमूर्ति शिव के चित्रों से स्पष्ट है कि सर्वात्माओं के आराध्य परमपिता परमात्मा शिव ही हैं। शिवरात्रि का त्योहार सभी धर्मों का त्योहार है तथा सभी धर्मवालों के लिए भारतवर्ष तीर्थ है। यदि इस प्रकार का परिचय दिया जाता है तो विश्व का इतिहास ही कुछ और होता तथा साम्प्रदायिक दंगे, धार्मिक मतभेद, रंगभेद, जातिभेद इत्यादि नहीं होते। चहुँओर भ्रातृत्व की भावना होती। आज पुनः वही घड़ी है, वही दशा है, वही रात्रि है जब मानव समाज पतन की चरम सीमा तक पहुँच चुका है। ऐसे समय में कल्प की महानतम घटना तथा दिव्य संदेश सुनाते हुए हमें अति हर्ष हो रहा है कि कलियुग के अंत और सतयुग के आदि के इस संगमयुग पर ज्ञान-सागर, प्रेम वकरुणा के सागर, पतित-पावन, स्वयंभू परमात्मा शिव हम मनुष्यात्माओं की बुझी हुई ज्योति जगाने हेतु अवतरित हो चुके हैं। वे साकार प्रजापिता ब्रह्मा के माध्यम द्वारा सहज ज्ञान व सहज राजयोग की शिक्षा देकर विकारों के बंधन से मुक्त कर निर्विकारी पावन देव पद की प्राप्ति कराकर दैवी स्वराज्य की पुनः स्थापना करा रहे हैं।


शिव सर्वआत्माओं के परमपिता हैं परमपिता परमात्मा शिव का यही परिचय यदि सर्व मनुष्यात्माओं को दिया जाए तो सभी सम्प्रदायों को एक सूत्र में बाँधा जा सकता है, क्योंकि परमात्मा शिव का स्मृतिचि- शिवलिंग के रूप में सर्वत्र सर्वधर्मावलंबियों द्वारा मान्य है। यद्यपि मुसलमान भाई मूर्ति पूजा नहीं करते हैं तथापिवे मक्का में संग-ए-असवद नामक पत्थर को आदर से चूमते हैं। क्योंकि उनका यह दृढ़ विश्वास है कि यह भगवान का भेजा हुआ है। अतः यदि उन्हें यह मालूम पड़ जाए कि खुदा अथवा भगवान शिव एक ही हैं तो दोनों धर्मों से भावनात्मक एकता हो सकती है। इसी प्रकार ओल्ड टेस्टामेंट में मूसा ने जेहोवा का वर्णन किया है। वह ज्योतिर्बिंदु परमात्मा का ही यादगार है। इस प्रकार विभिन्न धर्मों के बीच मैत्री भावना स्थापित हो सकती है। रामेश्वरम्‌ में राम के ईश्वर शिव, वृंदावन में श्रीकृष्ण के ईष्ट गोपेश्वर तथा एलीफेंटा में त्रिमूर्ति शिव के चित्रों से स्पष्ट है कि सर्वात्माओं के आराध्य परमपिता परमात्मा शिव ही हैं। शिवरात्रि का त्योहार सभी धर्मों का त्योहार है तथा सभी धर्मवालों के लिए भारतवर्ष तीर्थ है। यदि इस प्रकार का परिचय दिया जाता है तो विश्व का इतिहास ही कुछ और होता तथा साम्प्रदायिक दंगे, धार्मिक मतभेद, रंगभेद, जातिभेद इत्यादि नहीं होते। चहुँओर भ्रातृत्व की भावना होती। आज पुनः वही घड़ी है, वही दशा है, वही रात्रि है जब मानव समाज पतन की चरम सीमा तक पहुँच चुका है। ऐसे समय में कल्प की महानतम घटना तथा दिव्य संदेश सुनाते हुए हमें अति हर्ष हो रहा है कि कलियुग के अंत और सतयुग के आदि के इस संगमयुग पर ज्ञान-सागर, प्रेम वकरुणा के सागर, पतित-पावन, स्वयंभू परमात्मा शिव हम मनुष्यात्माओं की बुझी हुई ज्योति जगाने हेतु अवतरित हो चुके हैं। वे साकार प्रजापिता ब्रह्मा के माध्यम द्वारा सहज ज्ञान व सहज राजयोग की शिक्षा देकर विकारों के बंधन से मुक्त कर निर्विकारी पावन देव पद की प्राप्ति कराकर दैवी स्वराज्य की पुनः स्थापना करा रहे हैं।


