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Wednesday, August 3, 2011

भास्कर संवाददाता. आलीराजपुर यह कारागृह नहीं बल्कि सुधारगृह है। यहां आपको स्वयं में सुधार लाना है। कारागृह के इस एकांत स्थान पर बैठकर स्वयं का परिवर्तन करने के बारे में विचार करें।

दो स्कूलों में हुए कार्यक्रम में ‘जीवन में मूल्य शिक्षा का महत्व’ विषय पर भगवानभाई ने कहा नैतिक शिक्षा से व्यक्तित्व विकास संभव
दो स्कूलों में हुए कार्यक्रम में ‘जीवन में मूल्य शिक्षा का महत्व’ विषय पर भगवानभाई ने कहा

नैतिक शिक्षा से व्यक्तित्व विकास संभव

भास्कर संवाददाता & आलीराजपुर

शिक्षा का मूल उद्देश्य है मानव के संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास करना, स्वस्थ जीवन बनाना। इसके लिए मूल्य शिक्षा की अति आवश्यकता है।

यह बात प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ने कही। वे अखिल भारतीय शैक्षणिक अभियान के अंतर्गत पटेल पब्लिक स्कूल एवं सरस्वती शिशु मंदिर में जीवन में मूल्य शिक्षा का महत्व विषय पर छात्र-छात्राओं और शिक्षकों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा शिक्षा ही जीवन को सशक्त, सकारात्मक और विकसित बना सकती है। जीवन में कर्मकुशलता, व्यावसायिक दक्षता, बौद्धिक विकास एवं विभिन्न विषयों के साथ आपसी स्नेह, सत्यता, पवित्रता, अंहिसा, करुणा, दया आदि मानवीय मूल्यों के पाठ भी विद्यार्थियों को पढ़ाना जरूरी है।

उन्होंने कहा मानवीय मूल्यों के ह्रास के कारण समाज में हिंसक वृत्ति बढ़ती जा रही है। मूल्यों की शिक्षा के ह्रास के कारण मानव संबंधों में तनाव, अविश्वास, अशांति निरंतर बढ़ती जा रही है। इस कारण सामाजिक हिंसा में भी बढ़ोतरी हो रही है।
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आदर्श शिक्षक ही आदर्श समाज निर्मित कर सकता है
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू के राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ने कहा

आदर्श शिक्षक ही आदर्श समाज निर्मित कर सकता है

भास्कर संवाददाता & आलीराजपुर

समाज को सुधारने के लिए आदर्श शिक्षकों की आवश्यकता है क्योंकि वे ही समाज शिल्पी हैं। शिक्षक वही है जो अपने जीवन की धारणा से दूसरों को शिक्षा देता है। धारणा से विद्यार्थियों में बल भरता है, आदर्श शिक्षक ही आदर्श समाज निर्मित कर सकता है।

यह बात प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू के राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ने जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्था में शिक्षक-प्रशिक्षणार्थियों को आदर्श शिक्षक विषय पर बोलते हुए कही। उन्होंने कहा आज की बिगड़ती परिस्थिति को देखते हुए समाज को सुधारने की बहुत आवश्यकता है। वर्तमान के छात्र भावी समाज है। अगर भावी समाज को आदर्श बनाना चाहते हो तो छात्राओं को भौतिक शिक्षा के साथ उनके नैतिक आचरण पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।

जीवन की धारणाओं से वाणी, कर्म, व्यवहार और व्यक्तित्व में निखार आ जाता है। उन्होंने कहा शिक्षा देने के बाद भी अगर बच्चे बिगड़ रहे हैं तो इसका मतलब मूर्तिकार में भी कुछ कमी है। शिक्षक के अंदर के जो संस्कार हैं, उनका विद्यार्थी अनुकरण करते हैं। शिक्षकों को केवल पाठ पढ़ाने वाला शिक्षक नहीं बल्कि सारे समाज को श्रेष्ठ मार्गदर्शन देने वाला शिक्षक बनना है। शिक्षक होने के नाते हमारे अंदर सद्गुण होना आवश्यक है। उन्होंने कहा किताबी ज्ञान के साथ-साथ बच्चों को अपने जीवन की धारणाओं के आधार से नैतिक पाठ भी अवश्य पढ़ाएं।

