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Saturday, May 3, 2014

MANDI (HIMACHAL ) PRDESH GOVT.GIRL SCHOOL ME PROGRAM







MANDI (HIMACHAL ) PRDESH GOVT.GIRL SCHOOL ME PROGRAM  श्रेष्ठ चरित्र बनाता है महान व्यक्ति : भगवान
मंडी (हिमाचल प्रदेश )---- प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू के राजयोगी भगवान भाई ने राजकीय कन्या वमापा मंडी में छात्राआें को नैतिक शिक्षा का ज्ञान दिया। उन्होंने कहा कि कोई भी राष्ट्र धन शक्ति से नहीं बल्कि श्रेष्ठ चरित्रवान नागरिकों के बल पर महान बनता है। मूल्य शिक्षा के कारण की भारत महान था। कहा कि मन में पैदा होने वाले कल्याणकारी विचार ही मूल्य हैं। श्रेष्ठ विचार मन में चलने से कर्म और व्यवहार में कुशलता आती है। कहा कि मानव जीवन को अंधकार से प्रकाश, दुख से सुख और मरण से अमरत्व की ओर जाना ही वास्तव में शिक्षा का उद्देश्य है। भगवान भाई ने कहा कि कुसंग, सिनेमा और व्यसन से युवा भटकते हैं। ब्रह्मकुमारी दक्षा तथा दीपा बहन ने भी अपने विचार रखे। इस अवसर पर बीके गुलाब, जागृति सहित शिक्षक भी मौजूद रहे।

शिक्षक आदर्श समाज का निर्माता





शिक्षक आदर्श समाज का निर्माता
मंडी। आदर्श शिक्षक आदर्श समाज का निर्माता है। एक शिक्षक के रास्ते से भटकने पर सारा समाज भटक सकता है। यह बात प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू राजस्थान से आए राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवान भाई ने कही। वीरवार को जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान मंडी में आदर्श शिक्षा विषय पर कार्यक्रम रखा था। इस मौके पर भगवान भाई ने कहा कि शिक्षा लेने के बाद जीवन में अनुशासन, भाईचारा, रचनात्मकता, जागृति आ जाए तभी हम समाज के लिए उपयोगी बन सकते हैं। शिक्षा के द्वारा ही विचार शक्ति, निर्णय शक्ति और सद्गुणाें का विकास होता है। इस मौके पर स्थानीय ब्रह्मकुमारी केंद्र की बीके दक्षा ने कार्यक्रम की रूपरेखा बताई तथा ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय का परिचय दिया। इस अवसर पर बीके दया, जागृति और बीके जगदीश शर्मा मौजूद थे।

शिक्षक आदर्श समाज का निर्माता







शिक्षक आदर्श समाज का निर्माता
मंडी। आदर्श शिक्षक आदर्श समाज का निर्माता है। एक शिक्षक के रास्ते से भटकने पर सारा समाज भटक सकता है। यह बात प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू राजस्थान से आए राजयोगी ब्रह्मकुमार भगवान भाई ने कही। वीरवार को जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान मंडी में आदर्श शिक्षा विषय पर कार्यक्रम रखा था। इस मौके पर भगवान भाई ने कहा कि शिक्षा लेने के बाद जीवन में अनुशासन, भाईचारा, रचनात्मकता, जागृति आ जाए तभी हम समाज के लिए उपयोगी बन सकते हैं। शिक्षा के द्वारा ही विचार शक्ति, निर्णय शक्ति और सद्गुणाें का विकास होता है। इस मौके पर स्थानीय ब्रह्मकुमारी केंद्र की बीके दक्षा ने कार्यक्रम की रूपरेखा बताई तथा ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय का परिचय दिया। इस अवसर पर बीके दया, जागृति और बीके जगदीश शर्मा मौजूद थे।

अनमोल वचन(सुविचार)---





अनमोल वचन(सुविचार)---
1) आपके पास किसी की निन्दा करने वाला, किसी के पास तुम्हारी निन्दा करने वाला होगा।
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2) कष्ट सहन करने का अभ्यास जीवन की सफलता का परम सुत्र है।
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3) जिसके पास उम्मीद हैं, वह लाख बार हारकर भी नहीं हारता।
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4) गलती कर देना मामूली बात है, पर उसे स्वीकार कर लेना बड़ी बात है।
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5) शर्म की अमीरी से इज्जत की गरीबी अच्छी है।
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6) सच्चा प्रयास कभी निष्फल नहीं होता।
