ब्रह्माकुमार भगवान भाई ,ब्रह्माकुमारीज ,माउंट आबू राजस्थान (भारत) 5000 स्कूलों और 800 कारागृह (जेलों) में नैतिक मूल्यों का पाठ पढ़ाकर इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज है
Friday, August 12, 2011
इंडिया बुक आफ रिकॉर्डधारी राज योगी ब्रह्मकुमार भगवान भाई झाबुआ । पांच हजार स्कूलों में हजारों विद्यार्थियों को मूल्य निष्ठ शिक्षा के जरिए नैतिक एवं आध्यात्मिक पाठ पढ़ाने वाले तथा 800 जेलों में कैदियों को अपनी शिक्षा से अपराध को छोड़ अपने जीवन में सद्भावना, मूल्य तथा मानव को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करने के लिए इंडिया बुक आफ रिकॉर्डधारी राज योगी ब्रह्मकुमार भगवान भाई 8 से 11 जुलाई तक झाबुआ में अपनी सेवाएं देंगे। स्थानीय केंद्र की संचालिका ज्योति बहन ने बताया कि इस दौरान वे शहर की विभिन्न संस्थाओं स्कूल, कॉलेज, आईटीआई, जेल, बार एसोसिएशन तथा अन्य कार्यालयों में जाकर अपने दिव्य उद्बोधन से शहर के लोगों को लाभांवित करेंगे।
Wednesday, August 3, 2011
सकारात्मकता दूर करेगी तनाव बार एसोसिएशन के कार्यक्रम में भगवान भाई ने कहा सकारात्मकता दूर करेगी तनाव बार एसोसिएशन के कार्यक्रम में भगवान भाई ने कहा
सकारात्मकता दूर करेगी तनाव बार एसोसिएशन के कार्यक्रम में भगवान भाई ने कहा
सकारात्मकता दूर करेगी तनाव
बार एसोसिएशन के कार्यक्रम में भगवान भाई ने कहा
भास्कर संवाददाता. झाबुआ
नकारात्मक सोच ही अनेक समस्याएं पैदा होती है, जिससे जीवन में तनाव उत्पन्न होता है। इसलिए हर परिस्थिति में सकारात्मक नजरिया रखें, तो तनाव से मुक्त हो सकेंगे।
यह बात ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने बार एसोसिएशन में उपस्थित जज और वकीलों से कही। वे तनाव मुक्ति और जीवन जीने की कला विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा विचारों से स्मृति, दृष्टि, वृत्ति और दृष्टिकोण बनता है। विचार नकारात्मक है तो व्यवहार भी नकारात्मक होगा। उन्होंने कहा विचार को सकारात्मक बनाने से जीवन की सभी समस्या समाप्त हो जाएगी। सकारात्मक विचारों से व्यवहार भी सकारात्मक होगा। आत्म बल और मनोबल बढ़ेगा, जिससे व्यवहार में निखार आ जाएगा।
भगवान भाई ने कहा सकारात्मक विचारों से आंतरिक मन में स्थिरता आती है। मन एकाग्र हो जाता है, मन में सशक्तिकरण आ जाता है। एकाग्र मन शांति और सुख का आधार बन जाता है। उन्होंने कहा तनाव मुक्त होने के लिए जीवन के हर क्षण को सकारात्मक विचारों से सींचने का प्रयास करें। उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान को सकारात्मक विचारों का स्त्रोत बताते हुए कहा जब तक हम अपने जीवन में आध्यात्मिकता को नहीं अपनाते तब तक अपने विचारों में बदलाव नहीं आएगा। उन्होंने आध्यात्मिकता की परिभाषा बताते हुए कहा स्वयं के बारे में जानना, कर्म गति को जानना, सृष्टि रचयिता को जानना ही वास्तविक आध्यात्मिकता है।
उन्होंने कहा आध्यात्मिक ज्ञान की कमी के कारण जीवन के नैतिक मूल्यों का अवमूल्यन हो चुका है। वर्तमान परिवेश में तनाव, मानसिक, शारीरिक पीड़ाओं और बुरी आदतों से मुक्त होने के लिए जीवन में मूल्यों को आत्मसात करने की आवश्यकता है। जयंती बहन ने कहा हम सभी आत्मा भाई-भाई हैं। एक निराकार शिव परमात्मा के बच्चे हैं। चांद, सूर्य, तारांगण से पार सुनहरी लाल प्रकाशमय दुनिया रंगमंच पर पार्ट बजाने आए हैं।
भास्कर संवाददाता. आलीराजपुर यह कारागृह नहीं बल्कि सुधारगृह है। यहां आपको स्वयं में सुधार लाना है। कारागृह के इस एकांत स्थान पर बैठकर स्वयं का परिवर्तन करने के बारे में विचार करें।
दो स्कूलों में हुए कार्यक्रम में ‘जीवन में मूल्य शिक्षा का महत्व’ विषय पर भगवानभाई ने कहा नैतिक शिक्षा से व्यक्तित्व विकास संभव
दो स्कूलों में हुए कार्यक्रम में ‘जीवन में मूल्य शिक्षा का महत्व’ विषय पर भगवानभाई ने कहा
नैतिक शिक्षा से व्यक्तित्व विकास संभव
भास्कर संवाददाता & आलीराजपुर
शिक्षा का मूल उद्देश्य है मानव के संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास करना, स्वस्थ जीवन बनाना। इसके लिए मूल्य शिक्षा की अति आवश्यकता है।
यह बात प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ने कही। वे अखिल भारतीय शैक्षणिक अभियान के अंतर्गत पटेल पब्लिक स्कूल एवं सरस्वती शिशु मंदिर में जीवन में मूल्य शिक्षा का महत्व विषय पर छात्र-छात्राओं और शिक्षकों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा शिक्षा ही जीवन को सशक्त, सकारात्मक और विकसित बना सकती है। जीवन में कर्मकुशलता, व्यावसायिक दक्षता, बौद्धिक विकास एवं विभिन्न विषयों के साथ आपसी स्नेह, सत्यता, पवित्रता, अंहिसा, करुणा, दया आदि मानवीय मूल्यों के पाठ भी विद्यार्थियों को पढ़ाना जरूरी है।
उन्होंने कहा मानवीय मूल्यों के ह्रास के कारण समाज में हिंसक वृत्ति बढ़ती जा रही है। मूल्यों की शिक्षा के ह्रास के कारण मानव संबंधों में तनाव, अविश्वास, अशांति निरंतर बढ़ती जा रही है। इस कारण सामाजिक हिंसा में भी बढ़ोतरी हो रही है।
Posted by BK BHAGWAN BRAHMAKUMARIS MOUNT ABU ARTIKAL at 12:06 PM 0 comments
Labels: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीयब्रह्माकुमार भगवानभाई
आदर्श शिक्षक ही आदर्श समाज निर्मित कर सकता है
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू के राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ने कहा
आदर्श शिक्षक ही आदर्श समाज निर्मित कर सकता है
भास्कर संवाददाता & आलीराजपुर
समाज को सुधारने के लिए आदर्श शिक्षकों की आवश्यकता है क्योंकि वे ही समाज शिल्पी हैं। शिक्षक वही है जो अपने जीवन की धारणा से दूसरों को शिक्षा देता है। धारणा से विद्यार्थियों में बल भरता है, आदर्श शिक्षक ही आदर्श समाज निर्मित कर सकता है।
यह बात प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू के राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ने जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्था में शिक्षक-प्रशिक्षणार्थियों को आदर्श शिक्षक विषय पर बोलते हुए कही। उन्होंने कहा आज की बिगड़ती परिस्थिति को देखते हुए समाज को सुधारने की बहुत आवश्यकता है। वर्तमान के छात्र भावी समाज है। अगर भावी समाज को आदर्श बनाना चाहते हो तो छात्राओं को भौतिक शिक्षा के साथ उनके नैतिक आचरण पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।
जीवन की धारणाओं से वाणी, कर्म, व्यवहार और व्यक्तित्व में निखार आ जाता है। उन्होंने कहा शिक्षा देने के बाद भी अगर बच्चे बिगड़ रहे हैं तो इसका मतलब मूर्तिकार में भी कुछ कमी है। शिक्षक के अंदर के जो संस्कार हैं, उनका विद्यार्थी अनुकरण करते हैं। शिक्षकों को केवल पाठ पढ़ाने वाला शिक्षक नहीं बल्कि सारे समाज को श्रेष्ठ मार्गदर्शन देने वाला शिक्षक बनना है। शिक्षक होने के नाते हमारे अंदर सद्गुण होना आवश्यक है। उन्होंने कहा किताबी ज्ञान के साथ-साथ बच्चों को अपने जीवन की धारणाओं के आधार से नैतिक पाठ भी अवश्य पढ़ाएं।
सेवाभाव की आचरण की शिक्षा जुबान से
ब्रह्माकुमारी राजयोग सेवा केंद्र की संचालिका बीके माधुरी बहन ने कहा एक दीपक से पूरा कमरा प्रकाशित होता है तो क्या पूरे जिले को मूलनिष्ठ शिक्षा से प्रकाशित हम सब मिलकर नहीं कर सकतें। अब आश्यकता है सेवाभाव की। आचरण की शिक्षा जुबान से भी तेज होती है। व्याख्याता कैलाशचंद्र सिसौदिया ने
Posted by BK BHAGWAN BRAHMAKUMARIS MOUNT ABU ARTIKAL at 11:49 AM 0 comments
Labels: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ने
बुराइयों को दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान
Published on 19 Jun-2011
* Image View
* Text View
* Share
*
* Comment
* Print
* Email
* Clip
बुराइयों को दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान
साहित्य वितरण करते हुए भगवानभाई।
भास्कर संवाददाता. आलीराजपुर
यह कारागृह नहीं बल्कि सुधारगृह है। यहां आपको स्वयं में सुधार लाना है। कारागृह के इस एकांत स्थान पर बैठकर स्वयं का परिवर्तन करने के बारे में विचार करें।
