भगवांन भाई ने
कहा नैतिक
शिक्षा किसी
भी व्यक्ति
के विकास
में उतना
ही आवश्यक
है जितना
कि स्कूली
शिक्षा। नैतिक
शिक्षा से
ही हम
अपने व्यक्तित्व
का निर्माण
करते है
जो आगे
चलकर कठिन
परिस्थितियों का
सामना करने
का आत्मविवेक
व आत्मबल
प्रदान करता
है।उन्होंने कहा
की नैतिकता
के अंग
हैं – सच बोलना, चोरी
न करना,अहिंसा, दूसरों
के प्रति
उदारता, शिष्टता, विनम्रता, सुशीलता आदि।
परन्तु आज
ये शिक्षा
ना तो
बालक के
माता-पिता, जिन्हें बालक
की प्रथम
पाठशाला कहा
जाता है, ना
ही विद्यालय
दे पा
रहा है।
नैतिक शिक्षा
के अभाव
के कारण
ही आज
जगत में
अनुशासनहीनता का
बोल-बाला है।
आज का
छात्र कहाँ
जानता है, बड़ों
का आदर-सत्कार, छोटों
से शिष्ठता-प्यार, स्त्री
जाति की
सुरक्षा-सम्मान सत्कार।
रही-सही कसर
पूरी कर
देता है
भगवान
भाई ने
कहा की
नैतिक शिक्षा
ही मानव
को ‘मानव’ बनाती है
क्योंकि नैतिक
गुणों के
बल पर
ही मनुष्य
वंदनीय बनता
है। सारी
दुनिया में
नैतिकता अर्थात
सच्चरित्रता के
बल पर
ही धन-दौलत, सुख
और वैभव
की नींव
खड़ी है।
उन्होंने
कहा कि
जब तक
हमारे व्यवहारिक
जीवन में
परोपकार,सेवाभाव,त्याग,उदारता,पवित्रता,सहनशीलता,नम्रता,धैर्यता,सत्यता,ईमानदारी, आदि सद्गुण
नहीं आते।
तब तक
हमारी शिक्षा
अधूरी हैं।
उन्होंने कहा
कि समाज
अमूर्त होता
हैं और
प्रेम,सद्भावना,भातृत्व,नैतिकता एवं
मानवीय सद्गुणों
से सचालित
होता हैं।
प्राचार्य –विमल दहाल जी ने भी
अपना उद्बोधन
दिया और
कहा की भौतिक
शिक्षा की
बजाय इंसान
को नैतिक
शिक्षा की
आवश्यकता हैं।
उन्होंने समाज
में मूल्यों
की कमी
हर समस्या
का मूल
कारण हैं।
बी के गायत्री प्रभारी जी ने भी अपना उद्बोधन देते हुए कहा की नैतिक शिक्षा से ही छात्र-छात्राओं में सशक्तिकरण आ सकता है। उन्होंने आगे बताया कि नैतिकता के बिना जीवन अंधकार में हैं। नैतिक मूल्यों की कमी के कारण अज्ञानता, सामाजिक, कुरीतियां व्यसन, नशा, व्यभिचार आदि के कारण समाज पतन की ओर जाता
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