Pages

Saturday, March 22, 2014

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू के राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवान












बोकारो : एमजीएम सीनियर सेकेंड्री स्कूल में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसका शुभारंभ प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू के राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने किया। उन्होंने कहा कि बच्चों के सर्वागीण विकास के लिए नैतिक शिक्षा की आवश्यकता है। नैतिक मूल्यों की कमी व्यक्तिगत, सामाजिक, पारिवारिक, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय समस्याओं का मूल कारण है।
कहा कि जो शिक्षा विद्यार्थियों को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए, असत्य से सत्य मार्ग पर ले जाए और बंधनों से मुक्ति दिलाए, वास्तव में वही ज्ञान है। यदि अपराधमुक्त समाज चाहिए तो मानवीय मूल्यों, नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा के माध्यम से युवाओं को संस्कारित करना होगा। हमारी विरासत हमारे मूल्यों में है। मूल्य की संस्कृति के कारण आज भारत की पहचान पूरे विश्व में है।
इसके पूर्व प्राचार्य फादर जैकब थॉमस ने आगंतुकों का स्वागत किया। कहा कि बच्चों को नैतिक शिक्षा के माध्यम से संस्कारित करने का काम किया जा रहा है। शैलेश भाई एवं फादर बीनोज ने भी विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन श्रीमती पूनम झा ने किया। मौके पर बीके तेजप्रताप, शिक्षक-शिक्षिकाएं एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।

प्रजापति ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू से बीके भगवान भाई





आसनसोल : प्रजापति ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू से बीके भगवान भाई शुक्रवार को आसनसोल आए। उन्होंने आसनसोल जेल के कैदियों को जीवन में नैतिकता का पाठ पढ़ाया। उसके बाद बुधा स्थित दयानंद विद्यालय में विद्यार्थियों को जीवन में नैतिक शिक्षा का महत्व समझाते हुए उन्होंने कहा कि मन स्वस्थ रहने से ही तन स्वस्थ रहेगा। हर इंसान के लिए जीवन में नैतिकता जरूरी है। इसके बिना मनुष्य राक्षस के समान है। यह हमें दुर्गुणों से बचाकर सदगुण सिखाता है। शिक्षा का उद्देश्य ही दुर्गुण को मिटाना तथा सदगुण को बढ़ाना है। उन्होंने कहा कि नैतिकता की कमी के कारण ही समाज में अपराध बढ़ रहा है। जीवन में सहनशीलता बहुत जरूरी है। इसके साथ ही हमेशा मीठी वाणी का प्रयोग करना चाहिए। बच्चे ही समाज के भविष्य हैं। इसलिए उन्हें नैतिकता का पाठ पढ़ाना बहुत जरूरी है। इस मौके पर विवि के आसनसोल क्षेत्र की संचालिका बीके सुनीता बहन एवं अन्य उपस्थित थे। बीके भगवान भाई ने शाम को शरत मंच में भी वक्तव्य रखा।

विकारों के त्याग से प्रसन्न होते हैं भोले



विकारों के त्याग से प्रसन्न होते हैं भोले

 Tue, 25 Feb 2014 01:09 AM (IST)
 
0
 
 
0
Google +
 
0
 
 
0
 
 
New
 
 
0
 
विकारों के त्याग से प्रसन्न होते हैं भोले
बदायूं : शहर के ब्रह्माकुमारी केंद्र पर हुए कार्यक्रम में शिवरात्रि त्योहार के विषय में विस्तार से बताया गया। राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने शिवरात्रि के बारे में बताते हुए भगवान भोले शंकर का गुणगान किया।
सोमवार को हुए कार्यक्रम के दौरान राजयोगी ब्रहम्कुमार भगवान भाई ने भक्तों से कहा कि वह भोलेनाथ को प्रसन्न करना चाहते हैं तो अपने आंतरिक विकारों का त्याग करें। यह विकार काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईष्र्या, घृणा और नफरत ही मनुष्य के पतन के कारण बनते हैं। बताया कि महा शिवरात्रि एक सार्व- भौमिक त्योहार है। हम सभी मनुष्य आत्माओं के आत्मिक पिता, परमात्मा के अवतरण का यादगार पर्व है। उन्होंने कहा कि यह त्योहार हमें भाईचारे की स्मृति दिलाता है। महाशिवरात्रि अर्थात ही स्वयं में जागृति लाना है कि मैं कौन हूं, कहां से आया हूं, मेरा आत्मिक पिता कौन है, अब कौनसा सम चल रहा है। उन्होंने बताया कि जब मनुष्य यह सबकुछ भूल जाता है तब ऐसे अज्ञान अंधकार के रात्रि में परमात्मा शिव का अवतरण होता है। इसका यह यादगार पर्व है। उन्होंने बताया कि हमें अब मन और बुद्धि से उस निराकार परमपिता शिव को याद करना है यही वास्तव में उपवास है। शिवजी पर बेर चढ़ाते हैं तो हमें अपने आंतरिक बैर को छोड़ना है, यही वास्तव में बेर चढ़ाना है। शिव को प्रसन्न करने के लिए हमें बुराईयों को त्यागने की प्रतिज्ञा करनी है। इधर, राजकीय कन्या इंटर कालेज, राजकीय इंटर कालेज और शिवदेवी स्कूल में हुए नैतिक शिक्षा अभियान कार्यक्रम में भगवान भाई ने नैतिक मूल्यों के बारे में बताया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि जितना हम स्वयं को और दूसरों को यथार्थ के रूप में जानते हैं, उतना ही हमारे अंदर नैतिक मूल्य आना शुरू हो जाता है। स्वयं को दूसरों का जीवन चक्र का यथार्थ जानना ही आध्यात्मिता है। उन्होंने कहा कि मूल्यों का आधार विवेक आध्यात्मिकता से विवेक जाग्रत होता है और भौतिकता से विवेक भ्रष्ट होता है। इसलिए आज समाज में भौतिकता का पलड़ा भारी है। इसी वजह से नैतिक मूल्यों में गिरावट आई है। उन्होंने कहा कि नैतिक मूल्य माना मानव उत्थान के लिए लागू किए गए नियम हैं अगर हम अपने जीवन का उत्थान चाहते हैं तो चरित्रवान बनना चाहते हैं तो स्वीकार करने में कोई हर्ज नहीं है। इस मौके पर प्रधानाचार्या नूतन रानी, बीके सक्सेना, बीके आनंद, सीपी सक्सेना ने भी विचार व्यक्त किए।