यह बात प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंटआबू के राजयोगी ब्रह्मïाकुमार भगवानभाई ने कही। वे जिला जेल में संस्कार परिवर्तन कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होनें कैदियों को संबोधित करते हुए कहा एकांत में बैठकर विचार करो कि मैं इस संसार में क्यों आया हूं। मेरे जीवन का उद्ïदेश्य क्या है। सोचो कि मुझे परमात्मा ने किस उद्देश्य से इस धरती पर भेजा है, मैँ यहां आकर क्या कर रहा हूं? ऐसी बातों का चिंतन करने से संस्कार परिवर्तन होगा। श्री भगवानभाई ने कहा कारागृह आपके जीवन में परिवर्तन लाने के लिए तपोस्थली है। बीती घटनाओं व समस्याओं का चिंतन करने से मनुष्य दु:खी,अशांत बनता है। इसलिए उन्हें भूलाकर उनसे सीख लेना ही समझदारी है। ऐसा कोई कर्म ना करें जिससे हमें धर्मराजपुरी में सिर झुकाना पड़े। हमारी दृष्टि, वृत्ति में अवगुण और बुराइयां बसी हंै। उन्हें दूर भगाना है। लडऩा, झगडऩा, चोरी करना, लोभ करना ये सब हमारे दुश्मन हैैं। बुराइयां दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान है। इन अवगुणों और बुराइयों ने हमें कंगाल बनाया है। आज हमारे व्यवहार में आसुरियता आने का मूल कारण हमारा अशुद्ध आहार, अशुद्ध व्यवहार औैैर बुरी संगत है। परमात्मा ने यहां सभी बातों से मुक्त कर स्वयं में परिवर्तन लाने का अवसर दिया है। अब यहां बैठकर स्वयं को टटोलना है और अपने इंद्रियों को वश में कर स्वयं में सुधार लाना है। उन्होंने कहा इस कारागृहरूपी तपोस्थली पर स्वयं में सुधार लाकर फिर समाज में जाना है। कर्मों की गुढ़ गति का ज्ञान बताते हुए कहा हम लोभ लालच में आकर उसका दुरुपयोग करते हैं तो उसकी सजा दु:ख व अशांति के रूप में हमें ही भोगनी पड़ती है। भगवानभाई ने कहा स्वयं के संस्कार में परिवर्तन लाने का आधार है सत्संग व प्रभु चिंतन, जिससे हमारा मनोबल और आत्मबल बढ़ता है। प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय शाखा के बीके योगेंंद्र वाणी ने कहा वास्तव मे मनुष्य जन्म से अपराधी नहीं होता, बल्कि गलत संगत व लालच से गलतियां कर बैठता है। वास्तव में मनुष्य की गलतियां ही उसे इंसान बना सकती हैं।अब स्वयं का परिवर्तन करने की आवश्यकता है। उन्होंने ब्रह्मïाकुमारी विद्यालय में सिखाए जाने वाले राजयोग का महत्व बताया। कार्यक्रम को जेल अधीक्षक संतोष सोलकी ने भी संबोधित
दो स्कूलों में हुए कार्यक्रम में ‘जीवन में मूल्य शिक्षा का महत्व’ विषय पर भगवानभाई ने कहा
नैतिक शिक्षा से व्यक्तित्व विकास संभव
भास्कर संवाददाता & आलीराजपुर
शिक्षा का मूल उद्देश्य है मानव के संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास करना, स्वस्थ जीवन बनाना। इसके लिए मूल्य शिक्षा की अति आवश्यकता है।
यह बात प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ने कही। वे अखिल भारतीय शैक्षणिक अभियान के अंतर्गत पटेल पब्लिक स्कूल एवं सरस्वती शिशु मंदिर में जीवन में मूल्य शिक्षा का महत्व विषय पर छात्र-छात्राओं और शिक्षकों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा शिक्षा ही जीवन को सशक्त, सकारात्मक और विकसित बना सकती है। जीवन में कर्मकुशलता, व्यावसायिक दक्षता, बौद्धिक विकास एवं विभिन्न विषयों के साथ आपसी स्नेह, सत्यता, पवित्रता, अंहिसा, करुणा, दया आदि मानवीय मूल्यों के पाठ भी विद्यार्थियों को पढ़ाना जरूरी है।
उन्होंने कहा मानवीय मूल्यों के ह्रास के कारण समाज में हिंसक वृत्ति बढ़ती जा रही है। मूल्यों की शिक्षा के ह्रास के कारण मानव संबंधों में तनाव, अविश्वास, अशांति निरंतर बढ़ती जा रही है। इस कारण सामाजिक हिंसा में भी बढ़ोतरी हो रही है।
Posted by BK BHAGWAN BRAHMAKUMARIS MOUNT ABU ARTIKAL at 12:06 PM 0 comments
Labels: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीयब्रह्माकुमार भगवानभाई
आदर्श शिक्षक ही आदर्श समाज निर्मित कर सकता है
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू के राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ने कहा
आदर्श शिक्षक ही आदर्श समाज निर्मित कर सकता है
भास्कर संवाददाता & आलीराजपुर
समाज को सुधारने के लिए आदर्श शिक्षकों की आवश्यकता है क्योंकि वे ही समाज शिल्पी हैं। शिक्षक वही है जो अपने जीवन की धारणा से दूसरों को शिक्षा देता है। धारणा से विद्यार्थियों में बल भरता है, आदर्श शिक्षक ही आदर्श समाज निर्मित कर सकता है।
यह बात प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू के राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ने जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्था में शिक्षक-प्रशिक्षणार्थियों को आदर्श शिक्षक विषय पर बोलते हुए कही। उन्होंने कहा आज की बिगड़ती परिस्थिति को देखते हुए समाज को सुधारने की बहुत आवश्यकता है। वर्तमान के छात्र भावी समाज है। अगर भावी समाज को आदर्श बनाना चाहते हो तो छात्राओं को भौतिक शिक्षा के साथ उनके नैतिक आचरण पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।
जीवन की धारणाओं से वाणी, कर्म, व्यवहार और व्यक्तित्व में निखार आ जाता है। उन्होंने कहा शिक्षा देने के बाद भी अगर बच्चे बिगड़ रहे हैं तो इसका मतलब मूर्तिकार में भी कुछ कमी है। शिक्षक के अंदर के जो संस्कार हैं, उनका विद्यार्थी अनुकरण करते हैं। शिक्षकों को केवल पाठ पढ़ाने वाला शिक्षक नहीं बल्कि सारे समाज को श्रेष्ठ मार्गदर्शन देने वाला शिक्षक बनना है। शिक्षक होने के नाते हमारे अंदर सद्गुण होना आवश्यक है। उन्होंने कहा किताबी ज्ञान के साथ-साथ बच्चों को अपने जीवन की धारणाओं के आधार से नैतिक पाठ भी अवश्य पढ़ाएं।
सेवाभाव की आचरण की शिक्षा जुबान से
ब्रह्माकुमारी राजयोग सेवा केंद्र की संचालिका बीके माधुरी बहन ने कहा एक दीपक से पूरा कमरा प्रकाशित होता है तो क्या पूरे जिले को मूलनिष्ठ शिक्षा से प्रकाशित हम सब मिलकर नहीं कर सकतें। अब आश्यकता है सेवाभाव की। आचरण की शिक्षा जुबान से भी तेज होती है। व्याख्याता कैलाशचंद्र सिसौदिया ने
Posted by BK BHAGWAN BRAHMAKUMARIS MOUNT ABU ARTIKAL at 11:49 AM 0 comments
Labels: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ने
बुराइयों को दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान
Published on 19 Jun-2011
* Image View
* Text View
* Share
*
* Comment
* Clip
बुराइयों को दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान
साहित्य वितरण करते हुए भगवानभाई।
भास्कर संवाददाता. आलीराजपुर
यह कारागृह नहीं बल्कि सुधारगृह है। यहां आपको स्वयं में सुधार लाना है। कारागृह के इस एकांत स्थान पर बैठकर स्वयं का परिवर्तन करने के बारे में विचार करें।
यह बात प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंटआबू के राजयोगी ब्रह्मïाकुमार भगवानभाई ने कही। वे जिला जेल में संस्कार परिवर्तन कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होनें कैदियों को संबोधित करते हुए कहा एकांत में बैठकर विचार करो कि मैं इस संसार में क्यों आया हूं। मेरे जीवन का उद्ïदेश्य क्या है। सोचो कि मुझे परमात्मा ने किस उद्देश्य से इस धरती पर भेजा है, मैँ यहां आकर क्या कर रहा हूं? ऐसी बातों का चिंतन करने से संस्कार परिवर्तन होगा। श्री भगवानभाई ने कहा कारागृह आपके जीवन में परिवर्तन लाने के लिए तपोस्थली है। बीती घटनाओं व समस्याओं का चिंतन करने से मनुष्य दु:खी,अशांत बनता है। इसलिए उन्हें भूलाकर उनसे सीख लेना ही समझदारी है। ऐसा कोई कर्म ना करें जिससे हमें धर्मराजपुरी में सिर झुकाना पड़े। हमारी दृष्टि, वृत्ति में अवगुण और बुराइयां बसी हंै। उन्हें दूर भगाना है। लडऩा, झगडऩा, चोरी करना, लोभ करना ये सब हमारे दुश्मन हैैं। बुराइयां दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान है। इन अवगुणों और बुराइयों ने हमें कंगाल बनाया है। आज हमारे व्यवहार में आसुरियता आने का मूल कारण हमारा अशुद्ध आहार, अशुद्ध व्यवहार औैैर बुरी संगत है। परमात्मा ने यहां सभी बातों से मुक्त कर स्वयं में परिवर्तन लाने का अवसर दिया है। अब यहां बैठकर स्वयं को टटोलना है और अपने इंद्रियों को वश में कर स्वयं में सुधार लाना है। उन्होंने कहा इस कारागृहरूपी तपोस्थली पर स्वयं में सुधार लाकर फिर समाज में जाना है। कर्मों की गुढ़ गति का ज्ञान बताते हुए कहा हम लोभ लालच में आकर उसका दुरुपयोग करते हैं तो उसकी सजा दु:ख व अशांति के रूप में हमें ही भोगनी पड़ती है। भगवानभाई ने कहा स्वयं के संस्कार में परिवर्तन लाने का आधार है सत्संग व प्रभु चिंतन, जिससे हमारा मनोबल और आत्मबल बढ़ता है। प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय शाखा के बीके योगेंंद्र वाणी ने कहा वास्तव मे मनुष्य जन्म से अपराधी नहीं होता, बल्कि गलत संगत व लालच से गलतियां कर बैठता है। वास्तव में मनुष्य की गलतियां ही उसे इंसान बना सकती हैं।अब स्वयं का परिवर्तन करने की आवश्यकता है। उन्होंने ब्रह्मïाकुमारी विद्यालय में सिखाए जाने वाले राजयोग का महत्व बताया। कार्यक्रम को जेल अधीक्षक संतोष सोलकी ने भी संबोधित