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7) स्वयं को स्वार्थ, संकोच और अंधविश्वास के डिब्बे से बाहर निकालिए, आपके लिए ज्ञान और विकास के नित-नवीन द्वार खुलते जाएँगे।
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8) सुख और आनन्द ऐसे इत्र हैं... जिन्हें जितना अधिक दूसरों पर छिड़केंगे, उतनी ही सुगन्ध आपके भीतर समायेगी।
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9) जीवन संध्या तरफ जाते हुए डरना मत, मृत्यु तो दिन के बाद रात का आराम है।
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10) छोटा सा समाधान बड़ी लड़ाई समाप्त कर देता हैं, पर छोटी सी गलत फहमी बड़ी लड़ाई पैदा कर देती हैं। मन में घर कर चुकी गलतफहमियों को निकालें और समाधान का हिस्सा बनें।
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11) संगीत की सरगम हैं माँ, प्रभु का पूजन हैं माँ, रहना सदा सेवा में माँ के, क्योंकि प्रभु का दर्शन हैं माँ ।
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12) नाशवान में मोह होता हैं, अविनाशी में प्रेम होता हैं।
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13) लेने की इच्छा वाला साधक नहीं हो सकता है।
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14) अपने सुख को रेती में मिला दे तो खेती हो जायेगी।
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15) ममता रखने से वस्तुओं का सदुपयोग नहीं हो सकता है।
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16) केवल ‘तू’ और ‘तेरा’ हैं, ‘मैं’ और ‘मेरा’ हैं ही नहीं।
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17) अभिमान अविवेकी को होता हैं, विवेकी को नहीं।
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18) वस्तुएँ काम में लेने के लिए हैं, ममता करने के लिए नही।
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19) मनुष्य योनि साधन योनि है।
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20) कर्मयोग है-संसार में रहने की बढि़या रीति।
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21) जो हमसे कुछ चाहे नहीं, और सेवा करे, वह व्यक्ति सबको अच्छा लगता है।
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22) हमारा शरीर पंचकोशो से बना हुआ है-
1. अन्नमय कोश अर्थात् यह स्थूल शरीर,
2. प्राणमय कोश अर्थात् क्रियाशक्ति,
3. मनोमय कोश अर्थात् इच्छा शक्ति,
4. विज्ञानमय कोश अर्थात् विचारशक्ति और
5. आनन्दमय कोश अर्थात् व्यक्तित्व की अनुभूति।
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23) अशान्ति की गन्ध किसमें नहीं होती ? जो होने में तो प्रसन्न रहता हैं, किंतु करने में सावधान रहता है।
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24) प्रेम करने का कोई तरीका नहीं हैं पर प्रेम करना सबको आता है।
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आप भी युग निर्माण योजना में सहभागी बने।
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Posted by rajendra at Monday, November 28, 2011 0 comments
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रविवार, १३ नवम्बर २०११
मुस्कराने से आधे दुःख दूर हो जाते है।
1) लुकमान से किसी ने पूछा-आपने ऐसी तमीज किस से सीखी, उन्होने जवाब दिया बदतमीजो से। वे जो करते हैं, भोगते है उसका मैने ध्यान रखा और अपनी आदतो को उस कसौटी पर कस कर सही किया ।
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2) प्यार से बच्चे खुश,
आदर से बड़े खुश,
दया से पशु खुश,
रक्तदान से प्रभु खुश।
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3) कर्मनिष्ठ अपनी श्रद्धा और निष्ठा की प्रबलता को लेकर आगे बढ़ते है।
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4) मनोबल के बने रहने से मनुष्य में प्रसन्नता, विश्वास और उत्साह बना रहता है।
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5) तीर्थो में सबसे श्रेष्ठ तीर्थ हैं - ‘‘अन्तःकरण की पवित्रता’’।