Monday, October 17, 2011

नैतिक मूल्यों के बिना शिक्


नैतिक मूल्यों के बिना शिक्षा अधूरी है। नीतिशास्त्र की जानकारी न केवल विशेषज्ञों को होनी चाहिए, बल्कि विद्यार्थियों को भी इसका ज्ञान होना चाहिए।

भौतिक शिक्षा के साथ नैतिक शिक्षा से ही बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सकता है। इंदौर। भौतिक शिक्षा के साथ नैतिक शिक्षा से ही बच्चों का सर्वांगीण

भौतिक शिक्षा के साथ नैतिक शिक्षा से ही बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सकता है। इंदौर। भौतिक शिक्षा के साथ नैतिक शिक्षा से ही बच्चों का सर्वांगीण

इंदौर। भौतिक शिक्षा के साथ नैतिक शिक्षा से ही बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सकता है।
इंदौर। भौतिक शिक्षा के साथ नैतिक शिक्षा से ही बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सकता है। इसके बगैर मनुष्य का काम नहीं चल सकता। ये विचार प्रजापिता ब्रह्माकुमारी विवि माउंट आबू के भगवान भाई ने व्यक्त किए। वे उमियाधाम पाटीदार कन्या छात्रावास में विद्यार्थियों को नैतिक शिक्षा का महत्व बता रहे थे। उन्होंने कहा कि नैतिक मूल्यों की कमी से ही समस्याएं बढ़ रही है। ज्ञान की व्याख्या में उन्होंने कहा कि जो शिक्षा विद्यार्थियों को अंधकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर, बंधनों से मुक्ति की ओर ले जाए वही सच्ची शिक्षा है। समाज अमूर्त है, वह प्रेम, सद्भावना, भाईचारा, नैतिकता, मानवीय मूल्यों से ही संचालित होता है। प्रगतिशील एवं श्रेष्ठ समाज इन्हीं मूल्यों से परिभाषित होता है। उन्होंने शिक्षा को ऐसा बीज बताया, जिससे जीवन फलदार वृक्ष बन जाता है। ओमशांति भवन के राजयोगी प्रकाश भाई ने कहा कि कुसंग व फैशन से युवा भटक रहा है, इससे बच्चों की दूरी आवश्यक है। प्राचार्य बबीता हार्डिया ने बताया कि मूल शिक्षा से ही व्यक्ति महान बनता है, सद्गुणों से ही व्यक्तित्व निखरता