यह कारागृह नहीं बल्कि सुधारगृह है। यहां आपको स्वयं में सुधार लाना है। कारागृह के इस एकांत स्थान पर बैठकर स्वयं का परिवर्तन करने के बारे में विचार करें बुराइयों को दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान साहित्य वितरण करते हुए भगवानभाई।
यह कारागृह नहीं बल्कि सुधारगृह है। यहां आपको स्वयं में सुधार लाना है। कारागृह के इस एकांत स्थान पर बैठकर स्वयं का परिवर्तन करने के बारे में विचार करें
बुराइयों को दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान
साहित्य वितरण करते हुए भगवानभाई।
भास्कर संवाददाता. आलीराजपुर
यह कारागृह नहीं बल्कि सुधारगृह है। यहां आपको स्वयं में सुधार लाना है। कारागृह के इस एकांत स्थान पर बैठकर स्वयं का परिवर्तन करने के बारे में विचार करें।
यह बात प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंटआबू के राजयोगी ब्रह्मïाकुमार भगवानभाई ने कही। वे जिला जेल में संस्कार परिवर्तन कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होनें कैदियों को संबोधित करते हुए कहा एकांत में बैठकर विचार करो कि मैं इस संसार में क्यों आया हूं। मेरे जीवन का उद्ïदेश्य क्या है। सोचो कि मुझे परमात्मा ने किस उद्देश्य से इस धरती पर भेजा है, मैँ यहां आकर क्या कर रहा हूं? ऐसी बातों का चिंतन करने से संस्कार परिवर्तन होगा। श्री भगवानभाई ने कहा कारागृह आपके जीवन में परिवर्तन लाने के लिए तपोस्थली है। बीती घटनाओं व समस्याओं का चिंतन करने से मनुष्य दु:खी,अशांत बनता है। इसलिए उन्हें भूलाकर उनसे सीख लेना ही समझदारी है। ऐसा कोई कर्म ना करें जिससे हमें धर्मराजपुरी में सिर झुकाना पड़े। हमारी दृष्टि, वृत्ति में अवगुण और बुराइयां बसी हंै। उन्हें दूर भगाना है। लडऩा, झगडऩा, चोरी करना, लोभ करना ये सब हमारे दुश्मन हैैं। बुराइयां दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान है। इन अवगुणों और बुराइयों ने हमें कंगाल बनाया है। आज हमारे व्यवहार में आसुरियता आने का मूल कारण हमारा अशुद्ध आहार, अशुद्ध व्यवहार औैैर बुरी संगत है। परमात्मा ने यहां सभी बातों से मुक्त कर स्वयं में परिवर्तन लाने का अवसर दिया है। अब यहां बैठकर स्वयं को टटोलना है और अपने इंद्रियों को वश में कर स्वयं में सुधार लाना है। उन्होंने कहा इस कारागृहरूपी तपोस्थली पर स्वयं में सुधार लाकर फिर समाज में जाना है। कर्मों की गुढ़ गति का ज्ञान बताते हुए कहा हम लोभ लालच में आकर उसका दुरुपयोग करते हैं तो उसकी सजा दु:ख व अशांति के रूप में हमें ही भोगनी पड़ती है। भगवानभाई ने कहा स्वयं के संस्कार में परिवर्तन लाने का आधार है सत्संग व प्रभु चिंतन, जिससे हमारा मनोबल और आत्मबल बढ़ता है। प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय शाखा के बीके योगेंंद्र वाणी ने कहा वास्तव मे मनुष्य जन्म से अपराधी नहीं होता, बल्कि गलत संगत व लालच से गलतियां कर बैठता है। वास्तव में मनुष्य की गलतियां ही उसे इंसान बना सकती हैं।अब स्वयं का परिवर्तन करने की आवश्यकता है। उन्होंने ब्रह्मïाकुमारी विद्यालय में सिखाए जाने वाले राजयोग का महत्व बताया। कार्यक्रम को जेल अधीक्षक संतोष सोलकी ने भी संबोधित
बुराइयों को दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान
साहित्य वितरण करते हुए भगवानभाई।
भास्कर संवाददाता. आलीराजपुर
यह कारागृह नहीं बल्कि सुधारगृह है। यहां आपको स्वयं में सुधार लाना है। कारागृह के इस एकांत स्थान पर बैठकर स्वयं का परिवर्तन करने के बारे में विचार करें।
यह बात प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंटआबू के राजयोगी ब्रह्मïाकुमार भगवानभाई ने कही। वे जिला जेल में संस्कार परिवर्तन कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होनें कैदियों को संबोधित करते हुए कहा एकांत में बैठकर विचार करो कि मैं इस संसार में क्यों आया हूं। मेरे जीवन का उद्ïदेश्य क्या है। सोचो कि मुझे परमात्मा ने किस उद्देश्य से इस धरती पर भेजा है, मैँ यहां आकर क्या कर रहा हूं? ऐसी बातों का चिंतन करने से संस्कार परिवर्तन होगा। श्री भगवानभाई ने कहा कारागृह आपके जीवन में परिवर्तन लाने के लिए तपोस्थली है। बीती घटनाओं व समस्याओं का चिंतन करने से मनुष्य दु:खी,अशांत बनता है। इसलिए उन्हें भूलाकर उनसे सीख लेना ही समझदारी है। ऐसा कोई कर्म ना करें जिससे हमें धर्मराजपुरी में सिर झुकाना पड़े। हमारी दृष्टि, वृत्ति में अवगुण और बुराइयां बसी हंै। उन्हें दूर भगाना है। लडऩा, झगडऩा, चोरी करना, लोभ करना ये सब हमारे दुश्मन हैैं। बुराइयां दूर करना ही आदर्श मनुष्य की पहचान है। इन अवगुणों और बुराइयों ने हमें कंगाल बनाया है। आज हमारे व्यवहार में आसुरियता आने का मूल कारण हमारा अशुद्ध आहार, अशुद्ध व्यवहार औैैर बुरी संगत है। परमात्मा ने यहां सभी बातों से मुक्त कर स्वयं में परिवर्तन लाने का अवसर दिया है। अब यहां बैठकर स्वयं को टटोलना है और अपने इंद्रियों को वश में कर स्वयं में सुधार लाना है। उन्होंने कहा इस कारागृहरूपी तपोस्थली पर स्वयं में सुधार लाकर फिर समाज में जाना है। कर्मों की गुढ़ गति का ज्ञान बताते हुए कहा हम लोभ लालच में आकर उसका दुरुपयोग करते हैं तो उसकी सजा दु:ख व अशांति के रूप में हमें ही भोगनी पड़ती है। भगवानभाई ने कहा स्वयं के संस्कार में परिवर्तन लाने का आधार है सत्संग व प्रभु चिंतन, जिससे हमारा मनोबल और आत्मबल बढ़ता है। प्रजापिता ब्रह्मïाकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय शाखा के बीके योगेंंद्र वाणी ने कहा वास्तव मे मनुष्य जन्म से अपराधी नहीं होता, बल्कि गलत संगत व लालच से गलतियां कर बैठता है। वास्तव में मनुष्य की गलतियां ही उसे इंसान बना सकती हैं।अब स्वयं का परिवर्तन करने की आवश्यकता है। उन्होंने ब्रह्मïाकुमारी विद्यालय में सिखाए जाने वाले राजयोग का महत्व बताया। कार्यक्रम को जेल अधीक्षक संतोष सोलकी ने भी संबोधित
प्लेटिनम जुबली के उपलक्ष्य में माउंट आबू से आए भगवानभाई ने
जोबट में भगवानभाई ने कहा- ‘मैं’ मनुष्य के पतन का कारण
जोबट में भगवानभाई ने कहा- ‘मैं’ मनुष्य के पतन का कारण
जोबट & ‘मैं’ मनुष्य के पतन का कारण है। इसकी बलि चढ़ाकर शरीर रूपी घर में आत्मा रूपी दीपक जलाओ। ईष्र्या रूपी कचरे को पॉजिटिव सोच से साफ करो तो आपके घरों में संपन्नता निवास करने लगेगी।यह बात ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की प्लेटिनम जुबली पर स्थानीय अगाल धर्मशाला में रोजयोग प्रशिक्षण कार्यक्रम में भगवान भाई ने कही। उन्होंने कहा वर्तमान में हर व्यक्ति तनाव से ग्रसित है। इस कारण जीवन में कोई रस नहीं आता बल्कि दूसरों में बुराई नजर आती है। नकारात्मक सोच मनुष्य को गर्त में ले जाती है व सकारात्मक सोच परम आनंद के साथ परमात्मा से जोड़ती है। भगवान भाई ने कहा जब मनुष्य जन्म लेता है तो उसमें कोई विकास नहीं होता, किंतु कर्मों की गति से काम, क्रोध, मोह, अहंकार उत्पन्न होते हैं। ऐसे विकार हमारे शत्रु हैं। मुख्य अतिथि पूर्व विधायक माधौसिंह डावर ने तनावमुक्त जीवन के लिए एक बुराई त्यागने की बात शिविर में उपस्थित लोगों से की। श्री डावर ने जोबट में भी ध्यान केंद्र स्थापित करने में सहयोग देने की अपील की। अध्यक्षता कर रहे पं. नटवर श्यामा शर्मा ने भी संबोधित किया। इसके पूर्व उपजेल जोबट में भी बंदियों को सद्मार्ग अपनाने के लिए व्याख्यान भगवान भाई ने दिए। अतिथियों का स्वागत यशपाल शर्मा ने किया।
Posted by BK BHAGWAN BRAHMAKUMARIS MOUNT ABU ARTIKAL at 12:47 PM 0 comments
Labels: भगवान भाई
क्रोध का प्रारंभ मूढ़ता से और अंत पश्चाताप से ब्रह्माकुमारी सेवा केंद्र पर माउंट आबू के राजयोगी भगवानभाई ने कहा भास्कर संवाददाता & आलीराजपुर
क्रोध का प्रारंभ मूढ़ता से और अंत पश्चाताप से
ब्रह्माकुमारी सेवा केंद्र पर माउंट आबू के राजयोगी भगवानभाई ने कहा
भास्कर संवाददाता & आलीराजपुर
क्रोध का प्रारंभ मूढ़ता से होता है और अंत पश्चाताप से, क्रोध विवेक को नष्ट करता है। क्रोध से तनाव और तनाव से अनेक बीमारियां पैदा होती हैं। क्रोध के कारण ही मन की एकाग्रता खत्म होती है, जिस कारण जीवन अशांत बन जाता है।