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6) जिनने भगवान की इच्छा के अनुरूप स्वयं को ढालने की कोशिश की, वे भगवान के कृपापात्र बन गये।
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7) बच्चों पर निवेश करने की सबसे अच्छी चीज हैं अपना समय और अच्छे संस्कार। ध्यान रखें, एक श्रेष्ठ बालक का निर्माण सौ विद्यालय को बनाने से भी बेहतर है।
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8) आप जीवन में कितने भी ऊँचे क्यों न उठ जाएँ पर अपनी गरीबी और कठिनाई के दिन कभी मत भूलिए।
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9) मानवता की सेवा करने वाले हाथ उतने ही धन्य होते हैं जितने परमात्मा की प्रार्थना करने वाले ओंठ।
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10) धीरज मत खोओ। हीनता और हताशा तुम्हें शोभा नहीं देती। अपने आत्म-विश्वास को बढ़ाओ, फिर से प्रयास करो, तुम्हें सफलता अवश्य मिलेगी।
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11) बाधाओं को देखकर विचलित न हो। विश्वास रखें, जीवन में निन्यानवें द्वार बंद जो जाते है।, तब भी कोई-न-कोई एक द्वारा जरूर खुला रहता है।
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12) जब आप किसी को भौतिक पदार्थ देने में असमर्थ हो, तो भी अपनी सद्भावनायें और शुभकामनायें दूसरो को देते रहिए।
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13) सावधान ! पर भर का क्रोध आपका पूरा भविष्य बिगाड़ सकता है।
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14) धन और व्यवसाय में इतने भी व्यस्त मत बनियें कि स्वास्थ्य, परिवार और अपने कर्तव्यों पर ध्यान न दे पाएँ।
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15) मुस्कराने से आधे दुःख दूर हो जाते है।
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16) संसार में न कोई तुम्हारा मित्र है और न शत्रु। तुम्हारे अपने विचार ही शत्रु और मित्र बनाने के लिए उत्तरदायी है।
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17) जैसे व्यवहार की तुम दूसरों से अपेक्षा रखते हो, वैसा ही व्यवहार तुम दूसरों के प्रति करो।
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18) बहुत से काम खराब ढंग से करने की बजाय, थोड़े काम अच्छे ढंग से करना बेहतर है।
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19) आत्म-विश्वास से बढ़कर न कोई मित्र हैं, न प्रगति की कोई सीढ़ी। आप इस मित्र को सदा अपने साथ रखिए। यह आपको पर्याप्त सम्बल देगा।
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20) मान-सन्मान सदा औरो को देने के लिए होता हैं, औरों से लेने के लिए नही।
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21) हमें जो मिला हैं, हमारे भाग्य से ज्यादा मिला है। यदि आपके पाँव में जूते नहीं हैं, तो अफसोस मत कीजिये। दुनिया में कई लोगों के पास तो पाँव ही नहीं है।
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22) किसी शान्त और विनम्र व्यक्ति से अपनी तुलना करके देखिए, आपको लगेगा कि, आपका घमण्ड निश्यच ही त्यागने जैसा है।
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23) पीडि़त से यह मत पूछिये कि तुम्हार दर्द कैसा है। उसकी पीड़ा को स्वयं में देखिए और फिर आप वह सब कीजिए जो आप अपनी ओर से कर सकते है।
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24) जो दुःख आने से पहले ही दुःख मानता हैं, वह आवश्यकता से ज्यादा दुःख उठाता है।
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आप भी युग निर्माण योजना में सहभागी बने।
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Posted by राजेंद्र माहेश्वरी at Sunday, November 13, 2011 0 comments
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बुधवार, २ नवम्बर २०११
क्रोध यमराज है ...
