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Saturday, July 6, 2013

सहनशीलता का पाठ


पुराने  समय में अबु उस्मान नाम के आला दर्जे के संत हुए हैं। वे शांत स्वभाव के तथा मितभाषी थे। स्नेहमय आचरण उनके स्वभाव की विशेषता थी। उनसे कोई कितनी ही कड़वी बात कह दे, किंतु वे उसका प्रत्युत्तर बड़े स्नेह से ही देते थे। क्रोध से वे कोसो दूर रहते थे और कहा जा सकता है कि वे विनम्रता की प्रतिमूर्ति थे। उनके चरित्र की इस ऊंचाई के कारण उनके बहुत सारे अनुयायी थे, जो उनके प्रति श्रद्धा-भाव रखते थे। 
 
एक दिन की बात है, अबु उस्मान अपने कुछ अनुयायियों के साथ कहीं जा रहे थे। जब वे एक मकान के नीचे से गुजरे, तो ऊपर से किसी ने उन पर राख फेंक दी। जो सीधे उनके सिर पर आकर गिरी। यह दृश्य देखकर संत के अनुयायी क्रोध से आगबबूला हो गए। अपने गुरु का अपमान उन्हें बर्दाश्त नहीं हुआ और वे राख फेंकने वाले से बदला लेने पर उतारू हो गए।
 
तब संत अबु ने उन्हें रोकते हुए कहा- ‘तुम लोग गुस्सा क्यों कर रहे हो? जबकि जिस व्यक्ति ने ऐसा आचरण किया है, उसका तो तुम्हें उपकार मानना चाहिए। इसे इस तरह से सोचकर देखो कि जो सिर आग में जलाने लायक था, उस पर उसने मात्र राख ही फेंकी।’ अपने गुरु की सहज-सरल मुस्कान के साथ कही गई यह बात शिष्यों पर जादू सा असर कर गई। उनके इस बड़प्पन को देखकर वे सभी शांत हो गए और गुरु की बात उन्होंने गांठ बांध ली। इस सांकेतिक कथा का निहितार्थ यह है कि धर्य

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