बच्चों का व्यक्तित्व
कुंठित न
करें....
बच्चों में करें
श्रेष्ठ संस्कारों
का बीजारोपण
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'तेरे दिमाग में तो गोबर भरा है रे..., तू तो पूरा ढक्कन है रे...!, क्या तू घास खाता है...?, तू तो पूरा पागल है..., तेरा मार-मारकर भुर्ता बना दूंगा, बड़ा होकर तू चपरासी भी बन जाए तो अपने को खुशकिस्मत समझ लेना...' इस प्रकार के कुछ वाक्य प्राय: हम कुछेक घरों में अभिभावकों द्वारा बच्चों को बोलते हुए सुनते हैं। इस प्रकार की भाषा का प्रयोग अनुचित है। इससे बच्चा कुंठित होता है तथा उसका आत्मविश्वास डगमगाता है तथा वह पढ़ाई तथा जीवन के हर क्षेत्र में पिछड़ जाता है। बच्चों का आत्मविश्वास कैसे बढ़ाया जाए तथा उसका व्यक्तित्व कैसे निखारा जाए, आइए हम देखते हैं : -
शालीन भाषा का प्रयोग करें
बच्चों से हम हमेशा शालीन भाषा का प्रयोग करते हुए ही वार्तालाप करें। इससे बच्चों पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा। हमको हमेशा बच्चों से मित्रवत् व्यवहार ही करना चाहिए, न कि शत्रुवत्। जैसा हम आचरण करते हैं, बच्चे भी वैसा ही सीखकर अपने व्यवहार में ढालते हैं अत: शालीनता सर्वोपरि है। यह तयप्राय: है कि जैसी भाषा का हम बार-बार प्रयोग करते हैं, वैसी की वैसी ही भाषा एक विज्ञापन ( मनोविज्ञान) के प्रचार अभियान की तरह बच्चों के मन-मस्तिष्क में घर करती जाती है तथा बच्चा धीरे-धीरे उसे ही सच मानने लग जाता है एवं उसकी वास्तविक प्रतिभा कहीं खो-सी जाती है अत: उसे कुंठित न करें।
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