यह बात प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू के राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ने कही। वे स्थानीय ब्रह्माकुमारी सेवाकेंद्र पर ईश्वरप्रेमी भाई बहनों को क्रोधमुक्त जीवन विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा क्रोध मनुष्य को शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर बनाता है। क्रोध की अग्नि में स्वयं भी जलते हैं और दूसरों को भी जलाते हैं। यही मनुष्य से पाप कराता है। भगवान भाई ने क्रोध पर काबू पाने के भी उपाय बताए। उन्होंने कहा राजयोग के अभ्यास द्वारा क्रोध पर काबू पाया जा सकता है। आत्मनिश्चय कर परमपिता परमात्मा को मन बुद्धि द्वारा याद करना, उनके गुणगान करना ही राजयोग है। राजयोग द्वारा ही हम अपने कर्म इंद्रियों पर संयम रख सकते हैं। सेवा केंद्र की संचालिका बीके माधुरी बहन ने कहा राजयोग द्वारा ही मन को सच्ची शांति प्राप्त होती है। कार्यक्रम के अंत में भगवानभाई ने सभी को राजयोग का अभ्यास करवाया।
जोबट में भगवानभाई ने कहा- ‘मैं’ मनुष्य के पतन का कारण
जोबट में भगवानभाई ने कहा- ‘मैं’ मनुष्य के पतन का कारण
जोबट & ‘मैं’ मनुष्य के पतन का कारण है। इसकी बलि चढ़ाकर शरीर रूपी घर में आत्मा रूपी दीपक जलाओ। ईष्र्या रूपी कचरे को पॉजिटिव सोच से साफ करो तो आपके घरों में संपन्नता निवास करने लगेगी।यह बात ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की प्लेटिनम जुबली पर स्थानीय अगाल धर्मशाला में रोजयोग प्रशिक्षण कार्यक्रम में भगवान भाई ने कही। उन्होंने कहा वर्तमान में हर व्यक्ति तनाव से ग्रसित है। इस कारण जीवन में कोई रस नहीं आता बल्कि दूसरों में बुराई नजर आती है। नकारात्मक सोच मनुष्य को गर्त में ले जाती है व सकारात्मक सोच परम आनंद के साथ परमात्मा से जोड़ती है। भगवान भाई ने कहा जब मनुष्य जन्म लेता है तो उसमें कोई विकास नहीं होता, किंतु कर्मों की गति से काम, क्रोध, मोह, अहंकार उत्पन्न होते हैं। ऐसे विकार हमारे शत्रु हैं। मुख्य अतिथि पूर्व विधायक माधौसिंह डावर ने तनावमुक्त जीवन के लिए एक बुराई त्यागने की बात शिविर में उपस्थित लोगों से की। श्री डावर ने जोबट में भी ध्यान केंद्र स्थापित करने में सहयोग देने की अपील की। अध्यक्षता कर रहे पं. नटवर श्यामा शर्मा ने भी संबोधित किया। इसके पूर्व उपजेल जोबट में भी बंदियों को सद्मार्ग अपनाने के लिए व्याख्यान भगवान भाई ने दिए। अतिथियों का स्वागत यशपाल शर्मा ने किया।
Posted by BK BHAGWAN BRAHMAKUMARIS MOUNT ABU ARTIKAL at 12:47 PM 0 comments
Labels: भगवान भाई
क्रोध का प्रारंभ मूढ़ता से और अंत पश्चाताप से ब्रह्माकुमारी सेवा केंद्र पर माउंट आबू के राजयोगी भगवानभाई ने कहा भास्कर संवाददाता & आलीराजपुर
क्रोध का प्रारंभ मूढ़ता से और अंत पश्चाताप से
ब्रह्माकुमारी सेवा केंद्र पर माउंट आबू के राजयोगी भगवानभाई ने कहा
भास्कर संवाददाता & आलीराजपुर
क्रोध का प्रारंभ मूढ़ता से होता है और अंत पश्चाताप से, क्रोध विवेक को नष्ट करता है। क्रोध से तनाव और तनाव से अनेक बीमारियां पैदा होती हैं। क्रोध के कारण ही मन की एकाग्रता खत्म होती है, जिस कारण जीवन अशांत बन जाता है।
यह बात प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू के राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवानभाई ने कही। वे स्थानीय ब्रह्माकुमारी सेवाकेंद्र पर ईश्वरप्रेमी भाई बहनों को क्रोधमुक्त जीवन विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा क्रोध मनुष्य को शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर बनाता है। क्रोध की अग्नि में स्वयं भी जलते हैं और दूसरों को भी जलाते हैं। यही मनुष्य से पाप कराता है। भगवान भाई ने क्रोध पर काबू पाने के भी उपाय बताए। उन्होंने कहा राजयोग के अभ्यास द्वारा क्रोध पर काबू पाया जा सकता है। आत्मनिश्चय कर परमपिता परमात्मा को मन बुद्धि द्वारा याद करना, उनके गुणगान करना ही राजयोग है। राजयोग द्वारा ही हम अपने कर्म इंद्रियों पर संयम रख सकते हैं। सेवा केंद्र की संचालिका बीके माधुरी बहन ने कहा राजयोग द्वारा ही मन को सच्ची शांति प्राप्त होती है। कार्यक्रम के अंत में भगवानभाई ने सभी को राजयोग का अभ्यास करवाया।
नकारात्मक सोच कई समस्या व बीमारी का कारण नकारात्मक सोच कई समस्या व बीमारी का कारण ब्रह्मकुमारी संस्था प्लेटिनम जुबली के उपलक्ष्य में माउंट आबू से आए भगवानभाई ने कहा- तनाव पूर्ण रहेगी 2१वीं सदी भास्कर संवाददाता & सेंधवा
नकारात्मक सोच कई समस्या व बीमारी का कारण
नकारात्मक सोच कई समस्या व बीमारी का कारण
ब्रह्मकुमारी संस्था
प्लेटिनम जुबली के उपलक्ष्य में माउंट आबू से आए भगवानभाई ने कहा- तनाव पूर्ण रहेगी 2१वीं सदी
भास्कर संवाददाता & सेंधवा
समस्याओं के वर्तमान युग में खुद को तनाव मुक्त रखने के लिए सकारात्मक सोच बहुत जरूरी है। सकारात्मक सोचने वाला व्यक्ति मानसिक, शारीरिक रूप से स्वस्थ रह सकता है। जबकि नकारात्मक सोच अनेक समस्याओं व बीमारी का कारण है।
१९वीं सदी तर्क की थी, २०वीं सदी प्रगति की रही लेकिन २१वीं सदी तनावपूर्ण रहेगी। इन परिस्थितियों में खुद को तनावमुक्त रखने के लिए सकारात्मक सोच की आवश्यकता है। जो व्यक्ति हर बात में सकारात्मक सोच रखता है वही जीवन में सुखी रह सकता है। उन्होंने कहा वर्तमान परिवेश में सहन शक्ति की आवश्यकता है। सहन शुरू में कड़वा है लेकिन उसका अंत मीठा है। महापुरुषों ने अपनी सहनशक्ति के आधार पर ही महानता प्राप्त की है। सहनशक्ति की कमी के कारण ही तनाव उत्पन्न होता है। प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू से आए राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवानभाई ने यह उद्गार व्यक्त किए। वे स्थानीय ब्रह्मकुमारी राजयोग सेवा केंद्र द्वारा गुरुवार सुबह सत्संग भवन में आयोजित कार्यक्रम तनाव मुक्ति विषय पर बोल रहे थे।
चिंता या तनाव में क्यों रहें?: भगवानभाई ने गीता के महावाक्यों का उदाहरण देते हुए कहा जीवन की हर घटना कल्याणकारी है। जो हुआ वह अच्छा हुआ, जो होगा वह भी अच्छा होगा। फिर चिंता या तनाव में रहने की आवश्यकता क्यों? उन्होंने कहा जो व्यक्ति दूसरों का अहित सोचता है वह जीवन में कभी सुखी नहीं रह सकता। न्यूटन के गतिरोधक नियम को बताते हुए कहा यदि कोई हमारे साथ गलत व्यवहार करता है तो इसका मतलब हमने भी कभी उसके साथ भी ऐसा व्यवहार किया होगा। संसार में लागे खुद के दु:खों से तो दु:खी होते हैं लेकिन दूसरों के सुखों के कारण भी दु:खी हो जाते हैं।
मानवीय मूल्यों की कमी समस्याओं का मूल: मानवीय मूल्यों की कमी सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक, पर्यावरणीय आदि सभी समस्याओं का मूल है। भविष्य के नाजुक समय में खुद को सुखी बनाने के लिए सकारात्मक सोच की आवश्यकता है। उन्होंने आध्यात्मिक सत्संग को सकारात्मक सोच का केंद्र बताते हुए कहा सत्संग के माध्यम से ही हम ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। यही हमारी असली संपत्ति है।
राजयोग से रख सकते हैं इंद्रियों पर संयम: स्थानीय सेवा केंद्र की संचालक आशा बहन ने राजयोग का महत्व बताते हुए कहा राजयोग द्वारा हम अपनी इंद्रियों पर संयम रख सकते हैं। राजयोग की विधि के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा परमशक्ति, परमात्मा को मन से याद करना व उनका गुणगान करना ही राजयोग है। इंदौर से आए प्रकाश भाई ने कार्यक्रम की रूपरेखा बताई। उन्होंने बताया यह कार्यक्रम ब्रह्मकुमारी संस्था के ७५ वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में रखा गया है। इस अवसर पर शहर सहित, वरला, जुलवानिया, ठीकरी, राजपुर आदि स्थानों से लोग शामिल हुए। कृष्णाबहन, काया बहन व अंजू बहन ने सहयोग दिया।
नकारात्मक सोच कई समस्या व बीमारी का कारण
ब्रह्मकुमारी संस्था
प्लेटिनम जुबली के उपलक्ष्य में माउंट आबू से आए भगवानभाई ने कहा- तनाव पूर्ण रहेगी 2१वीं सदी
भास्कर संवाददाता & सेंधवा
समस्याओं के वर्तमान युग में खुद को तनाव मुक्त रखने के लिए सकारात्मक सोच बहुत जरूरी है। सकारात्मक सोचने वाला व्यक्ति मानसिक, शारीरिक रूप से स्वस्थ रह सकता है। जबकि नकारात्मक सोच अनेक समस्याओं व बीमारी का कारण है।
१९वीं सदी तर्क की थी, २०वीं सदी प्रगति की रही लेकिन २१वीं सदी तनावपूर्ण रहेगी। इन परिस्थितियों में खुद को तनावमुक्त रखने के लिए सकारात्मक सोच की आवश्यकता है। जो व्यक्ति हर बात में सकारात्मक सोच रखता है वही जीवन में सुखी रह सकता है। उन्होंने कहा वर्तमान परिवेश में सहन शक्ति की आवश्यकता है। सहन शुरू में कड़वा है लेकिन उसका अंत मीठा है। महापुरुषों ने अपनी सहनशक्ति के आधार पर ही महानता प्राप्त की है। सहनशक्ति की कमी के कारण ही तनाव उत्पन्न होता है। प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू से आए राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवानभाई ने यह उद्गार व्यक्त किए। वे स्थानीय ब्रह्मकुमारी राजयोग सेवा केंद्र द्वारा गुरुवार सुबह सत्संग भवन में आयोजित कार्यक्रम तनाव मुक्ति विषय पर बोल रहे थे।