नैतिक शिक्षा से बनेगा सौहार्दपूर्ण समाज


कटनी। आज हम विकसित देशों की श्रेणी में खड़े होने का भरपूर प्रयास कर रहे है। इसके साथ सफलता भी मिल रही है। परंतु समाज में फैल रही दुर्भावना और हिंसा चिंता का सबब बनती जा रही है। इसके लिए जरूरी है कि व्यक्तिगत स्तर पर सकारात्मक आंतरिक चेतना के विकास को महत्व दिया जाए। उक्त उद्गार प्रजापति ब्रम्हाकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के पूरे भारत में 5 हजार स्कूल में नैतिक शिक्षा का अलख जगाकर इंडिया बुक आॅफ रिकार्ड में अपना नाम दर्ज कराने वाले राजयोगी डायमंड इंग्लिश उच्च माध्यमिक विद्यालय माधव नगर के विद्यार्थियों को जीवन में नैतिक शिक्षा का महत्व विषय पर संबोधित करते हुए राजयोगी भगवानभाई ने कहा कि आज समाज, देश व विश्व की क्या स्थिति है इसके बारे में हम अच्छी तरह जानते है कि केवल भौतिक विकास से ही हमारा सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता। नैतिक विकास से समाज और परिवार में मूल्य विकसित होते है। इससे ही पारिवारिक सामाजिक और वैश्विक स्तर पर संपूर्ण रूप से विकसित हो सकेंगे। उन्होंने आगे बताया कि आज जितना हम विकास पर ध्यान रखेंगे अपने आंतरिक शक्तियों को जागृत करेंगे उतना युवाओं सशक्तिकरण आएगा। युवाओं को अपने शक्तियां रचनात्मक कार्य में लगाये। उन्होंने कहा कि यदि अपराधमुक्त समाज चाहित तो मानवीय, नैतिक शिक्षा द्वारा संस्कारित युवाओं की निर्मित करे। इसके लिए युवाओं को आगे आना चाहिए। उन्होंने युवाओं को आंतरिक रूप से सशक्त होकर लोगों की सेवा करने के लिए आगे जाने का आव्हान किया।

नैतिक शिक्षा से बनेगा सौहार्दपूर्ण समाज

Monday, October 17th 2011
कटनी। आज हम विकसित देशों की श्रेणी में खड़े होने का भरपूर प्रयास कर रहे है। इसके साथ सफलता भी मिल रही है। परंतु समाज में फैल रही दुर्भावना और हिंसा चिंता का सबब बनती जा रही है। इसके लिए जरूरी है कि व्यक्तिगत स्तर पर सकारात्मक आंतरिक चेतना के विकास को महत्व दिया जाए। उक्त उद्गार प्रजापति ब्रम्हाकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के पूरे भारत में 5 हजार स्कूल में नैतिक शिक्षा का अलख जगाकर इंडिया बुक आॅफ रिकार्ड में अपना नाम दर्ज कराने वाले राजयोगी डायमंड इंग्लिश उच्च माध्यमिक विद्यालय माधव नगर के विद्यार्थियों को जीवन में नैतिक शिक्षा का महत्व विषय पर संबोधित करते हुए राजयोगी भगवानभाई ने कहा कि आज समाज, देश व विश्व की क्या स्थिति है इसके बारे में हम अच्छी तरह जानते है कि केवल भौतिक विकास से ही हमारा सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता। नैतिक विकास से समाज और परिवार में मूल्य विकसित होते है। इससे ही पारिवारिक सामाजिक और वैश्विक स्तर पर संपूर्ण रूप से विकसित हो सकेंगे। उन्होंने आगे बताया कि आज जितना हम विकास पर ध्यान रखेंगे अपने आंतरिक शक्तियों को जागृत करेंगे उतना युवाओं सशक्तिकरण आएगा। युवाओं को अपने शक्तियां रचनात्मक कार्य में लगाये। उन्होंने कहा कि यदि अपराधमुक्त समाज चाहित तो मानवीय, नैतिक शिक्षा द्वारा संस्कारित युवाओं की निर्मित करे। इसके लिए युवाओं को आगे आना चाहिए। उन्होंने युवाओं को आंतरिक रूप से सशक्त होकर लोगों की सेवा करने के लिए आगे जाने का आव्हान किया।

