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Wednesday, February 7, 2018

हल्दिया (पश्चिम बंगाल)

हल्दिया  (पश्चिम बंगाल)  ----में 
आयोजक –ब्रह्माकुमारीज हल्दिया   (पश्चिम बंगाल) 
मुख्य वक्ता --बी के भगवान् भाई माउंट आबू 
विषय – 
बी के अल्पना बहन प्रभारी तमलुक  (पश्चिम बंगाल)
बी के गौरी बहन राजयोग शिक्षिका तमलुक   (पश्चिम बंगाल)
बी के दुर्गा बहन प्रभारी चैतन्यपुर   (पश्चिम बंगाल)

मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए बी के भगवान् भाई ने कहा कि वर्तमान कि विभिन्न विपरीत परस्थियाही मन में  तनाव पैदा करती है  दिन-रात ऐसी अनगिनत घटनाएँ, अवस्थाएँ एवं परिस्थितियाँ सामने आती रहती हैं, जो हमारे लिए अप्रिय ही नहीं असहनीय भी होती हैं। दिन-रात हमें ऐसे सवालों और ऐसी समस्याओं से जूझना पड़ता रहता है, जिनके कारण मन की शांति भंग हो जाती है और मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है, हम परेशान या चिंतित हो उठते हैं। चिंता और परेशानी से भरी यही स्थिति मानसिक तनाव कहलाती है। आधुनिक जीवन में जैसे-जैसे जटिलताएँ बढ़ रही हैं, कठिनाइयाँ बढ़ रही हैं, समस्याएँ बढ़ रही हैं, वैसे-ही-वैसे समाज का एक बड़ा वर्ग तनाव जैसे मानसिक रोग से ग्रस्त होता जा रहा है। पुरुष, महिलाएँ या बच्चे, कोई भी वर्ग ऐसा नहीं है, जो किसी-न-किसी कारण मानसिक तनाव से पीड़ित न हो। आज नगरों और महानगरों के रहनेवाले ही नहीं, ग्रामीण अंचलों के निवासी भी समान रूप से इस रोग की चपेट में आ जाते हैं। शिक्षित ही नहीं, अशिक्षित भी। गरीब भी और अमीर भी। आज का समाज व्यापक स्तर पर तनावग्रस्त होता जा रहा है। हम कह सकते हैं कि जिस तरह प्राकृतिक वातावरण में प्रदूषण बढ़ रहा है, उसी तरह सामाजिक वातावरण को यह बढ़ता हुआ मानसिक तनाव प्रदूषित करता जा रहा है। इससे उत्पन्न शारीरिक रोगी की रोकथाम यदि शीघ्र ही नहीं की गई तो स्थिति भयावह हो सकती है।

उन्होंने बताया  कि मानसिक तनाव चाहे सामाजिक एवं सामूहिक कारणों से हो, विपरीत एवं अप्रिय परिस्थितियों के कारण हो अथवा किसी और कारण से, होता व्यक्तिगत ही है। यानी व्यक्ति को इससे अपने स्तर पर ही निबटना पड़ता है। वह या इससे मुक्त होने के उपाय खोजता है या विवश होकर स्वयं को इसके आगे समर्पित कर देता है। जो व्यक्ति मानसिक तनाव के आगे हथियार डाल देते हैं, दरअसल, वे अपने मन या अपने मस्तिष्क का रक्त उस जौंक को पीते रहने की अनुमति दे देते हैं, जो उसके जीवन को नरक बना देती है। तनाव अन्य शारीरिक रोगों की तुलना में भिन्न है। ज्वर, निमोनिया, क्षय रोग आदि प्रत्यक्ष शारीरिक रोग हैं। किसी भी रोग से पीड़ित व्यक्ति डाक्टर के पास जाता है, अपने रोग की पहचान कराता है, उपचार पूछता है, औषधियाँ लेता है, उन्हें प्रयोग में लाता है और स्वस्थ हो जाता है, किंतु मानसिक तनाव उस श्रेणी का शारीरिक रोग नहीं है। डाक्टर से अधिक इसका इलाज व्यक्ति को स्वयं करना होता है।

भगवान् भाई ने बताया कि मानसिक तनाव इन दिनों जिस तेज़ी से विकराल रूप धारण करता जा रहा है, उसे देखते हुए यह नितांत आवश्यक है कि तनाव-पीड़ितों को इस रोग से मुक्त होने के उपायों की जानकारी दी जाए। पुस्तक में यही जानकारी देने का प्रयास हुआ है। इस रोग की सामान्य जानकारी न होने के कारण तनावग्रस्त रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। उनमें से बहुत से लोग मादक पदार्थ का सेवन कर सुख-शांति प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं, जो अपने दुःखद परिणामों के कारण उन्हें और भी बुरी स्थिति में पहुँचा देते हैं। मादक औरषधियाँ तनाव दूर करने की सामायिक विधि तो हो सकती है; वे स्थायी इलाज नहीं हैं। फिर यह विधि अपने अंतिम परिणाम में पहले से भी अधिक घातक हो जाती है।
उन्होंने कहा कि  ‘चिंता से चिता बेहतर’ इस छोटी-सी कहावत में गहरा सामूहिक अनुभव छिपा है। इसी सामूहिक अनुभव ने शताब्दियों पहले मनुष्य को इस वास्तविकता से परिचित कराया था कि चिंतित रहने की अपेक्षा व्यक्ति का मर जाना बेहतर है, क्योंकि मृत्यु का कष्ट तो मनुष्य को एक ही बार भोगना पड़ता है, जबकि चिंता अथवा मानसिक तनाव से अनेकानेक कष्टों का जन्म होता है। ये कष्ट अपने परिणामों में ऐसे दुःखदायी होते हैं कि जीवन मौत से बदतर हो जाता है। तनावग्रस्त व्यक्ति महसूस तो ऐसा करता है कि वह केवल मानसिक रूप से परेशान है, किंतु उसकी यह मानसिक व्यग्रता धीरे-धीरे उसकी संपूर्ण शारीरिक व्यवस्था को विकृत कर देती है। कितनी ही शारीरिक बीमारियाँ केवल मानसिक तनाव, टेंशन, डिप्रेशन, अवसाद अथवा चिंता के कारण उत्पन्न हो जाती हैं। हम यहाँ एक-एक करके ऐसी शारीरिक बीमारियों का वर्णन करेंगे, जो मूल रूप से मानसिक तनाव के कारण उत्पन्न होती हैं।
उन्होंने कहा कि तनाव से मुक्ति छते है तो राजयोग को अपनी दिनचर्या का अंग बना लो राजयोग से विचार शैली सकारात्मक बनेगी जीससे समस्यों का समाधान हो जायेगा और हम तनाव से मुक्ति प् सकेगे 
अतिथियों ने भी अपना संबोधन दिया 

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