Thursday, March 20, 2014

कारा गृह है परिवर्तन की तपोस्थली : भगवानभाई

कारा गृह है परिवर्तन की तपोस्थली : भगवानभाई

Bhaskar News Network | Jan 13, 2014, 03:32AM IST
Email Print Comment
> कैदियों के बीच संस्कार परिवर्तन एवं व्यवहार शुद्धि कार्यशाला
भास्कर न्यूज - बोकारो
कर्मों के आधार पर ही संसार चलता है। कर्मों से ही मनुष्य महान बनता है। कर्मों से ही कंगाल बनता है। उक्त बातें प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय माउंटआबू से आए राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवान भाई ने कही। वे मंडल कारा चास में कैदियों को संस्कार परिवर्तन एवं व्यवहार शुद्धि विषय पर संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि कर्म से ही मनुष्य डाकू से ऋषि बन जाता है। डाकू से वाल्मीकि बन कर उन्होंने रामायण लिख डाली। उन्होंने कहा मनुष्य जीवन बड़ा अनमोल है। इसे व्यर्थ गंवाना नहीं चाहिए। उन्होंने कहा कि मनुष्य की गलतियां ही उसे सही रूप में इंसान बनाती हैं। केवल हमें उन गलतियों को स्वयं ही महसूस कर उसे बदलने की आवश्यकता है। उन्होंने कैदियों से कहा कि कारागृह उनके लिए तपोस्थली है। यहां एकांत में बैठकर स्वयं के बारे में सोचने और टटोलने का मौका मिलता है। उन्हें सोचना है कि कि उनके जीवन का उद्देश्य क्या है। भगवान ने उन्हें किस उद्देश्य से इस संसार में भेजा है और वे यहां आकर क्या कर रहे हैं। ऐसा चिंतन कर अपने व्यवहार और संस्कारों में परिवर्तन कर अच्छा इंसान बन सकते हैं। स्थानीय ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय सेवाकेंद्र के बीके शैलेश भाई, जेलर श्रीकांत सिन्हा और डा. केके दास ने भी कैदियों को चिंतन कर सुधार लाने की अपील की।

परमात्मा ही हमारा सच्चा साथी व मददगार है।




















रादौर। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में मंगलवार को माउंट आबु राजस्थान से आए राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवान ने कहा कि क्रोध मनुष्य के विवेक को नष्ट कर देता है। जरा-सा क्रोध या आवेश में मनुष्य अपने आप को कभी न सुधारने वाली भूल कर बैठता है। इस पर नियंत्रण पाने की कला है राजयोग। इसके माध्यम से ही हम स्वयं पर नियंत्रण कर आसुरी वृत्तियों को दैवीवृत्ति में परिवर्तन कर जीवन में पुण्य कमा सकते हैं। उन्होंने कहा कि परमात्मा ही हमारा सच्चा साथी व मददगार है। परमात्मा की याद हमें हर पल शक्ति देती है, इसलिए परमात्मा को कभी भी भूलना नहीं चाहिए। क्रोध के कारण शरीर पर बुरा असर पड़ता है। जिस कारण अनेक शारीरिक व मानसिक बीमारियां पैदा होती हैं। राजयोग द्वारा अष्टशक्तियों और अनेक सद्गुणों को जीवन में विकास होता है।
राजयोग मानसिक बीमारियों को समाप्त करने की एक संजीवनी बूटी है।