नैतिक मूल्य

नैतिक मूल्य कम होते जा रहे हैं। ऐसे में बालिकाओं को नैतिक मूल्यों की शिक्षा देकर परिवार व्यवस्था को पुष्ट बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि बालिका शिक्षा देने वाली नारी में शुद्धता के गुण के साथ ही सहनशीलता व लगनशीलता भी होनी चाहिए। उसको हाथों के साथ - साथ हृदय और दिमाग से काम करना आना चाहिए। वह बालिका शिक्षा कार्यशाला के शुभारंभ अवसर पर बोल रहे थे।
 सरस्वती विद्या मंदिर में विद्या भारती अखिल भारतीय संस्थान द्वारा आयोजित सकारात्मक सोच और दृष्टिकोण विकसित करें। इसके लिए कार्यकर्ता के अंदर सात गुण संयमशीलता, लक्ष्य का ज्ञान, विचारों के सम्प्रेषण की क्षमता, संगठन की मानसिकता, राष्ट्र के लिए समर्पण की भावना, सेवा और सहयोग की भावना होना बेहद जरूरी हैं।  उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति का आधार धर्म रहा है और धर्म का तात्पर्य है समाज को धारण करना। इसलिए महिलाओं को पाश्चात्य संस्कृति से दूरी बनाते हुए धर्म आधारित कार्य करने चाहिए।

Sunday, October 2, 2011

परमात्‍मा एक है, वह निराकार एवं अनादि है। वे विश्‍व की सर्वशक्तिमान सत्‍ता है और ज्ञान के सागर है।”

परमात्‍मा एक है, वह निराकार एवं अनादि है। वे विश्‍व की सर्वशक्तिमान सत्‍ता है और ज्ञान के सागर है।”

इस मूलभूत सिद्धांत का पालन करते हुए प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्‍वरीय विश्‍व विद्यालय इन दिनों विश्‍व भर में धर्म को नए मानदंडों पर परिभाषित कर रहा है। जीवन की दौड़-धूप से थक चुके मनुष्‍य आज शांति की तलाश में इस संस्‍था की ओर प्रवृत्‍त हो रहे हैं।

यह कोई नया धर्म नहीं बल्कि विश्‍व में व्‍याप्‍त धर्मों के सार को आत्‍मसात कर उन्‍हें मानव कल्‍याण की दिशा में उपयोग करने वाली एक संस्‍था है। जिसकी विश्‍व के 72 देशों में 4,500 से अधिक शाखाएँ हैं। इन शाखाओं में 5 लाख विद्यार्थी प्रतिदिन नैतिक और आध्‍यात्मिक शिक्षा ग्रहण करते हैं।

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इस संस्‍था की स्‍थापना दादा लेखराज ने की, जिन्‍हें आज हम प्रजापिता ब्रह्मा के नाम से जानते हैं।

दादा लेखराज अविभाजित भारत में हीरों के व्‍यापारी थे। वे बाल्‍यकाल से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। 60 वर्ष की आयु में उन्‍हें परमात्‍मा के सत्‍यस्‍वरूप को पहचानने की दिव्‍य अनुभूति हुई। उन्‍हें ईश्‍वर की सर्वोच्‍च सत्‍ता के प्रति खिंचाव महसूस हुआ। इसी काल में उन्‍हें ज्‍योति स्‍वरूप निराकार परमपिता शिव का साक्षात्‍कार हुआ। इसके बाद धीरे-धीरे उनका मन मानव कल्‍याण की ओर प्रवृत्‍त होने लगा।

उन्‍हें सांसारिक बंधनों से मुक्‍त होने और परमात्‍मा का मानवरूपी माध्‍यम बनने का निर्देश प्राप्‍त हुआ। उसी की प्रेरणा के फलस्‍वरूप सन् 1936 में उन्‍होंने इस विराट संगठन की छोटी-सी बुनियाद रखी। सन् 1937 में आध्‍यात्मिक ज्ञान और राजयोग की शिक्षा अनेकों तक पहुँचाने के लिए इसने एक संस्‍था का रूप धारण किया।

इस संस्‍था की स्‍थापना के लिए दादा लेखराज ने अपना विशाल कारोबार कलकत्‍ता में अपने साझेदार को सौंप दिया। फिर वे अपने जन्‍मस्‍थान हैदराबाद सिंध (वर्तमान पाकिस्‍तान) में लौट आए। यहाँ पर उन्‍होंने अपनी सारी चल-अचल संपत्ति इस संस्‍था के नाम कर दी। प्रारंभ में इस संस्‍था में केवल महिलाएँ ही थी।

