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Wednesday, August 3, 2011

यह कारागृह नहीं बल्कि सुधारगृह है। यहां आपको स्वयं में सुधार लाना है। कारागृह के इस एकांत स्थान पर बैठकर स्वयं का परिवर्तन करने के बारे में विचार करें बुराइयों को दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान साहित्य वितरण करते हुए भगवानभाई।

यह कारागृह नहीं बल्कि सुधारगृह है। यहां आपको स्वयं में सुधार लाना है। कारागृह के इस एकांत स्थान पर बैठकर स्वयं का परिवर्तन करने के बारे में विचार करें
बुराइयों को दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान

साहित्य वितरण करते हुए भगवानभाई।

भास्कर संवाददाता. आलीराजपुर
यह कारागृह नहीं बल्कि सुधारगृह है। यहां आपको स्वयं में सुधार लाना है। कारागृह के इस एकांत स्थान पर बैठकर स्वयं का परिवर्तन करने के बारे में विचार करें।

यह बात प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंटआबू के राजयोगी ब्रह्मïाकुमार भगवानभाई ने कही। वे जिला जेल में संस्कार परिवर्तन कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होनें कैदियों को संबोधित करते हुए कहा एकांत में बैठकर विचार करो कि मैं इस संसार में क्यों आया हूं। मेरे जीवन का उद्ïदेश्य क्या है। सोचो कि मुझे परमात्मा ने किस उद्देश्य से इस धरती पर भेजा है, मैँ यहां आकर क्या कर रहा हूं? ऐसी बातों का चिंतन करने से संस्कार परिवर्तन होगा। श्री भगवानभाई ने कहा कारागृह आपके जीवन में परिवर्तन लाने के लिए तपोस्थली है। बीती घटनाओं व समस्याओं का चिंतन करने से मनुष्य दु:खी,अशांत बनता है। इसलिए उन्हें भूलाकर उनसे सीख लेना ही समझदारी है। ऐसा कोई कर्म ना करें जिससे हमें धर्मराजपुरी में सिर झुकाना पड़े। हमारी दृष्टि, वृत्ति में अवगुण और बुराइयां बसी हंै। उन्हें दूर भगाना है। लडऩा, झगडऩा, चोरी करना, लोभ करना ये सब हमारे दुश्मन हैैं। बुराइयां दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान है। इन अवगुणों और बुराइयों ने हमें कंगाल बनाया है। आज हमारे व्यवहार में आसुरियता आने का मूल कारण हमारा अशुद्ध आहार, अशुद्ध व्यवहार औैैर बुरी संगत है। परमात्मा ने यहां सभी बातों से मुक्त कर स्वयं में परिवर्तन लाने का अवसर दिया है। अब यहां बैठकर स्वयं को टटोलना है और अपने इंद्रियों को वश में कर स्वयं में सुधार लाना है। उन्होंने कहा इस कारागृहरूपी तपोस्थली पर स्वयं में सुधार लाकर फिर समाज में जाना है। कर्मों की गुढ़ गति का ज्ञान बताते हुए कहा हम लोभ लालच में आकर उसका दुरुपयोग करते हैं तो उसकी सजा दु:ख व अशांति के रूप में हमें ही भोगनी पड़ती है। भगवानभाई ने कहा स्वयं के संस्कार में परिवर्तन लाने का आधार है सत्संग व प्रभु चिंतन, जिससे हमारा मनोबल और आत्मबल बढ़ता है। प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय शाखा के बीके योगेंंद्र वाणी ने कहा वास्तव मे मनुष्य जन्म से अपराधी नहीं होता, बल्कि गलत संगत व लालच से गलतियां कर बैठता है। वास्तव में मनुष्य की गलतियां ही उसे इंसान बना सकती हैं।अब स्वयं का परिवर्तन करने की आवश्यकता है। उन्होंने ब्रह्मïाकुमारी विद्यालय में सिखाए जाने वाले राजयोग का महत्व बताया। कार्यक्रम को जेल अधीक्षक संतोष सोलकी ने भी संबोधित

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