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Thursday, July 19, 2012

बात का घाव एक ब्राहमण जंगल से लकड़ी काटता और उन्हें बाज़ार में बेच कर अपना गुजारा करता. एक दिन उसने लकड़ी काट कर गट्ठर बनाया ही था कि अचानक एक शेर सामने आ गया.


बात का घाव
एक ब्राहमण जंगल से लकड़ी काटता और उन्हें बाज़ार में बेच कर अपना गुजारा करता.
एक दिन उसने लकड़ी काट  कर गट्ठर बनाया ही था कि अचानक एक शेर  सामने आ गया. ब्राहमण की जान पर आ बनी. जान बचाने का कोई उपाय न देख वह एक हाथ ऊपर उठा कर आशीर्वाद देने की मुद्रा में मंत्र बोलने लगा. शेर अब तक सोच रहा था कि अच्छा शिकार मिला, आश्चर्य से पूछने लगा- " इस बात का क्या अर्थ है."
ब्राहमण ने कहा - " तुम्हारे पूर्वज मेरे यजमान थे और मुझे  दक्षिणा देते थे. मैंने तुम्हे आशीर्वाद दिया है, अब  तुम भी  मुझे कुछ दक्षिणा दो."शेर ने कहा- " और कुछ तो मेरे पास है नहीं. हाँ, मैं  तुम्हारा ये लकड़ी का गट्ठर अपनी पीठ पर रख कर, रोज  जंगल के बाहर पहुँचा दिया करूँगा."शेर  नित्य ही ब्राहमण की लकड़ियों का गट्ठर जंगल के बाहर तक पहुंचा दिया करता. ब्राहमण को अब बहुत आराम हो गया था.
एक दिन किसी कारण वश शेर को आने में देर हो गयी.  ब्राहमण ने देर से आने के लिए शेर को खरी-खोटी सुनाई और उसका बहुत अपमान किया शेर चुपचाप सुनता रहा. जंगल की सीमा से बाहर आकर शेर ने ब्राहमण से कहा -
" अपनी कुल्हाड़ी से मेरी गर्दन पर एक घाव कर दो, कल से मैं नहीं आऊँगा. "
शेर की गंभीर आवाज़ सुन कर ब्राहमण ने डरकर  शेर की गर्दन पर कुल्हाड़ी से घाव कर दिया.शेर चला गया. दिन बीतते रहे. कई महीने बाद शेर फिर ब्राहमण के सामने आ गया और अपना घाव ब्राहमण को दिखाते हुए बोला -" ये देखो, शरीर का घाव समय के साथ भर गया है लेकिन तुमने जो कटुवचन बोले थे,उनका घाव अब भी हरा है."
ज़िंदगी की सीख :
               शरीर पर लगा  घाव भर जाता है   लेकिन  कटु वचन हमेशा मन को  पीड़ा देते हैं. संबंधों में  स्थायित्व के लिए वाणी की मधुरता अति  आवश्यक है.

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