बाद में दादा लेखराज को ‘प्रजापिता ब्रह्मा’ नाम दिया गया। जो लोग आध्‍या‍त्मिक शांति को पाने के लिए ‘प्रजापिता ब्रह्मा’ द्वारा उच्‍चारित सिद्धांतो पर चले, वे ब्रह्मकुमार और ब्रह्मकुमारी कहलाए तथा इस शैक्षणिक संस्‍था को ‘प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्‍वरीय विश्‍व विद्यालय’ नाम दिया गया।

इस विश्‍वविद्यालय की शिक्षाओं (उपाधियों) को वैश्विक स्‍वीकृति और अंतर्राष्‍ट्रीय मान्‍यता प्राप्‍त हुई है।

बदला लेने की बजाय स्वयं को बदलो: भगवानभाई

बदला लेने की बजाय स्वयं को बदलो: भगवानभाई

बालोतरा & प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की शाखा बालोतरा की ओर से शुक्रवार को बालोतरा उप कारागृह में संस्कार परिवर्तन एवं व्यवहार शुद्धि पर व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। इस अवसर पर माउंट आबू के राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवान भाई ने कहा कि कर्मों की गति बड़ी निराली है। कर्मों के आधार पर ही यह संसार चलता है। कर्म से ही मनुष्य महान बनता है। उन्होंने कहा कि मनुष्यों के कर्म से ही वात्या जैसे डाकू से वाल्मिकी जैसे रामायण लिखने वाले महान व्यक्ति समान माने जाते हैं। मनुष्य जीवन बड़ा ही अनमोल है, उसे ऐसे ही व्यर्थ कर्म कर व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। मनुष्यों की गलतियां ही उसे सही रूप में इंसान बना सकती है। केवल हमें उसकी गलतियों को स्वयं ही महसूस कर उसे बदलना है। भगवानभाई ने कहा कि यह कारागृह बंदियों के लिए तपस्थली है। इसमें एकांत में बैठकर स्वयं के बारे में सोचना है कि मै इस संसार में क्यों आया हूं, मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है, भगवान ने मुझे किस उद्देश्य से इस संसार में भेजा है और मैं यहां आकर क्या कर रहा हूं। उन्होंने बंदियों को इन बातों पर चिंतन कर बदला लेने की भावना की बजाय स्वयं को बदलने की पे्ररणा दी। स्थानीय ब्रह्माकुमारी राजयोग केंद्र की संचालिका बीके उमाबहन ने कहा कि हमें परमात्मा ने ये इंद्रियां दी है, उसका दुरुपयोग नहीं करना है। हम लोभ, लालच में आकर उसका दुरुपयोग करते हैं तो फिर अगले जन्म में ये इंद्रियां अधूरे रूप में होंगी। जेल अधीक्षक सुरेंद्रसिंह ने कहा कि जब हम अपना मनोबल कमजोर करते हैं तब हम अपने आप को आंतरिक रूप से अकेले महसूस करते हैं। मनोबल कमजोर होने से शांति, एकाग्रता भंग हो जाती है। कार्यक्रम में बीके भलाराम ने ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के बारे में जानकारी दी।