1- क्रोध को जीतने में मौन सबसे अधिक सहायक है।
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2- मूर्ख मनुष्य क्रोध को जोर-शोर से प्रकट करता है, किंतु बुद्धिमान शांति से उसे वश में करता है।
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3- क्रोध करने का मतलब है, दूसरों की गलतियों कि सजा स्वयं को देना।
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4- जब क्रोध आए तो उसके परिणाम पर विचार करो।
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5- क्रोध से धनी व्यक्ति घृणा और निर्धन तिरस्कार का पात्र होता है।
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6- क्रोध मूर्खता से प्रारम्भ और पश्चाताप पर खत्म होता है।
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7- क्रोध के सिंहासनासीन होने पर बुद्धि वहां से खिसक जाती है।
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8- जो मन की पीड़ा को स्पष्ट रूप में नहीं कह सकता, उसी को क्रोध अधिक आता है।
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9- क्रोध मस्तिष्क के दीपक को बुझा देता है। अतः हमें सदैव शांत व स्थिरचित्त रहना चाहिए।
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10- क्रोध से मूढ़ता उत्पन्न होती है, मूढ़ता से स्मृति भ्रांत हो जाती है, स्मृति भ्रांत हो जाने से बुद्धि का नाश हो जाता है और बुद्धि नष्ट होने पर प्राणी स्वयं नष्ट हो जाता है।
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11- क्रोध यमराज है।
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12- क्रोध एक प्रकार का क्षणिक पागलपन है।
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13-क्रोध में की गयी बातें अक्सर अंत में उलटी निकलती हैं।
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14- जो मनुष्य क्रोधी पर क्रोध नहीं करता और क्षमा करता है वह अपनी और क्रोध करने वाले की महासंकट से रक्षा करता है।
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15- सुबह से शाम तक काम करके आदमी उतना नहीं थकता जितना क्रोध या चिन्ता से पल भर में थक जाता है।
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16- क्रोध में हो तो बोलने से पहले दस तक गिनो, अगर ज़्यादा क्रोध में तो सौ तक।
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17- क्रोध क्या हैं ? क्रोध भयावह हैं, क्रोध भयंकर हैं, क्रोध बहरा हैं, क्रोध गूंगा हैं, क्रोध विकलांग है।
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18- क्रोध की फुफकार अहं पर चोट लगने से उठती है।
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19- क्रोध करना पागलपन हैं, जिससे सत्संकल्पो का विनाश होता है।
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20- क्रोध में विवेक नष्ट हो जाता है।
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21- क्रोध पागलपन से शुरु होता हैं और पश्चाताप पर समाप्त।
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22- क्रोध से मनुष्य उसकी बेइज्जती नहीं करता, जिस पर क्रोध करता हैं। बल्कि स्वयं अपनी प्रतिष्ठा भी गॅंवाता है।
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23- क्रोध से वही मनुष्य सबसे अच्छी तरह बचा रह सकता हैं जो ध्यान रखता हैं कि ईश्वर उसे हर समय देख रहा है।
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24- क्रोध अपने अवगुणो पर करना चाहिये।
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आप भी युग निर्माण योजना में सहभागी बने।
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Posted by राजेंद्र माहेश्वरी at Wednesday, November 02, 2011 1 comments
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रविवार, २३ अक्तूबर २०११
अल्पभाषी सर्वोत्तम मानव है ...
