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Sunday, July 7, 2013

सर्वशास्त्र शिरोमणि श्रीमद भगवद गीता का ज्ञान-दाता कौन है ?

सर्वशास्त्र शिरोमणि श्रीमद भगवद गीता का ज्ञान-दाता कौन है ?
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Vijayshankar Bk
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सर्वशास्त्र शिरोमणि श्रीमद भगवद गीता का ज्ञान-दाता कौन है ?

altसर्वशास्त्र शिरोमणि श्रीमद भगवद गीता का  ज्ञान-दाता कौन है यह कितने आश्चर्य  की बात है कि आज मनुष्यमात्र को यह भी नही मालूम की परमप्रिय परमात्मा शिव, जिन्हें " ज्ञान का सागर" तथा " कल्यानकारी  " माना जाता है, ने मनुष्यमात्र  के कल्याण के लिए जो ज्ञान दिया,उसका शास्त्र कौनसा है ? भारत में यद्यपि गीता ज्ञान को भगवान द्वारा दिया हुआ ज्ञान माना जाता है, तो आज भी सभी लोग यही मानते है गीता गया श्रीकृष्ण ने द्वापर युग के अंत में युद्ध के मैदान में, अर्जुन के रथ पर सवार होकर दिया थागीता-ज्ञान द्वापर युग में नही दिया गया बल्कि संगम युग में दिया गयाचित्र में यह अदभुत रहस्य चित्रित किया गया है कि वास्तव में गीता-ज्ञान निराकार, परमपिता परमात्मा शिव ने दिया था I और फिर गीता ज्ञान से सतयुग में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ I अत: गोपेश्वर परमपिता शिव श्रीकृष्ण के भी परलौकिक पिता है और गीता श्रीकृष्ण कि भी माता है I यह तो सभी जानते है कि गीता-ज्ञान देने का उद्देश पृथ्वी पर धर्म की पुन: स्थापना ही था I गीता में भगवान ने स्पष्ट कहा है कि  " मै अधर्म का विनाश तथा सत्यधर्म कि स्थापनार्थ  ही अवतरित होता हूँ I " अत: भगवान के  अवतरित होने तथा गीता ज्ञान देने के बाद तो धर्म की तथ देवी स्वभाव वाले सम्प्रदाय की पुन: स्थापना होनी चाहिए  परन्तु सभी जानते और मानते है की द्वापरयुग के बाद तो कलियुग ही शुरू हुआ जिसमे तो धर्म की अधिक हनी हुई और मनुष्यों का स्वभाव तमोप्रधान  अथवा आसुरी ही हुआ अत: जो लोग यह मानते है कि भगवान ने गीता ज्ञान द्वापरयुग के अंत में दिया, उन्हें सोचना चाहिए कि क्या गीता ज्ञान देने और भगवान के अवतरित होने का यही फल हुआ ? क्या गीता ज्ञान देने के बाद अधर्म का युग प्रारम्भ हुआ ? सपष्ट है कि उनका विवेक इस प्रश्न का uttar "न" शब्द से ही देगा Iभगवान के अवतरण होने के बाद कलियुग का प्रारंभ मानना तो भगवान की ग्लानी करना है क्योंकि भगवान का यथार्थ परिचय तो यह है कि वे अवतरित होकर पृथ्वी को असुरो से खाली करते है I और यहाँ धर्म को पूर्ण कलाओं सहित स्थापित करके तथा नर को श्रीनारायण मनुष्य की सदगति करते है I भगवान तो सृष्टि के " बीज रूप " है तथा स्वरुप है, अत: इसी धरती पर उनके आने के पश्चात् तो नए सृष्टि-वृक्ष, अर्थात नई सतयुगी सृष्टि का प्रादुर्भाव होता है I इसके अतिरिक्त, यदि द्वापर के अंत में गीता ज्ञान दिया गया होता तो कलियुग के तमोप्रधान काल में तो उसकी प्रारब्ध ही न भोगी जा सकती I आज भी आप सीखते है कि दिवाली के दिनों में श्री लक्ष्मी का आह्वान करने के लिए भारतवासी अपने घरो को साफसुथरा करते है तथा दीपक आदि जलाते है इससे स्पष्ट है कि अपवित्रता और अंधकार वाले स्थान पर तो देवता अपने चरण भी नहीं धरते I अत: श्रीकृष्ण का अर्थात लक्ष्मीपति श्रीनारायण का जन्म द्वापर में मानना महान भूल है I उनका जन्म तो सतयुग में हुआ जबकि सभी मित्र -सम्बन्धी तथा प्रकृति-पदार्थ सतोप्रधन एवं दिव्य थे और सभी का आत्मा-रूपी दीपक जगा हुआ था तथा सृष्टि में कोई भी म्लेच्छ तथा क्लेश न था Iअत: उपर्युक्त  से स्पष्ट है कि न तो श्रीकृष ही द्वापरयुग में हुए और न ही गीता-ज्ञान द्वापर युग के अंत में दिया गया बल्कि निराकार, पतितपावन परमात्मा शिव ने कलियुग के अंत और सतयुग के आदि के संगम समय, दर्म-ग्लानी के समय, बह्मा तन में दिव्य जन्म लिया और गीता -ज्ञान देकर सतयुग कि तथा श्रीकृष्ण ( श्रीनारायण) के स्वराज्य कि स्थापना कि श्रीकृष्ण के तो अपने माता-पिता, शिक्षक थे परन्तु गीता-ज्ञान सर्व आत्माओं के माता-पिता शिव ने   दिया I