चिंता या तनाव में क्यों रहें?: भगवानभाई ने गीता के महावाक्यों का उदाहरण देते हुए कहा जीवन की हर घटना कल्याणकारी है। जो हुआ वह अच्छा हुआ, जो होगा वह भी अच्छा होगा। फिर चिंता या तनाव में रहने की आवश्यकता क्यों? उन्होंने कहा जो व्यक्ति दूसरों का अहित सोचता है वह जीवन में कभी सुखी नहीं रह सकता। न्यूटन के गतिरोधक नियम को बताते हुए कहा यदि कोई हमारे साथ गलत व्यवहार करता है तो इसका मतलब हमने भी कभी उसके साथ भी ऐसा व्यवहार किया होगा। संसार में लागे खुद के दु:खों से तो दु:खी होते हैं लेकिन दूसरों के सुखों के कारण भी दु:खी हो जाते हैं।
मानवीय मूल्यों की कमी समस्याओं का मूल: मानवीय मूल्यों की कमी सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक, पर्यावरणीय आदि सभी समस्याओं का मूल है। भविष्य के नाजुक समय में खुद को सुखी बनाने के लिए सकारात्मक सोच की आवश्यकता है। उन्होंने आध्यात्मिक सत्संग को सकारात्मक सोच का केंद्र बताते हुए कहा सत्संग के माध्यम से ही हम ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। यही हमारी असली संपत्ति है।
राजयोग से रख सकते हैं इंद्रियों पर संयम: स्थानीय सेवा केंद्र की संचालक आशा बहन ने राजयोग का महत्व बताते हुए कहा राजयोग द्वारा हम अपनी इंद्रियों पर संयम रख सकते हैं। राजयोग की विधि के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा परमशक्ति, परमात्मा को मन से याद करना व उनका गुणगान करना ही राजयोग है। इंदौर से आए प्रकाश भाई ने कार्यक्रम की रूपरेखा बताई। उन्होंने बताया यह कार्यक्रम ब्रह्मकुमारी संस्था के ७५ वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में रखा गया है। इस अवसर पर शहर सहित, वरला, जुलवानिया, ठीकरी, राजपुर आदि स्थानों से लोग शामिल हुए। कृष्णाबहन, काया बहन व अंजू बहन ने सहयोग दिया।
महिला सशक्तिकरण से समाज सशक्त बनेगा -भगवान भाई भास्कर संवाददाता. झाबुआ नारी जागी तो संसार जागा, नारी सोई तो सारा संसार सोया। अगर समाज को सशक्त बनाना महिला सशक्तिकरण से समाज सशक्त बनेगा -भगवान भाई
महिला सशक्तिकरण से समाज सशक्त बनेगा -भगवान भाई भास्कर संवाददाता. झाबुआ नारी जागी तो संसार जागा, नारी सोई तो सारा संसार सोया। अगर समाज को सशक्त बनाना
महिला सशक्तिकरण से समाज सशक्त बनेगा -भगवान भाई
भास्कर संवाददाता. झाबुआ
नारी जागी तो संसार जागा, नारी सोई तो सारा संसार सोया। अगर समाज को सशक्त बनाना है तो नारी जाति को सशक्त करना होगा।
यह बात ब्रह्मïाकुमार भगवान भाई ने कही। वे भारतीय स्त्री शक्ति संगठन में महिला सशक्तिकरण के लिए आध्यात्मिक की आवश्यकता विषय पर बोल रहे थे। भगवान भाई ने कहा नारी सबसे पहली गुरु है। प्राचीन भारत में महान पुरुषों को जन्म देने वाली नारी भी महान थी। इसलिए ऐसे महान पुरुषों का जन्म हुआ, नारी के संस्कार बच्चों में आते हैं।
उन्होंने कहा नारी जब सदगुणों से पूर्ण थी तब देवत्व रूप में थी। लेकिन अब अनेक प्रकार के दुर्गुणों से आज वही नारी दुर्बल और कमजोर बन चुकी है। भगवान भाई ने कहा नारी जाति को स्वयं जाग्रत होना होगा, स्वयं के कत्र्तव्य को पहचानना होगा।
महिला सशक्तिकरण से समाज सशक्त बनेगा -भगवान भाई
भास्कर संवाददाता. झाबुआ
नारी जागी तो संसार जागा, नारी सोई तो सारा संसार सोया। अगर समाज को सशक्त बनाना है तो नारी जाति को सशक्त करना होगा।
यह बात ब्रह्मïाकुमार भगवान भाई ने कही। वे भारतीय स्त्री शक्ति संगठन में महिला सशक्तिकरण के लिए आध्यात्मिक की आवश्यकता विषय पर बोल रहे थे। भगवान भाई ने कहा नारी सबसे पहली गुरु है। प्राचीन भारत में महान पुरुषों को जन्म देने वाली नारी भी महान थी। इसलिए ऐसे महान पुरुषों का जन्म हुआ, नारी के संस्कार बच्चों में आते हैं।
उन्होंने कहा नारी जब सदगुणों से पूर्ण थी तब देवत्व रूप में थी। लेकिन अब अनेक प्रकार के दुर्गुणों से आज वही नारी दुर्बल और कमजोर बन चुकी है। भगवान भाई ने कहा नारी जाति को स्वयं जाग्रत होना होगा, स्वयं के कत्र्तव्य को पहचानना होगा।
‘राजयोग द्वारा मन की शांति संभव’ भास्कर संवाददाता & झाबुआ राजयोग द्वारा हम अपनी इंद्रियों पर संयम रखकर अपने मनोबल को बढ़ा सकते हैं। राजयोग द्वारा आंत ‘राजयोग द्वारा मन की शांति संभव’
‘राजयोग द्वारा मन की शांति संभव’ भास्कर संवाददाता & झाबुआ राजयोग द्वारा हम अपनी इंद्रियों पर संयम रखकर अपने मनोबल को बढ़ा सकते हैं। राजयोग द्वारा आंत
‘राजयोग द्वारा मन की शांति संभव’
भास्कर संवाददाता & झाबुआ
राजयोग द्वारा हम अपनी इंद्रियों पर संयम रखकर अपने मनोबल को बढ़ा सकते हैं। राजयोग द्वारा आंतरिक शक्तियां और सद्गुणों को उभारकर जीवन में निखार ला सकते हैं।
यह बात ब्रह्मïाकुमार भगवान भाई ने स्थानीय ब्रह्मïाकुमारी विश्व विद्यालय में कही। उन्होंने कहा राजयोग के अभ्यास द्वारा सहनशीलता, नम्रता, एकाग्रता, शांति, धैर्यता, अंतर्मुखताऐसे अनेक सद्गुणों का जीवन में विकास कर सकते हैं। राजयोग द्वारा ही मन की शांति भी संभव है। उन्होंने बताया राजयोग के अभ्यास से सुख की प्राप्ति होती है। भगवान भाई ने कहा अपने अनुभव के आधार पर राजयोग के अभ्यास द्वारा विपरीत परिस्थितियों में भी सकारात्मक चिंतन के द्वारा मन को एकाग्र किया जा सकता है। उन्होंने कहा वर्तमान परिवेश तनावपूर्ण परिस्थितियों में मन को एकाग्र और शांत रखने के लिए राजयोग संजीवनी बूटी की तरह काम आता है। राजयोग के अभ्यास से तनाव मुक्त बन हम अनेक बीमारियों से स्वयं को बचा सकते हैं। मानसिक और शारीरिक बीमारियों से बचने का राजयोग एक कवच कुंडल है। उन्होंने कहा राजयोग द्वारा मन को सही दिशा निर्देशन मिलती है जिससे मन का भटकना खत्म हो जाता है। उन्होंने राजयोग की विधि बताते हुए कहा स्वयं को आत्म निश्चय कर चांद, सूर्य, तारांगण से पार रहने वाले परम शक्ति परमात्मा को याद करना, मन, बुद्धि द्वारा उसे देखना, गुणों का गुणगान करना ही राजयोग है।
‘राजयोग द्वारा मन की शांति संभव’
भास्कर संवाददाता & झाबुआ
राजयोग द्वारा हम अपनी इंद्रियों पर संयम रखकर अपने मनोबल को बढ़ा सकते हैं। राजयोग द्वारा आंतरिक शक्तियां और सद्गुणों को उभारकर जीवन में निखार ला सकते हैं।
यह बात ब्रह्मïाकुमार भगवान भाई ने स्थानीय ब्रह्मïाकुमारी विश्व विद्यालय में कही। उन्होंने कहा राजयोग के अभ्यास द्वारा सहनशीलता, नम्रता, एकाग्रता, शांति, धैर्यता, अंतर्मुखताऐसे अनेक सद्गुणों का जीवन में विकास कर सकते हैं। राजयोग द्वारा ही मन की शांति भी संभव है। उन्होंने बताया राजयोग के अभ्यास से सुख की प्राप्ति होती है। भगवान भाई ने कहा अपने अनुभव के आधार पर राजयोग के अभ्यास द्वारा विपरीत परिस्थितियों में भी सकारात्मक चिंतन के द्वारा मन को एकाग्र किया जा सकता है। उन्होंने कहा वर्तमान परिवेश तनावपूर्ण परिस्थितियों में मन को एकाग्र और शांत रखने के लिए राजयोग संजीवनी बूटी की तरह काम आता है। राजयोग के अभ्यास से तनाव मुक्त बन हम अनेक बीमारियों से स्वयं को बचा सकते हैं। मानसिक और शारीरिक बीमारियों से बचने का राजयोग एक कवच कुंडल है। उन्होंने कहा राजयोग द्वारा मन को सही दिशा निर्देशन मिलती है जिससे मन का भटकना खत्म हो जाता है। उन्होंने राजयोग की विधि बताते हुए कहा स्वयं को आत्म निश्चय कर चांद, सूर्य, तारांगण से पार रहने वाले परम शक्ति परमात्मा को याद करना, मन, बुद्धि द्वारा उसे देखना, गुणों का गुणगान करना ही राजयोग है।
स्कूल के स्टूडेंट्स को मूल्य निष्ठा की शिक्षा देने व कैदियों के जीवन में सद्भावना, मूल्य व मानवता को बढ़ावा देने वाले ब्रह्मकुमार भगवान बुधवार से शहर भास्कर न्यूज & बिलासपुर
स्कूल के स्टूडेंट्स को मूल्य निष्ठा की शिक्षा देने व कैदियों के जीवन में सद्भावना, मूल्य व मानवता को बढ़ावा देने वाले ब्रह्मकुमार भगवान बुधवार से शहर
भास्कर न्यूज & बिलासपुर
स्कूल के स्टूडेंट्स को मूल्य निष्ठा की शिक्षा देने व कैदियों के जीवन में सद्भावना, मूल्य व मानवता को बढ़ावा देने वाले ब्रह्मकुमार भगवान बुधवार से शहर में होंगे। हजारों कार्यक्रम के जरिए संदेश देने के उनके प्रयास को इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज किया जा चुका है। वे २० से 24 जुलाई तक विभिन्न स्कूलों व केंद्रीय जेल में अध्यात्म की गंगा बहाएंगे। साथ ही ब्रह्मकुमारी संस्था के सदस्यों को राजयोग, एकाग्रता व ज्ञान का ज्ञान देंगे।
