परनिंदा मनुष्य के मूल विकारों में से एक है ।इसकी मौलिकता को ही महत्व देते हुये साहित्यकारों ने नवरसों के साथ साथ निंदारस को भी स्थान दिया है । किसी से कुछ त्रुटि हो जाये, प्राय: हम उसकी निंदा करने से चूकते नहीं हैं। किसी के अच्छे कार्य की सराहना करने से हम भले ही प्राय: चूक जाते हैं, किन्तु निंदा का अवसर लाभ उठाने से भला क्या मजाल कि हम चूक जायें ।वैसे कबीर दास जी की मानें तो हमें खुद की निंदा का स्वागत करना चाहिये। उन्होने कहा है - निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय । शायद उनके इतने साहस व उदारतापूर्ण कथन का कारण यह हो सकता है कि हमारी निंदा करने वाला हमारी उन कमियों व कमजोरियों को इतने सीधे-सीधे व स्पष्ट तरीके से बता देता है जो कि हमारे मित्र व प्रियजन प्राय: छुपा देते हैं या सीधे तौर से कभी नहीं कह पाते या कहने में संकोच करते हैं ।
ब्रह्माकुमार भगवान भाई ,ब्रह्माकुमारीज ,माउंट आबू राजस्थान (भारत) 5000 स्कूलों और 800 कारागृह (जेलों) में नैतिक मूल्यों का पाठ पढ़ाकर इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज है
Thursday, July 19, 2012
परनिंदा मनुष्य के मूल विकारों में से एक है
परनिंदा मनुष्य के मूल विकारों में से एक है ।इसकी मौलिकता को ही महत्व देते हुये साहित्यकारों ने नवरसों के साथ साथ निंदारस को भी स्थान दिया है । किसी से कुछ त्रुटि हो जाये, प्राय: हम उसकी निंदा करने से चूकते नहीं हैं। किसी के अच्छे कार्य की सराहना करने से हम भले ही प्राय: चूक जाते हैं, किन्तु निंदा का अवसर लाभ उठाने से भला क्या मजाल कि हम चूक जायें ।वैसे कबीर दास जी की मानें तो हमें खुद की निंदा का स्वागत करना चाहिये। उन्होने कहा है - निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय । शायद उनके इतने साहस व उदारतापूर्ण कथन का कारण यह हो सकता है कि हमारी निंदा करने वाला हमारी उन कमियों व कमजोरियों को इतने सीधे-सीधे व स्पष्ट तरीके से बता देता है जो कि हमारे मित्र व प्रियजन प्राय: छुपा देते हैं या सीधे तौर से कभी नहीं कह पाते या कहने में संकोच करते हैं ।
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