1) अन्तर्मन के चक्षु बाह्य नेत्रों से भी अधिक प्रबल है।
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2) अनजान होना इतनी लज्जा की बात नहीं, जितना सीखने के लिए तैयार न होना।
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3) अगर संकेत मिल जाए तो बस बड़ा कदम उठाने से घबराये नहीं, क्योंकि आप एक चैड़ी खाई को दो छोटी छलांगो में पार नहीं कर सकते।
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4) अगर आप अपने दिमाग को इन तीन बातों -काम करने, बचत करने और सीखने के लिये तैयार कर लेते हैं तो आप उन्नति कर सकते है।
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5) गायत्री साधना मात्र जीभ से मंत्रोच्चारण करने से नहीं, महानता के आदर्शो को जीवन-यात्रा का एक अंग बनाने पर सम्पन्न होती हैं। इसके लिए जहा व्यक्ति का चिन्तन सही रखने के लिए आहार सही होना जरुरी हैं, वहीं श्रेष्ठ विचारों को आमन्त्रित करने की कला भी उसे सीखनी होगी, तभी ध्यान सफल होगा।
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6) अगर आपको किसी की हॅंसी निर्मल लगती हैं तो जान लीजिये वह आदमी भी निश्छल है।
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7) अगर आपके पाँव में जूते नहीं हैं तो अफसोस न करे ऐसे भी लोग हैं जिनके पाँव ही नहीं है।
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8) अगर आपने हवा में महल बनाया हैं तो कोई खराब काम नहीं किया। पर अब उसके नीचे नींव बनाइये।
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9) अल्प ज्ञान वाला महान् अहंकारी होता है।
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10) अल्पमत कभी-कभी और बहुमत अनेक बार गलत साबित हुआ है।
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11) अल्पभाषी सर्वोत्तम मानव है।
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12) गंभीरतापूर्वक विचार किया जाये तो प्रतीत होगा कि जीवन और जगत् में विद्यमान समस्त दुःखों के कारण तीन हैं - 1. अज्ञान 2 अशक्ति 3. अभाव। जो इन तीन कारणों को जिस सीमा तक अपने से दूर करने में समर्थ होगा, वह उतना ही सुखी बन सकेगा।
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13) गांधी जी, डा.प्रफूल्ल चन्द्र राय से - विदेशी ढंग से कपडे पहनकर सही ढंग से राष्ट्रसेवा नहीं की जा सकती। राष्ट्रीय मूल्य, राष्ट्रीय भावनाए एवं राष्ट्रीय संस्कृति, इन सबकी एक ही पहचान हैं, अपना राष्ट्रीय वेश-विन्यास।
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14) गहरे दुःख से वाणी मूक हो जाती है।
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15) गभ्मीरता सज्जनो का पहला लक्षण है।
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16) गीता का पठन-मनन करने वाला प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दे सकता हैं । प्रतिदिन गीता का पाठ, विचार करना शुरु कर दें। गीता के अनुसार अपनी व्यवहार करें, जीवन बनायें तो दुःख, सन्ताप, हलचल सब मिट जायेगी।
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17) गीता ने कामना के त्याग पर विशेष जोर दिया हैं। ऐसा होना चाहिये, ऐसा नहीं होना चाहिये-यह कामना हैं। शान्ति स्वतःसिद्ध हैं। अशान्ति कामना से ही होती हैं।
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18) गरीब बच्चों को मिठाई खिलाओ तो शोक-चिन्ता मिट जायेंगे।
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19) गरीब वह नही, जिसके पास कम हैं, बल्कि वह हैं, जो अधिक चाहता है।
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20) गाय को सहलाने से, उसकी पीठ आदि पर हाथ फेरने से गाय प्रसन्न होती हैं। गाय के प्रसन्न होने पर साधारण रोगो की तो बात ही क्या हैं, बडे-बडे असाध्य रोग भी मिट सकते है। लगभग बारह महिने तक कर के देखना चाहिये।
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21) गाय के गोबर में लक्ष्मी का और गोमूत्र में गंगा का निवास माना गया है।
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22) लाठी व पत्थरों से तो प्रायः हड्डिया ही टूटती हैं, परन्तु शब्दों से प्रायः संबंध टूट जाते है।
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23) लोभ नहीं हो तो रुपया सुख नहीं दे सकता है।
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24) लोग प्यार करना सीखे। हममें, अपने आप में, अपनी आत्मा और जीवन में , परिवार में, समाज में, कर्तव्य में और ईश्वर में दसों दिशाओं में प्रेम बिखेरना और उसकी लौटती हुयी प्रतिध्वनि का भाव भरा अमृत पीकर धन्य हो जाना, यही जीवन की सफलता है।
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आप भी हमारे सहयोगी बने।
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राजा राममोहन राय
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Posted by राजेंद्र माहेश्वरी at Sunday, October 23, 2011 0 comments
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पटाखें फोड़ने से लाभ या हानि ?