बदला लेने की बजाय स्वयं को बदलो: भगवानभाई

बदला लेने की बजाय स्वयं को बदलो: भगवानभाई

बदला लेने की बजाय स्वयं को बदलो: भगवानभाई

बालोतरा & प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की शाखा बालोतरा की ओर से शुक्रवार को बालोतरा उप कारागृह में संस्कार परिवर्तन एवं व्यवहार शुद्धि पर व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। इस अवसर पर माउंट आबू के राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवान भाई ने कहा कि कर्मों की गति बड़ी निराली है। कर्मों के आधार पर ही यह संसार चलता है। कर्म से ही मनुष्य महान बनता है। उन्होंने कहा कि मनुष्यों के कर्म से ही वात्या जैसे डाकू से वाल्मिकी जैसे रामायण लिखने वाले महान व्यक्ति समान माने जाते हैं। मनुष्य जीवन बड़ा ही अनमोल है, उसे ऐसे ही व्यर्थ कर्म कर व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। मनुष्यों की गलतियां ही उसे सही रूप में इंसान बना सकती है। केवल हमें उसकी गलतियों को स्वयं ही महसूस कर उसे बदलना है। भगवानभाई ने कहा कि यह कारागृह बंदियों के लिए तपस्थली है। इसमें एकांत में बैठकर स्वयं के बारे में सोचना है कि मै इस संसार में क्यों आया हूं, मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है, भगवान ने मुझे किस उद्देश्य से इस संसार में भेजा है और मैं यहां आकर क्या कर रहा हूं। उन्होंने बंदियों को इन बातों पर चिंतन कर बदला लेने की भावना की बजाय स्वयं को बदलने की पे्ररणा दी। स्थानीय ब्रह्माकुमारी राजयोग केंद्र की संचालिका बीके उमाबहन ने कहा कि हमें परमात्मा ने ये इंद्रियां दी है, उसका दुरुपयोग नहीं करना है। हम लोभ, लालच में आकर उसका दुरुपयोग करते हैं तो फिर अगले जन्म में ये इंद्रियां अधूरे रूप में होंगी। जेल अधीक्षक सुरेंद्रसिंह ने कहा कि जब हम अपना मनोबल कमजोर करते हैं तब हम अपने आप को आंतरिक रूप से अकेले महसूस करते हैं। मनोबल कमजोर होने से शांति, एकाग्रता भंग हो जाती है। कार्यक्रम में बीके भलाराम ने ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के बारे में जानकारी दी।

Saturday, October 1, 2011


 मेरे बाबा प्यारे बाबा मीठे बाबा दयालु बाबा कृपालु बाबा, जो मेरे माता पिता बन्धु सखा स्वामी खुदा दोस्त है ... बापटीचरगुरु , सतबाप सतटीचर सतगुरु सदगुरु , सुप्रीमबाप सुप्रीमटीचर सुप्रीमगुरु , परमबाप परमटीचर परमगुरु , रूहानीबाप रूहानीटीचर रूहानीगुरु , बेहदबाप बेहदटीचर बेहदगुरु , जगतबाप जगतगुरु जगतटीचर , सर्व का बाप सर्व का टीचर सर्व का गुरु , सत्यत्रिमूर्ती शिवबाप सत्यत्रिमूर्ति शिवटीचर सत्यत्रिमूर्ति शिवगुरु .... जो ज्ञान का सागर , पवित्रता का सागर , सुख का सागर , शांति का सागर , प्रेम का सागर , आनन्द का सागर , सर्व शक्तियों का सागर , सर्व गुणों का सागर , सर्व सम्पत्ति का सागर और सर्वज्ञ है....
 मैं आत्मा बाप को फोलो करने वाला , बाप की श्रीमत वाला , ब्रहस्पति की दशा वाला बाप का सहयोगी आज्ञाकारी पुरुशोत्तम बच्चा हूँ .... मनमनाभव में स्थित हूँ ....... श्रेष्ठ कर्म करने वाला बाप का सहयोगी हूँ .... हम भारत को पुरुशोत्तम बनाने वाले और सर्व को पुरुशोत्तम बनने का मंत्र देने वाला सतोप्रधान सतयुगी स्वर्गवासी पुरुशोत्तम है ..... हम सहज याद वाले , योगबल , बाप की याद वाले पवित्र पावन धर्मात्मा महात्मा देवात्मा पुण्यआत्मा कर्मयोगी है ...... याद का चार्ट रखने वाला बाप का निडर बच्चा हूँ .. अंधों की लाठी है ..... हम पूरा पढने वाले उंच पद वाले पावन देवी देवता है .....मैं आत्मा सर्व खजानों से भरपूर बन अपने चहरे से सेवा करने वाला सच्चा सेवाधारी हूँ ...... समय और संकल्प के खजानों को जमा करने वाला बेहद का एक्टर हूँ ....... मैं आत्मा बाप का नाम बाला करने वाला बेहद का एक्टर हूँ .......
 ज्ञान सूची ...... बाप की निंदा करना माना इंच पद माना राजा नहीं बन सकते ..... उंच पद है तो भूल की भी कड़ी सजा है .......