बीके भगवान 1987 से भारत के विभिन्न प्रांतों में जाकर हजारों स्कूली बच्चों व जेलों में बंद कैदियों में मानवता का बीज बोते रहे। मिडिल व हाईस्कूलों के अलावा कॉलेज, आईटीआई सहित कई संस्थाओं में उनके आह्वान पर युवा अध्यात्म की राह पर चल पड़े हैं। अपने मिशन को सफलता दिलाने के लिए उन्होंने पदयात्रा, मोटरसाइकिल व साइकिल यात्रा सहित शिक्षा अभियान, ग्राम विकास अभियान कार्यक्रम संचालित किए। बीके भगवान भाई के अनुसार अगर समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, कुरीतियां, बुराइयां, व्यसन,नशा को समाप्त करना है तो स्कूलों में शिक्षा में परिवर्तन करने होंगे।
भास्कर न्यूज & बिलासपुर
स्कूल के स्टूडेंट्स को मूल्य निष्ठा की शिक्षा देने व कैदियों के जीवन में सद्भावना, मूल्य व मानवता को बढ़ावा देने वाले ब्रह्मकुमार भगवान बुधवार से शहर में होंगे। हजारों कार्यक्रम के जरिए संदेश देने के उनके प्रयास को इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज किया जा चुका है। वे २० से 24 जुलाई तक विभिन्न स्कूलों व केंद्रीय जेल में अध्यात्म की गंगा बहाएंगे। साथ ही ब्रह्मकुमारी संस्था के सदस्यों को राजयोग, एकाग्रता व ज्ञान का ज्ञान देंगे।
बीके भगवान 1987 से भारत के विभिन्न प्रांतों में जाकर हजारों स्कूली बच्चों व जेलों में बंद कैदियों में मानवता का बीज बोते रहे। मिडिल व हाईस्कूलों के अलावा कॉलेज, आईटीआई सहित कई संस्थाओं में उनके आह्वान पर युवा अध्यात्म की राह पर चल पड़े हैं। अपने मिशन को सफलता दिलाने के लिए उन्होंने पदयात्रा, मोटरसाइकिल व साइकिल यात्रा सहित शिक्षा अभियान, ग्राम विकास अभियान कार्यक्रम संचालित किए। बीके भगवान भाई के अनुसार अगर समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, कुरीतियां, बुराइयां, व्यसन,नशा को समाप्त करना है तो स्कूलों में शिक्षा में परिवर्तन करने होंगे।
व्यक्ति नहीं कर्म ही शत्रु
दैनिक भास्कर से खास मुलाकात करते हुए बीके भगवान भाई ने बताया कि व्यक्ति का दुश्मन व्यक्ति नहीं है। मनुष्य के भीतर बसी बुराइयां उसकी दुश्मन हैं। कर्म ही शत्रु हैं और वहीं मित्र हैं। हमारे साथ जो कुछ भी होता है वह भले के लिए ही होता है, कल्याणकारी होता है। भीतरी बुराइयों को दूर करने के लिए इंद्रियों पर संयम रखना सीखें। भगवान भाई ने अपने जीवन के रहस्य खोलते हुए कहा कि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, जिसके चलते 11 साल की उम्र तक वे स्कूल नहीं गए। पढऩे की ललक होने के कारण गांव के स्कूल पहुंचे तो उन्हें टीचर्स ने कक्षा 5वीं में बैठाया। उन्होंने 5वीं से ही पढऩा शुरू किया। दुकानदार से पुरानी लिखी डायरियां लाकर पानी से साफ कर वे फिर इसका इस्तेमाल करते थे, ऐसे में एक दिन ब्रह्माकुमारी संस्था की डायरी हाथ लगी, जिससे पढ़कर वे काफी प्रभावित हुए। मुसाफिरों को पानी बेचकर 10 रुपए कमाए और माउंटआबू संस्था को भेजकर राजयोग की जानकारी मंगाई। पढऩे के बाद से जीवन में बदलाव आ गया और वे पूरी तरह संस्था के लिए समर्पित हो गए। 3000 से अधिक विषयों पर वे लेख लिख चुके हैं, जो हिंदी ज्ञानामृत, अंग्रेजी-द वल्र्ड रिनिवल, मराठी-अमृत कुंभ, उडिय़ा-ज्ञानदर्पण में छपते रहते हैं। इसके साथ ही वीडियो क्लासेस, ब्लॉग्स द्वारा ईश्वरीय संदेश देते हैं।
दंड से नहीं दृष्टि से परिवर्तन
केंद्रीय जेल के उप अधीक्षक आरके ध्रुव ने कार्यक्रम के दौरान कहा कि मनोबल कमजोर होने से अंदर से हम अकेले हो जाते हैं। दंड देकर गलतियां न करने का भय दिखाया जा सकता है, लेकिन सुधारा नहीं जा सकता। दृष्टि, मनोवृत्ति में परिवर्तन करके, आध्यात्मिक चिंतन करके खुद को बुराइयों से बचाया जा सकता है। कैदियों ने इस मौके पर भजनों की प्रस्तुति दी। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी संस्था ने साहित्य बांटे। केंद्रीय जेल अधीक्षक एसके मिश्रा ने इस प्रयास को कैदियों के जीवन में परिवर्तन लाने वाला बताया।
दैनिक भास्कर से खास मुलाकात करते हुए बीके भगवान भाई ने बताया कि व्यक्ति का दुश्मन व्यक्ति नहीं है। मनुष्य के भीतर बसी बुराइयां उसकी दुश्मन हैं। कर्म ही शत्रु हैं और वहीं मित्र हैं। हमारे साथ जो कुछ भी होता है वह भले के लिए ही होता है, कल्याणकारी होता है। भीतरी बुराइयों को दूर करने के लिए इंद्रियों पर संयम रखना सीखें। भगवान भाई ने अपने जीवन के रहस्य खोलते हुए कहा कि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, जिसके चलते 11 साल की उम्र तक वे स्कूल नहीं गए। पढऩे की ललक होने के कारण गांव के स्कूल पहुंचे तो उन्हें टीचर्स ने कक्षा 5वीं में बैठाया। उन्होंने 5वीं से ही पढऩा शुरू किया। दुकानदार से पुरानी लिखी डायरियां लाकर पानी से साफ कर वे फिर इसका इस्तेमाल करते थे, ऐसे में एक दिन ब्रह्माकुमारी संस्था की डायरी हाथ लगी, जिससे पढ़कर वे काफी प्रभावित हुए। मुसाफिरों को पानी बेचकर 10 रुपए कमाए और माउंटआबू संस्था को भेजकर राजयोग की जानकारी मंगाई। पढऩे के बाद से जीवन में बदलाव आ गया और वे पूरी तरह संस्था के लिए समर्पित हो गए। 3000 से अधिक विषयों पर वे लेख लिख चुके हैं, जो हिंदी ज्ञानामृत, अंग्रेजी-द वल्र्ड रिनिवल, मराठी-अमृत कुंभ, उडिय़ा-ज्ञानदर्पण में छपते रहते हैं। इसके साथ ही वीडियो क्लासेस, ब्लॉग्स द्वारा ईश्वरीय संदेश देते हैं।
दंड से नहीं दृष्टि से परिवर्तन
केंद्रीय जेल के उप अधीक्षक आरके ध्रुव ने कार्यक्रम के दौरान कहा कि मनोबल कमजोर होने से अंदर से हम अकेले हो जाते हैं। दंड देकर गलतियां न करने का भय दिखाया जा सकता है, लेकिन सुधारा नहीं जा सकता। दृष्टि, मनोवृत्ति में परिवर्तन करके, आध्यात्मिक चिंतन करके खुद को बुराइयों से बचाया जा सकता है। कैदियों ने इस मौके पर भजनों की प्रस्तुति दी। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी संस्था ने साहित्य बांटे। केंद्रीय जेल अधीक्षक एसके मिश्रा ने इस प्रयास को कैदियों के जीवन में परिवर्तन लाने वाला बताया।
सलाखों के पीछे सात जन्मों का ज्ञान अध्यात्म & वल्र्ड रिकार्डहोल्डर भगवान भाई कैदियों के बीच पहुंचे, जेल को तपोभूमि बनाने का किया आह्वान सलाखों के पीछे सात जन्मों का ज्ञान
सलाखों के पीछे सात जन्मों का ज्ञान अध्यात्म & वल्र्ड रिकार्डहोल्डर भगवान भाई कैदियों के बीच पहुंचे, जेल को तपोभूमि बनाने का किया आह्वान
सलाखों के पीछे सात जन्मों का ज्ञान
अध्यात्म & वल्र्ड रिकार्ड होल्डर भगवान भाई कैदियों के बीच पहुंचे, जेल को तपोभूमि बनाने का किया आह्वान व्यक्ति नहीं कर्म ही शत्रु
दैनिक भास्कर से खास मुलाकात करते हुए बीके भगवान भाई ने बताया कि व्यक्ति का दुश्मन व्यक्ति नहीं है। मनुष्य के भीतर बसी बुराइयां उसकी दुश्मन हैं। कर्म ही शत्रु हैं और वहीं मित्र हैं। हमारे साथ जो कुछ भी होता है वह भले के लिए ही होता है, कल्याणकारी होता है। भीतरी बुराइयों को दूर करने के लिए इंद्रियों पर संयम रखना सीखें। भगवान भाई ने अपने जीवन के रहस्य खोलते हुए कहा कि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, जिसके चलते 11 साल की उम्र तक वे स्कूल नहीं गए। पढऩे की ललक होने के कारण गांव के स्कूल पहुंचे तो उन्हें टीचर्स ने कक्षा 5वीं में बैठाया। उन्होंने 5वीं से ही पढऩा शुरू किया। दुकानदार से पुरानी लिखी डायरियां लाकर पानी से साफ कर वे फिर इसका इस्तेमाल करते थे, ऐसे में एक दिन ब्रह्माकुमारी संस्था की डायरी हाथ लगी, जिससे पढ़कर वे काफी प्रभावित हुए। मुसाफिरों को पानी बेचकर 10 रुपए कमाए और माउंटआबू संस्था को भेजकर राजयोग की जानकारी मंगाई। पढऩे के बाद से जीवन में बदलाव आ गया और वे पूरी तरह संस्था के लिए समर्पित हो गए। 3000 से अधिक विषयों पर वे लेख लिख चुके हैं, जो हिंदी ज्ञानामृत, अंग्रेजी-द वल्र्ड रिनिवल, मराठी-अमृत कुंभ, उडिय़ा-ज्ञानदर्पण में छपते रहते हैं। इसके साथ ही वीडियो क्लासेस, ब्लॉग्स द्वारा ईश्वरीय संदेश देते हैं।
दंड से नहीं दृष्टि से परिवर्तन
केंद्रीय जेल के उप अधीक्षक आरके ध्रुव ने कार्यक्रम के दौरान कहा कि मनोबल कमजोर होने से अंदर से हम अकेले हो जाते हैं। दंड देकर गलतियां न करने का भय दिखाया जा सकता है, लेकिन सुधारा नहीं जा सकता। दृष्टि, मनोवृत्ति में परिवर्तन करके, आध्यात्मिक चिंतन करके खुद को बुराइयों से बचाया जा सकता है। कैदियों ने इस मौके पर भजनों की प्रस्तुति दी। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी संस्था ने साहित्य बांटे। केंद्रीय जेल अधीक्षक एसके मिश्रा ने इस प्रयास को कैदियों के जीवन में परिवर्तन लाने वाला बताया।
सलाखों के पीछे सात जन्मों का ज्ञान
अध्यात्म & वल्र्ड रिकार्ड होल्डर भगवान भाई कैदियों के बीच पहुंचे, जेल को तपोभूमि बनाने का किया आह्वान व्यक्ति नहीं कर्म ही शत्रु