सर्वोदय अहिंसा अभियान
आओ ज्ञान का दिया जलायें, अंधकार को दूर भगाएँ।
1. देश का अरबों रूपया व्यर्थ बर्बाद होता हैं, जिससे गरीबी बढ़ती है।
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2. असावधानी के कारण घरों, दूकानों और कभी-कभी पूरे बाजार में आग लगने से अरबों रूपयों की सम्पत्ति स्वाहा हो जाती है। अनेक लोग जल जाते है।
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3. पटाखें से जलने के कारण शरीर जल जाता है।
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4. पटाखों की आवाज एवं बारूद के कारण आँख एवं कान खराब हो जाते है।
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5. अस्थमा के रोगी इन दिनों घर से बाहर नहीं निकल पाते है। उन्हें अकारण अवांछित कैद-जेल में रहने को मजबूर होना पड़ता है।
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6. आकाश में छोड़े जाने वाले पटाखों से अनेक पक्षी घायल हो जाते है या मारे जाते है
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7. पटाखों के धमाकों से मूक पशु-पक्षियों को असह्य मानसिक वेदना सहन करनी पड़ती है।
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8. अनन्त जीवों की हत्या होती है। पटाखों की आग से वे जीवित ही जल जाते है।
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9. हवा में प्राणघातक विषैला धुआँ फैलता हैं, जिससे श्वाँस लेना मुश्किल हो जाता है।
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10. घरों एवं अस्पतालों में बीमार व्यक्तियों/मरीजों को असीम वेदना सहन करनी पड़ती है।
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11. पटाखों पर देवी-देवताओं, महापुरूषों के चित्र बने होते है। पटाखा फटने के बाद इन चित्रों के टुकड़े हो जाते है, जो गंदगी के साथ पड़े रहते है और हमारे ही पैरों तले कुचले जाते है। एक ओर महापुरूषों के आदर-सम्मान की बातें, दूसरी ओर यह कृत्य कितना शोभास्पद है।
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12. चाइनीज पटाखों में हानिकारक केमिकल का प्रयोग होता है, जो बहुत ही नुकसानदायक होते है। हमें देशहित में भी विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना चाहिए। फिर यह तो हमारे शरीर के लिए भी घातक है।
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आयोजक-अखिल भारतीय जैन युवा फैडरेशन
प्रायोजक-श्री कुन्दकुन्द कहान पारमार्थिक ट्रस्ट, मुम्बई
सौजन्य- श्री संजय शास्त्री, जयपुर, 09785999100
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राजा राममोहन राय
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Posted by राजेंद्र माहेश्वरी at Sunday, October 23, 2011 0 comments
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दीपावली पर हम क्या-क्या कर सकते है ?
सर्वोदय अहिंसा अभियान
1. जिनकी याद में हम त्योंहार मना रहे हैं। उनके गुणों जैसे कर्तव्य पालन, पितृभक्ति, सत्य-अहिंसा आदि का पालन करे।
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2. अज्ञान के अंधकार को दूर भगाकर ज्ञान का प्रकाश फैलायें। व्रत-नियम धारण करें, दूसरों को प्रेरणा दें।
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3. मंदिर में जाकर विशेष पूजा-अर्चना करें। लोगों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरणा दे।
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4. आज के दिन किसी भी जीव को न सताने, न मारने, न पीड़ा देने के साथ ही पशु-पक्षियों के प्रति उपकार भाव रखने का अभ्यास करना चाहिए तथा पूरे वर्ष के लिए ऐसा करने की भावना निभानी चाहिए।
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5. तड़क-भड़क, दिखावा, आडम्बर, प्रदर्शन से दूर रहें।
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6. पटाखें न चलायें। पटाखे चलाने में किसी से होड़ न करे।
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7. गरीबों, असहायों, बीमारों, की सेवा करें, उन्हें भोजन, वस्त्र, दवा आदि दान में दें।
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8. गरीब बच्चों के पढ़ने की व्यवस्था करें, उन्हें कपड़े एवं पुस्तकें दें।
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9. दीन-हीन निर्धनों को व्यापार एवं शिक्षा के अवसर उपलब्ध करवाकर उन्हें स्वयं के पैरों पर खड़ा करने में सहायता करे।
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10. इस दिन कम से कम अपने आस-पड़ौस के पाँच लोगों को पटाखों की हानियों से परिचित करायें एवं पटाखा न फोड़ने के लिए प्रेरणा दें।
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11. प्रतिज्ञा करें कि हमारे किसी भी कार्य से जीवन रक्षक पर्यावरण प्रदूषित न हो।
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12. लौकिक दीपक के साथ-साथ अज्ञान-अंधकार मिटाते हुए अपने हृदय में ज्ञान का दीप जला कर पूर्ण ज्ञान प्राप्ति की भावना लायें।
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आयोजक-अखिल भारतीय जैन युवा फैडरेशन
प्रायोजक-श्री कुन्दकुन्द कहान पारमार्थिक ट्रस्ट, मुम्बई
सौजन्य- श्री संजय शास्त्री, जयपुर, 09785999100
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शनिवार, २२ अक्तूबर २०११
अच्छे विचार रखना भीतरी सुन्दरता है ...