पूरने वा अवगुणो का अग्नि संस्कार .........६३ अवगुण ...... सितंबर ०१ ......... नाम मान शान का भिखारीपन .... मैं आत्मा नाम मान से परे हूँ और बाप का नाम बाला करने वाला हूँ .....

... मैं आत्मा परमधाम शान्तिधाम शिवालय में हूँ ..... शिवबाबा के साथ हूँ ..... समीप हूँ .... समान हूँ ..... सम्मुख हूँ ..... सेफ हूँ ..... बाप की छत्रछाया में हूँ .....अष्ट इष्ट महान सर्व श्रेष्ठ हूँ ...... मैं आत्मा मास्टर ज्ञानसूर्य हूँ .... मास्टर रचयिता हूँ ..... मास्टर महाकाल हूँ ..... मास्टर सर्व शक्तिवान हूँ ..... शिव शक्ति कमबाइनड हूँ ..... अकालतक्खनशीन हूँ ....अकालमूर्त हूँ ..... अचल अडोल अंगद एकरस एकटिक एकाग्र स्थिरियम और बीजरूप हूँ ........ मैं आत्मा जागती ज्योत अथक निन्द्राजित कर्मयोगी धर्मात्मा महात्मा देवात्मा पुण्य आत्मा हूँ ........ शक्तिसेना हूँ ..... शक्तिदल हूँ ...... शक्तिआर्मी सर्वशक्तिमान हूँ ........ रुहे गुलाब .... जलतीज्वाला .... ज्वालामुखी .... ज्वालास्वरूप .... ज्वालाअग्नि हूँ .... मैं आत्मा..... नाम मान शान का भिखारीपन .... .......... के संस्कार का अग्नि संस्कार कर रही हूँ .... जला रही हूँ ...... भस्म कर रही हूँ ...... नाम मान से परे हूँ और बाप का नाम बाला करने वाला हूँ .....
 ....मैं आत्मा महारथी हनुमान महावीर विजयी रूहानी सेनानी हूँ ...... मैं आत्मा अवगुणों का भस्म करने वाली देही अभिमानी, आत्म-अभिमानी, रूहानी अभिमानी, परमात्म अभिमानी, परमात्मा ज्ञानी, परमात्म भाग्यवान ...... सर्वगुण सम्पन्न ....... सोले काला सम्पूर्ण ..... सम्पूर्ण निर्विकारी ..... मर्यादा पुरुशोत्तम ....... डबल अहिंसक हूँ ...... डबल ताजधारी विश्व का मालिक हूँ ....... ताजधारी तख्तधारी तिलकधारी दिलतख़्तनशीन डबललाइट सूर्यवंशी शूरवीर महाबली महाबलवान, बाहु बलि पहेलवान ..... अष्ट शक्तिधारी ..... अष्ट भुजाधारी ..... अस्त्र शस्त्रधारी ..... शक्तिमूर्त ...... संहारनीमूर्त ..... अलंकारीमूर्त ...... कल्याणीमूर्त ...... श्रुन्गारीमूर्त ..... अनुभवीमूर्त और लाइफ में सदा प्रेक्टिकलमूर्त शिवमइ शक्ति हूँ ..........

शोर्ट होमवर्क ......... मैं आत्मासहज याद वाला अन्धो की लाठी , योगबल वाला सहयोगी , याद का चार्ट वाला पावन , बाप की श्रीमत वाला पुण्य आत्मा , भारत को पुरुशोत्तम बनाने वाला और सर्व को पुरुशोत्तम का मन्त्र देने वाला ब्रहस्पति की दशा वाला
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