दैनिक भास्कर से खास मुलाकात करते हुए बीके भगवान भाई ने बताया कि व्यक्ति का दुश्मन व्यक्ति नहीं है। मनुष्य के भीतर बसी बुराइयां उसकी दुश्मन हैं। कर्म ही शत्रु हैं और वहीं मित्र हैं। हमारे साथ जो कुछ भी होता है वह भले के लिए ही होता है, कल्याणकारी होता है। भीतरी बुराइयों को दूर करने के लिए इंद्रियों पर संयम रखना सीखें। भगवान भाई ने अपने जीवन के रहस्य खोलते हुए कहा कि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, जिसके चलते 11 साल की उम्र तक वे स्कूल नहीं गए। पढऩे की ललक होने के कारण गांव के स्कूल पहुंचे तो उन्हें टीचर्स ने कक्षा 5वीं में बैठाया। उन्होंने 5वीं से ही पढऩा शुरू किया। दुकानदार से पुरानी लिखी डायरियां लाकर पानी से साफ कर वे फिर इसका इस्तेमाल करते थे, ऐसे में एक दिन ब्रह्माकुमारी संस्था की डायरी हाथ लगी, जिससे पढ़कर वे काफी प्रभावित हुए। मुसाफिरों को पानी बेचकर 10 रुपए कमाए और माउंटआबू संस्था को भेजकर राजयोग की जानकारी मंगाई। पढऩे के बाद से जीवन में बदलाव आ गया और वे पूरी तरह संस्था के लिए समर्पित हो गए। 3000 से अधिक विषयों पर वे लेख लिख चुके हैं, जो हिंदी ज्ञानामृत, अंग्रेजी-द वल्र्ड रिनिवल, मराठी-अमृत कुंभ, उडिय़ा-ज्ञानदर्पण में छपते रहते हैं। इसके साथ ही वीडियो क्लासेस, ब्लॉग्स द्वारा ईश्वरीय संदेश देते हैं।
दंड से नहीं दृष्टि से परिवर्तन
केंद्रीय जेल के उप अधीक्षक आरके ध्रुव ने कार्यक्रम के दौरान कहा कि मनोबल कमजोर होने से अंदर से हम अकेले हो जाते हैं। दंड देकर गलतियां न करने का भय दिखाया जा सकता है, लेकिन सुधारा नहीं जा सकता। दृष्टि, मनोवृत्ति में परिवर्तन करके, आध्यात्मिक चिंतन करके खुद को बुराइयों से बचाया जा सकता है। कैदियों ने इस मौके पर भजनों की प्रस्तुति दी। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी संस्था ने साहित्य बांटे। केंद्रीय जेल अधीक्षक एसके मिश्रा ने इस प्रयास को कैदियों के जीवन में परिवर्तन लाने वाला बताया।
सलाखों के पीछे सात जन्मों का ज्ञान अध्यात्म & वल्र्ड रिकार्डहोल्डर भगवान भाई कैदियों के बीच पहुंचे, जेल को तपोभूमि बनाने का किया आह्वान सलाखों के पीछे सात जन्मों का ज्ञान
सलाखों के पीछे सात जन्मों का ज्ञान अध्यात्म & वल्र्ड रिकार्डहोल्डर भगवान भाई कैदियों के बीच पहुंचे, जेल को तपोभूमि बनाने का किया आह्वान
सलाखों के पीछे सात जन्मों का ज्ञान
अध्यात्म & वल्र्ड रिकार्ड होल्डर भगवान भाई कैदियों के बीच पहुंचे, जेल को तपोभूमि बनाने का किया आह्वान व्यक्ति नहीं कर्म ही शत्रु
दैनिक भास्कर से खास मुलाकात करते हुए बीके भगवान भाई ने बताया कि व्यक्ति का दुश्मन व्यक्ति नहीं है। मनुष्य के भीतर बसी बुराइयां उसकी दुश्मन हैं। कर्म ही शत्रु हैं और वहीं मित्र हैं। हमारे साथ जो कुछ भी होता है वह भले के लिए ही होता है, कल्याणकारी होता है। भीतरी बुराइयों को दूर करने के लिए इंद्रियों पर संयम रखना सीखें। भगवान भाई ने अपने जीवन के रहस्य खोलते हुए कहा कि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, जिसके चलते 11 साल की उम्र तक वे स्कूल नहीं गए। पढऩे की ललक होने के कारण गांव के स्कूल पहुंचे तो उन्हें टीचर्स ने कक्षा 5वीं में बैठाया। उन्होंने 5वीं से ही पढऩा शुरू किया। दुकानदार से पुरानी लिखी डायरियां लाकर पानी से साफ कर वे फिर इसका इस्तेमाल करते थे, ऐसे में एक दिन ब्रह्माकुमारी संस्था की डायरी हाथ लगी, जिससे पढ़कर वे काफी प्रभावित हुए। मुसाफिरों को पानी बेचकर 10 रुपए कमाए और माउंटआबू संस्था को भेजकर राजयोग की जानकारी मंगाई। पढऩे के बाद से जीवन में बदलाव आ गया और वे पूरी तरह संस्था के लिए समर्पित हो गए। 3000 से अधिक विषयों पर वे लेख लिख चुके हैं, जो हिंदी ज्ञानामृत, अंग्रेजी-द वल्र्ड रिनिवल, मराठी-अमृत कुंभ, उडिय़ा-ज्ञानदर्पण में छपते रहते हैं। इसके साथ ही वीडियो क्लासेस, ब्लॉग्स द्वारा ईश्वरीय संदेश देते हैं।
दंड से नहीं दृष्टि से परिवर्तन
केंद्रीय जेल के उप अधीक्षक आरके ध्रुव ने कार्यक्रम के दौरान कहा कि मनोबल कमजोर होने से अंदर से हम अकेले हो जाते हैं। दंड देकर गलतियां न करने का भय दिखाया जा सकता है, लेकिन सुधारा नहीं जा सकता। दृष्टि, मनोवृत्ति में परिवर्तन करके, आध्यात्मिक चिंतन करके खुद को बुराइयों से बचाया जा सकता है। कैदियों ने इस मौके पर भजनों की प्रस्तुति दी। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी संस्था ने साहित्य बांटे। केंद्रीय जेल अधीक्षक एसके मिश्रा ने इस प्रयास को कैदियों के जीवन में परिवर्तन लाने वाला बताया।
सलाखों के पीछे सात जन्मों का ज्ञान
अध्यात्म & वल्र्ड रिकार्ड होल्डर भगवान भाई कैदियों के बीच पहुंचे, जेल को तपोभूमि बनाने का किया आह्वान व्यक्ति नहीं कर्म ही शत्रु
दैनिक भास्कर से खास मुलाकात करते हुए बीके भगवान भाई ने बताया कि व्यक्ति का दुश्मन व्यक्ति नहीं है। मनुष्य के भीतर बसी बुराइयां उसकी दुश्मन हैं। कर्म ही शत्रु हैं और वहीं मित्र हैं। हमारे साथ जो कुछ भी होता है वह भले के लिए ही होता है, कल्याणकारी होता है। भीतरी बुराइयों को दूर करने के लिए इंद्रियों पर संयम रखना सीखें। भगवान भाई ने अपने जीवन के रहस्य खोलते हुए कहा कि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, जिसके चलते 11 साल की उम्र तक वे स्कूल नहीं गए। पढऩे की ललक होने के कारण गांव के स्कूल पहुंचे तो उन्हें टीचर्स ने कक्षा 5वीं में बैठाया। उन्होंने 5वीं से ही पढऩा शुरू किया। दुकानदार से पुरानी लिखी डायरियां लाकर पानी से साफ कर वे फिर इसका इस्तेमाल करते थे, ऐसे में एक दिन ब्रह्माकुमारी संस्था की डायरी हाथ लगी, जिससे पढ़कर वे काफी प्रभावित हुए। मुसाफिरों को पानी बेचकर 10 रुपए कमाए और माउंटआबू संस्था को भेजकर राजयोग की जानकारी मंगाई। पढऩे के बाद से जीवन में बदलाव आ गया और वे पूरी तरह संस्था के लिए समर्पित हो गए। 3000 से अधिक विषयों पर वे लेख लिख चुके हैं, जो हिंदी ज्ञानामृत, अंग्रेजी-द वल्र्ड रिनिवल, मराठी-अमृत कुंभ, उडिय़ा-ज्ञानदर्पण में छपते रहते हैं। इसके साथ ही वीडियो क्लासेस, ब्लॉग्स द्वारा ईश्वरीय संदेश देते हैं।
दंड से नहीं दृष्टि से परिवर्तन
केंद्रीय जेल के उप अधीक्षक आरके ध्रुव ने कार्यक्रम के दौरान कहा कि मनोबल कमजोर होने से अंदर से हम अकेले हो जाते हैं। दंड देकर गलतियां न करने का भय दिखाया जा सकता है, लेकिन सुधारा नहीं जा सकता। दृष्टि, मनोवृत्ति में परिवर्तन करके, आध्यात्मिक चिंतन करके खुद को बुराइयों से बचाया जा सकता है। कैदियों ने इस मौके पर भजनों की प्रस्तुति दी। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी संस्था ने साहित्य बांटे। केंद्रीय जेल अधीक्षक एसके मिश्रा ने इस प्रयास को कैदियों के जीवन में परिवर्तन लाने वाला बताया।
वेल्यू एजुकेशन के अभाव में युवाओं में भटकाव बीके भगवान ने रेलवे स्कूल में विद्यार्थियों को सिखाया नैतिकता का पाठ स्र46बिलासपुर & मूल्य शिक्षा अभियान वेल्यू एजुकेशन के अभाव में युवाओं में भटकाव
वेल्यू एजुकेशन के अभाव में युवाओं में भटकाव बीके भगवान ने रेलवे स्कूल में विद्यार्थियों को सिखाया नैतिकता का पाठ स्र46बिलासपुर & मूल्य शिक्षा अभियान
वेल्यू एजुकेशन के अभाव में युवाओं में भटकाव
बीके भगवान ने रेलवे स्कूल में विद्यार्थियों को सिखाया नैतिकता का पाठ
स्र46बिलासपुर & मूल्य शिक्षा अभियान के माध्यम से इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज कर चुके बीके भगवान भाई गुरुवार को शहर के रेलवे स्कूल पहुंचे।
स्कूल में बीके भगवान ने कहा कि स्कूल ही शिक्षा का वो समुदाय है जहां हर वर्ग, धर्म, जाति के बच्चे पढऩे आते हैं। इन्हीं में से आगे चलकर विद्यार्थी इंजीनियर, डॉक्टर, टीचर, वकील बनते हैं। बाल्यावस्था में ही यदि नैतिक शिक्षा से अच्छे संस्कारों के बीज रोपें तो विद्यार्थियों के साथ समाज, देश का भविष्य भी सुनहरा होगा। वेल्यू एजुकेशन के अभाव में युवाओं में नैतिकता, धैर्यता, ईमानदारी गुणों की कमी हो रही है। बचपन में ही सही शिक्षा व संस्कार देना जरूरी है।
एसईसी रेलवे मिक्स्ड हायर सेकंडरी इंग्लिश मीडियम की छात्र-छात्राओं को सकारात्मक चिंतन का महत्व समझाते हुए भगवान भाई ने कहा कि इससे समाज में मूल्यों की खुशबू फैलती है। इसी से जीवन कीं हर समस्या का समाधान हो सकता है।
सिन-मा यानी सिनेमा है पाप की मां
भगवान भाई ने कहा कि बच्चे व युवा कुसंगति, सिनेमा, व्यसन, फैशन सहित 4 के फेर में पड़े हैं। इंटरनेट, मोबाइल का गलत उपयोग करते हुए दोस्तों की संगत में न चाहते हुए भी कई बार वे गलत राह पर चल देते हैं। धीरे-धीरे गलत कामों के संस्कार उनमें पड़ जाते हैं। नकारात्मक सोच होगी तो नकारात्मक जीवन बनेगा। आजकल युवा फैशन से आउटर पर्सनालिटी को निखारने में लगे रहते हैं।