1) अच्छे एवं महान् कहे जाने वाले सभी प्रयास-पुरुषार्थ प्रारम्भ में छोटे होते है।
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2) अच्छे विचार मनुष्य को सफलता और जीवन देते है।
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3) अच्छे विचार रखना भीतरी सुन्दरता है।
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4) अच्छे जीवन की एक कुँजी हैं- अपनी सर्वश्रेष्ठ योग्यता को चुनना और उसे विकसित करना।
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5) अच्छे लोगों की संगत अच्छा सोचने की पक्की गारंटी है।
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6) अतीत से सीखो, वर्तमान का सदुपयोग करो, भविष्य के प्रति आशावान रहो।
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7) अर्जन का सदुपयोग अपने लिए नहीं ओरो कि लिए हो। इस भावना का उभार धीरे-धीरे व्यक्तित्व को उस धरातल पर लाकर खडा कर देता है, जहाँ वह अनेक लोगो को संरक्षण देने लगता है।
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8) अन्धकार में भटकों को ज्ञान का प्रकाश देना ही सच्ची ईश्वराधना है।
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9) अनीतिपूर्ण चतुरता नाश का कारण बनती है।
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10) अनाचार बढता हैं कब, सदाचार चुप रहता है जब।
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11) अनवरत अध्ययन ही व्यक्ति को ज्ञान का बोध कराता है।
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12) अनुकूलता-प्रतिकूलता में राजी-नाराज होना साधक के लिये खास बाधक है। राग-द्वेष ही हमारे असली शत्रु है। राग ठन्डक है, द्वेष गरमी हैं, दोनो से ही खेती जल जाती है।
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13) अनुकूलता-प्रतिकूलता विचलित करने के लिये नहीं आती, प्रत्युत अचल बनाने के लिये आती है।
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14) अनुभव संसार से एकत्रित करें और उसे पचानेके लिये एकान्त में मनन करे।
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15) अनुभवजन्य ज्ञान ही सत्य है।
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16) अनुशासित रहने का अभ्यास ही भगवान की भक्ति है।
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17) अन्त समय सुधारना हो तो प्रतिक्षण सुधारो।
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18) अन्तःकरण की मूल स्थिति वह पृष्ठभूमि हैं, जिसको सही बनाकर ही कोई उपासना फलवती हो सकती हैं। उपासना बीज बोना और अन्तःभूमि की परिष्कृति, जमीन ठीक करना हैं। इन दिनों लोग यही भूल करते हैं, वे उपासना विधानों और कर्मकाण्डो को ही सब कुछ समझ लेते हैं और अपनी मनोभूमि परिष्कृत करने की ओर ध्यान नहीं देते।
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19) अन्तःकरण की पवित्रता दुगुर्णो को त्यागने से होती है।
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20) अन्तःकरण की सुन्दरता साधना से बढती है।
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21) अन्तःकरण की आवाज सुनो और उसका अनुसरण करों।
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22) अन्तःकरण को कषाय-कल्मषों की भयानक व्याधियों से साधना की औषधि ही मुक्त कर सकती है।
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23) अन्तःकरण में ईश्वरीय प्रकाश जाग्रत करना ही मनुष्य जीवन का ध्येय है।
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24) अन्तःकरण ही बाहर की स्थिति को परिवर्तित करता है।
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आप भी हमारे सहयोगी बने।
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Posted by राजेंद्र माहेश्वरी at Saturday, October 22, 2011 0 comments
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आज का जीवन बीते कल की परछाई है ...