गीता-ज्ञान हिंसक युद्ध करने के लिए नहीं दिया गया था


altगीता-ज्ञान हिंसक युद्ध करने के लिए नहीं दिया गया था आज परमात्मा के दिव्य जन्म और "रथ" के स्वरुप को न जानने के कारण लोगो कि यह मान्यता दृढ़   है कि  गीता-ज्ञान श्रीक्रष्ण ने अर्जुन के रथ एम् सवार होकर लड़ाई के मैदान में दिया आप ही सोचिये कि जबकि अहिंसा को धर्म का परम लक्षण माना गया है और जबकि धर्मात्मा अथवा महात्मा लोग नहो अहिंसा का पालन करते और अहिंसा की शिक्षा देते है तब क्या भगवान नव भला किसी हिंसक युद्ध के लिए किसी को शिक्षा दी होगी ? जबकि लौकिक पिता भी अपने बच्चो को यह शिक्षा देता है कि परस्पर न लड़ो तो क्या सृष्टि के परमपिता, शांति के सागर परमात्मा ने मनुष्यो को परस्पर लड़ाया होगा ! यह तो कदापि नहीं हो सकता भगवान तो देवी स्वभाव वाले संप्रदाय की तथा सर्वोत्तम धर्म की स्थापना  के लिए ही गीता-ज्ञान देते  है और उससे  तो मनुष्य राग, द्वेष, हिंसा और क्रोध इत्यादि पर विजय प्राप्त करते है I अत: वास्तविकता  यह है कि निराकार  परमपिता परमात्मा शिव ने इस सृष्टि रूपी कर्मक्षेत्र अथवा कुरुक्षेत्र  पर, प्रजापिता बह्मा ( अर्जुन) के शरीर रूपी रथ में सवार होकर माया अर्थात विकारो से ही युद्ध करने कि शिक्षा दी थी , परन्तु लेखक ने बाद में अलंकारिक भाषा में इसका वर्णन किया तथा चित्रकारों ने बाद में शरीर को रथ के रूप में अंकित  करके प्रजापिता ब्रह्मा की आत्मा को भी उस रथ में एक मनुष्य ( अर्जुन) के रूप में चित्रित किया I बाद में वास्तविक रहस्य प्राय:लुप्त हो गया और स्थूल अर्थ ही प्रचलित हो गया Iसंगम युग में भगवान शिव ने जब प्रजापिता ब्रह्मा के तन रूपी रथ में अवतरित होकर ज्ञान दिया और धर्म की स्थापना की, तब उसके पश्चात् कलियुगी सृष्टि का महाविनाश हो गया और सतयुग स्थापन हुआ I अत: सर्व-महान परिवर्तन के कारण बाद में यह वास्तविक रहस्य प्रय्लुप्त हो गया I फिर जब द्वापरयुग के भक्तिकाल में गीता लिखी गयी तो बहुत पहले ( संगमयुग में) हो चुके इस वृतांत का रूपांतरण व्यास ने वर्तमानकाल का प्रयोग करके किया तो समयांतर में गीता-ज्ञान को भी व्यास के जीवन-काल में, अर्थात " द्वापरयुग" में दिया गया ज्ञान मान लिया परन्तु इस भूल से संसार में बहुत बड़ी हानि हुई क्योंकि लोगो को यह रहस्य ठीक रीति से मालूम होता कि गीता-ज्ञान निराकार परमपिता परमात्मा शिव ने दिया जो कि श्रीकृष्ण के भी परलौकिक पिता है और सभी धर्मो के अनुयायियों के परम पूज्य तथा सबके एकमात्र सादगति दाता तथा राज्य-भग्य देने वाले है, तो सभी धर्मो के अनुयायी गीता को ही संसार का सर्वोत्तम शास्त्र मानते तथा उनके महावाक्यो को परमपिता के महावाक्य मानकर उनको शिरोधार्य  करते और वे भारत को ही अपना सर्वोत्तम तीर्थ मानते अथ:   शिव जयंती को गीता -जयंती तथा गीता जयंती को शिव जयंती के रूप में भी मानते I वे एक ज्योतिस्वरूप, निराकार परमपिता, परमात्मा शिव से ही योग-युक्त होकर पावन बन जाते तथा उससे सुख-शांति की पूर्ण विरासत ले लेते परन्तु आज उपर्युक्त सवोत्तम रहस्यों को न जानने के कारण और गीता माता के पति सर्व मान्य निराकार परमपिता शिव के स्थान पर गीता-पुत्र श्रीकृष्ण देवता का नाम लिख देने के कारण गीता का ही खंडन हो गया और संसार में घोर अनर्थ, हाहाकार तथा पापाचार हो गया है और लोग एक निराकार परमपिता की आज्ञा ( मन्मना भव अर्थात  एक मुझ हो को याद करो ) को भूलकर व्यभिचारी बुद्धि वाले हो गए है ! ! आज फिर से उपर्युक्त रहस्य को जानकर परमपिता परमात्मा शिव से योग-युक्त होने से पुन: इस भारत में श्रीकृष्ण अथवा श्रीनारायण का सुखदायी स्वराज्य स्थापन हो सकता है और हो रहा हैI


गीता ज्ञान कब क्यों और किसके द्वारा दिया गया ?


गीता ज्ञान कब क्यों और किसके द्वारा दिया गया ?

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