वेल्यू एजुकेशन के अभाव में युवाओं में भटकाव
बीके भगवान ने रेलवे स्कूल में विद्यार्थियों को सिखाया नैतिकता का पाठ
स्र46बिलासपुर & मूल्य शिक्षा अभियान के माध्यम से इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज कर चुके बीके भगवान भाई गुरुवार को शहर के रेलवे स्कूल पहुंचे।
स्कूल में बीके भगवान ने कहा कि स्कूल ही शिक्षा का वो समुदाय है जहां हर वर्ग, धर्म, जाति के बच्चे पढऩे आते हैं। इन्हीं में से आगे चलकर विद्यार्थी इंजीनियर, डॉक्टर, टीचर, वकील बनते हैं। बाल्यावस्था में ही यदि नैतिक शिक्षा से अच्छे संस्कारों के बीज रोपें तो विद्यार्थियों के साथ समाज, देश का भविष्य भी सुनहरा होगा। वेल्यू एजुकेशन के अभाव में युवाओं में नैतिकता, धैर्यता, ईमानदारी गुणों की कमी हो रही है। बचपन में ही सही शिक्षा व संस्कार देना जरूरी है।
एसईसी रेलवे मिक्स्ड हायर सेकंडरी इंग्लिश मीडियम की छात्र-छात्राओं को सकारात्मक चिंतन का महत्व समझाते हुए भगवान भाई ने कहा कि इससे समाज में मूल्यों की खुशबू फैलती है। इसी से जीवन कीं हर समस्या का समाधान हो सकता है।
सिन-मा यानी सिनेमा है पाप की मां
भगवान भाई ने कहा कि बच्चे व युवा कुसंगति, सिनेमा, व्यसन, फैशन सहित 4 के फेर में पड़े हैं। इंटरनेट, मोबाइल का गलत उपयोग करते हुए दोस्तों की संगत में न चाहते हुए भी कई बार वे गलत राह पर चल देते हैं। धीरे-धीरे गलत कामों के संस्कार उनमें पड़ जाते हैं। नकारात्मक सोच होगी तो नकारात्मक जीवन बनेगा। आजकल युवा फैशन से आउटर पर्सनालिटी को निखारने में लगे रहते हैं।
राजयोग से आंतरिक शक्तियों व सद्गुणों को उभार कर व्यवहार में निखार लाया जा सकता है। इंद्रियों पर संयम रखने से मनोबल बढ़ता है। माउंट आबू से आए राजयोगी भ ‘चिंता है चिता की जड़’
राजयोग से आंतरिक शक्तियों व सद्गुणों को उभार कर व्यवहार में निखार लाया जा सकता है। इंद्रियों पर संयम रखने से मनोबल बढ़ता है। माउंट आबू से आए राजयोगी भ
‘चिंता है चिता की जड़’
स्र46 भास्कर न्यूज & बिलासपुर
राजयोग से आंतरिक शक्तियों व सद्गुणों को उभार कर व्यवहार में निखार लाया जा सकता है। इंद्रियों पर संयम रखने से मनोबल बढ़ता है। माउंट आबू से आए राजयोग से आंतरिक शक्तियों व सद्गुणों को उभार कर व्यवहार में निखार लाया जा सकता है। इंद्रियों पर संयम रखने से मनोबल बढ़ता है। माउंट आबू से आए राजयोगी भगवान भाई
‘चिंता है चिता की जड़’ के सदस्यों को राजयोग के विशेष अभ्यास से सहनशीलता, नम्रता, एकाग्रता, शांति, धैर्यता व सद्गुणों का विकास करने पर बल देते हुए कहा कि दूसरों को देखकर चिंतित होना, नकारात्मकता से घिर जाना पतन की जड़ है। ऐसा व्यक्ति जीवन में कभी भी सुखी नहीं हो सकता।
उसलापुर स्थित ब्रह्माकुमारी शांति सरोवर में राजयोग साधना से संस्कार परिवर्तन कार्यक्रम के दौरान भगवान भाई ने कहा कि पर चिंतन करने वाला व दूसरों को देखने वाला हमेशा तनाव में रहता है, जबकि स्वचिंतन से आंतरिक कमजोरियों की जांच कर उसे बदला जा सकता है। उन्होंने राजयोग के अभ्यास से स्वचिंतन का महत्व समझाया। भगवान भाई ने कहा कि हमारा जीवन हंस की तरह अंदर व बाहर से स्वच्छ रखने की आवश्यकता है। गुणवान व्यक्ति ही समाज की असली संपत्ति है। राजयोग की विधि समझाते हुए उन्होंने कहा कि खुद को देह न मानकर आत्मा मानें और परमात्मा को याद करते हुए सद्गुणों को धारण करें। ऐसा करने से काम, क्रोध, माया, मोह, लोभ, अहंकार, आलस्य, ईष्या, द्वेष पर जीत हासिल की जा सकती है। आध्यात्मिकता की व्याख्या करते हुए भगवान भाई ने कहा कि जब तक हम खुद को नहीं पहचानते तब तक परमात्मा से संबंध स्थापित नहीं कर सकते। इस मौके पर मुंगेली, जांजगीर, बिल्हा, राहौद, खरौद, तखतपुर, रतनपुर सहित शहर से करीब 500 सदस्य उपस्थित थे।
नैतिकता से ही सर्वांगीण विकास संभव : देवकीनंदन गल्र्स स्कूल में विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास में नैतिक शिक्षा के महत्व पर भगवान भाई ने कहा कि इससे ही वे अंधकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर, बंधन से मुक्ति की ओर जाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि आज के बच्चे की कल के भविष्य हैं। अगर कल के समाज को बेहतर देखना चाहते हैं तो वर्तमान के विद्यार्थियों को नैतिक शिक्षा देकर संस्कारित किया जा सकता है।
महाराष्ट्र मानपत्र : महाराष्ट्राच्या शिरपेचातील मानाचा तूरा : नवरत्नांची खाण असणाया महाराष्ट्राच्या मातीत जन्मलेल्या रत्नांची महिमा सांगणारे स्वतंत्र व्यासपिठ
महाराष्ट्र मानपत्र : रद्दीच्या कागदावरील शिवसंदेश वाचून एक सफल राजयोगी बनलेले : ब्राहृाकुमार भगवान भाई इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड मधे सुवर्णाक्षरानी नाव नो
रद्दीच्या कागदावरील शिवसंदेश वाचून एक सफल राजयोगी बनलेले : ब्राहृाकुमार भगवान भाई
इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड मधे सुवर्णाक्षरानी नाव नोंदवलायं भगवान भाई यांनी.
12. दिल्ली येथे इंडिया बुक ऑफ रेकार्ड चे मुख्य संपादक वि·ारुप राय चौधरी हे ब्रा.कु.भगवान भाई (शान्तीवन आबू रोड) यांना प्रमाणपत्र देतांना सोबत इंडिया बुक ऑफ रेकार्डची टीम.
नैतिक शिक्षा से बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है: भगवान भाई
नैतिक शिक्षा से बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है: भगवान भाई
mpm - 15 days ago
Share
झाबुआ (एमपी मिरर)। एक आदर्श समाज में नैतिक सामाजिक व आध्यात्मिक मूल्य प्रचलित होते है। नैतिक मूल्यों का हमें सम्मान करना चाहिए। मूल्य शिक्षा द्वारा ही बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है। उक्त उदगार प्रजापिता ब्रम्हकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय मांउट आबु से पधारे हुए राजयोगी ब्रम्हकुमार भगवान भाई ने कहे। वे शारदा विद्या निकेतन और सरस्वती विद्या मंदिर में छात्र छात्राओं को संबोधित करते हुए बोल रहे थे।
भगवान भाई ने कहा लालच भ्रम, बेईमानी, चोरी, ठगी, नकारात्मक विचार मनुष्य को नैतिकता के विरूद्घ आचरण करने के लिए उकराता है। उन्होने बताया कि हमें अनैतिकता का मार्ग छोडकर नैतिकता के तरफ जाना है। जीवन में नैतिक शिक्षा आचरण में लाना ही शिक्षा का मुल उददेश्य है। नैतिक मूल्यों की धारण से आंतरिक शक्तियों का विकास होता है और आत्मबल, मनोबल बढता है। उन्होने कहा कि नैतिक मूल्यों से युक्त जीवन ही सभी को पसंद आता है। सदगुणों की धारणा से ही हम प्रशंसा के पान बन सकते है। उन्होने बताया कि मूल्य ही जीवन की सुदंरता और वरदान है। जीवन में धारण किये हुए मूल्य ही हमारे श्रैष्ठ चरित्र की निशानी है। मूल्यों को जीवन में धारण करने की हमारे मन में आस्था निर्माण करने की आवश्यकता है।
भगवान भाई ने कहा कि मूल्य ही हमारे जीवन की अनमोल निधि है। मूल्यों के आधार से हम अपने जीवन में खुशी प्रदान कर सकते है। मूल्य ही हमारे सच्चे मित्र है। उन्होने आगे बताया कि शिक्षा उददेश्य बंधनों से मुक्ति के तरफ से जाना रही है नैतिक शिक्षा द्वारा प्राप्त मुल्यों के आधार से ही हम निर्वधंन तथा स्वालंबी बन सकत है। मूल्यों के आधार से ही यह चलता है। उन्होने बताया कि अगर मूल्यों का हास होगा तो यह संसार विरान हो जायेगा।
राक्षसी प्रवृत्ति द्वारा जीवन दिन प्रति दिन दुखी अशांत बनता जायेगा। उन्होने बताया कि अगर जीवन मूल्यों को नष्टï करोगे तो हमारा जीवन भी ऐसा ही व्यर्थ नष्टï हो जायेगा। जो मूल्यों की रक्षा करेगा उसकी ही रक्षा मूल्य करेंगे अर्थात वह व्यक्ति अमरत्वा को प्राप्त करेगा। उन्होने बताया कि अमर बनना ही शिक्षा का मूल उददेश्य है। स्थानीय ब्रम्हकुमारीय की संचालिका बीके ज्योति बहन ने सभी को ब्रम्हकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय का परिचय दिया उन्होने बताया कि आधयात्मीकता नही अपनाने का मतलब जीवन में मानवीय नैतिक मुल्य नही अपनाना है।
बालोतरा --कर्मों की गति बड़ी निराली है। कर्मों के आधार पर ही यह संसार चलता है। कर्म से ही मनुष्य महान बनता ब्रह्मकुमार भगवान भाई ।
बालोतरा --कर्मों की गति बड़ी निराली है। कर्मों के आधार पर ही यह संसार चलता है। कर्म से ही मनुष्य महान बनता ब्रह्मकुमार भगवान भाई ।
इंदौर। भौतिक शिक्षा के साथ नैतिक शिक्षा से ही बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सकता है। इसके बगैर मनुष्य का काम नहीं चल सकता।
इंदौर। भौतिक शिक्षा के साथ नैतिक शिक्षा से ही बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सकता है।
Subscribe to:
Posts (Atom)