सेवाभाव की आचरण की शिक्षा जुबान से

ब्रह्माकुमारी राजयोग सेवा केंद्र की संचालिका बीके माधुरी बहन ने कहा एक दीपक से पूरा कमरा प्रकाशित होता है तो क्या पूरे जिले को मूलनिष्ठ शिक्षा से प्रकाशित हम सब मिलकर नहीं कर सकतें। अब आश्यकता है सेवाभाव की। आचरण की शिक्षा जुबान से भी तेज होती है। व्याख्याता कैलाशचंद्र सिसौदिया ने
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बुराइयों को दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान
Published on 19 Jun-2011

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बुराइयों को दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान

साहित्य वितरण करते हुए भगवानभाई।

भास्कर संवाददाता. आलीराजपुर
यह कारागृह नहीं बल्कि सुधारगृह है। यहां आपको स्वयं में सुधार लाना है। कारागृह के इस एकांत स्थान पर बैठकर स्वयं का परिवर्तन करने के बारे में विचार करें।

यह बात प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंटआबू के राजयोगी ब्रह्मïाकुमार भगवानभाई ने कही। वे जिला जेल में संस्कार परिवर्तन कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होनें कैदियों को संबोधित करते हुए कहा एकांत में बैठकर विचार करो कि मैं इस संसार में क्यों आया हूं। मेरे जीवन का उद्ïदेश्य क्या है। सोचो कि मुझे परमात्मा ने किस उद्देश्य से इस धरती पर भेजा है, मैँ यहां आकर क्या कर रहा हूं? ऐसी बातों का चिंतन करने से संस्कार परिवर्तन होगा। श्री भगवानभाई ने कहा कारागृह आपके जीवन में परिवर्तन लाने के लिए तपोस्थली है। बीती घटनाओं व समस्याओं का चिंतन करने से मनुष्य दु:खी,अशांत बनता है। इसलिए उन्हें भूलाकर उनसे सीख लेना ही समझदारी है। ऐसा कोई कर्म ना करें जिससे हमें धर्मराजपुरी में सिर झुकाना पड़े। हमारी दृष्टि, वृत्ति में अवगुण और बुराइयां बसी हंै। उन्हें दूर भगाना है। लडऩा, झगडऩा, चोरी करना, लोभ करना ये सब हमारे दुश्मन हैैं। बुराइयां दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान है। इन अवगुणों और बुराइयों ने हमें कंगाल बनाया है। आज हमारे व्यवहार में आसुरियता आने का मूल कारण हमारा अशुद्ध आहार, अशुद्ध व्यवहार औैैर बुरी संगत है। परमात्मा ने यहां सभी बातों से मुक्त कर स्वयं में परिवर्तन लाने का अवसर दिया है। अब यहां बैठकर स्वयं को टटोलना है और अपने इंद्रियों को वश में कर स्वयं में सुधार लाना है। उन्होंने कहा इस कारागृहरूपी तपोस्थली पर स्वयं में सुधार लाकर फिर समाज में जाना है। कर्मों की गुढ़ गति का ज्ञान बताते हुए कहा हम लोभ लालच में आकर उसका दुरुपयोग करते हैं तो उसकी सजा दु:ख व अशांति के रूप में हमें ही भोगनी पड़ती है। भगवानभाई ने कहा स्वयं के संस्कार में परिवर्तन लाने का आधार है सत्संग व प्रभु चिंतन, जिससे हमारा मनोबल और आत्मबल बढ़ता है। प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय शाखा के बीके योगेंंद्र वाणी ने कहा वास्तव मे मनुष्य जन्म से अपराधी नहीं होता, बल्कि गलत संगत व लालच से गलतियां कर बैठता है। वास्तव में मनुष्य की गलतियां ही उसे इंसान बना सकती हैं।अब स्वयं का परिवर्तन करने की आवश्यकता है। उन्होंने ब्रह्मïाकुमारी विद्यालय में सिखाए जाने वाले राजयोग का महत्व बताया। कार्यक्रम को जेल अधीक्षक संतोष सोलकी ने भी संबोधित

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