1) आत्मा का साक्षात्कार ही मनुष्य की सारी सफलताओं का प्राण है। यह तभी संभव है, जब मानव अपने वर्तमान जीवन को श्रेष्ठ, उदार तथा उदात्त भावनाओं से युक्त करने का प्रयास करता है।
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2) आत्मज्ञान, आत्मविश्वास और आत्मसंचय यही तीन जीवन को बल एवं शक्ति प्रदान करते है।
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3) औरों की अच्छाइयाँ देखने से अपने सद्गुणों का विकास होता है।
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4) आज का जीवन बीते कल की परछाई है।
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5) आज प्रदर्शन हमारे मन में इतना गहरा बैठ गया हैं कि हम दर्शन करना भूलते जा रहे है।
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6) आज जो न्याय हैं, कल वही अन्याय साबित हो सकता है।
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7) आज लोग अपना अधिकार तो मानते हैं, पर कर्तव्य का पालन नहीं करते। अधिकार तो कर्तव्य का दास है।
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8) आज, दो कल के बराबर है।
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9) आनन्द का मूल सन्तोष है।
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10) आनन्द गहरे कुएँ का जल है, जिसे उपर लाने के लिए देर तक प्रबल पुरुषार्थ करना पडता है। मोती लाने वाले गहराई में उतरते और जोखिम उठाते है। आनन्द पाने के लिए गौताखोरों जैसा साहस और कुँआ खोदने वालों जैसा संकल्प होना चाहिए।
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11) आलस्य परमेश्वर के दिए हुए हाथ-पैरो का अपमान है।
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12) आलस्य दरिद्रता का दूसरा नाम है।
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13) अस्त-व्यस्त रीति से समय गॅवाना अपने ही पैरों पर कुल्हाडी मारना है।
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14) असली आत्मवेत्ता अपने आदर्श प्रस्तुत करके अनुकरण का प्रकाश उत्पन्न करते हैं और अपनी प्रबल मनस्विता द्वारा जन-जीवन में उत्कृष्टता उत्पन्न करके व्यापक विकृतियों का उन्मूलन करने की देवदूतो वाली परम्परा को प्रखर बनाते है।
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15) अव्यवस्थित और असंयत रहकर सौ वर्ष जीने की अपेक्षा, ज्ञानार्जन करते हुए और धर्मपूर्वक एक वर्ष जीवित रहना अच्छा है।
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16) अवसर हाथ से मत जाने दो।
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17) अवसर उन्ही को मिलते हैं, जो स्पष्ट ध्येय बनाकर अपनी जीवन यात्रा का निर्धारण सही तरीके से, सही समय पर कर लेते है।
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18) अच्छी शिक्षा का आदर्श हमें नीति निपुण सर्व आत्मभावनादायक विश्व के समस्त प्राणियों के प्रति दया, सेवा, अपनत्व, भलाई आदि गुण स्वभाव संस्कार वाले बनाना है।
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19) अच्छी शिक्षा क्या हैं तो इसका जवाब होगा ऐसी शिक्षा जो अच्छा इन्सान बनाये और वो इन्सान उत्तम आचरण करे। - प्लेटो।
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20) अच्छी पुस्तकें मनुष्य को धैर्य, शान्ति और सान्त्वना प्रदान करती है।
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21) अच्छी नसीहत मानना अपनी योग्यता बढाना है।
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22) अच्छा शासक वही बन सकता हैं, जो खुद किसी के अधीन रह चुका हो।
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23) अच्छाई का अभिमान बुराई की जड है।
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24) अच्छाई के अहं और बुराई की आसक्ति दोनो से उपर उठ जाने में ही सार्थकता है।
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आप भी हमारे सहयोगी बने।
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आदमी वह ठीक हैं जिसका इरादा ठीक है ...
1) आध्यात्मिक विकास की सबसे बडी बाधा मनुष्य के अहंकार पूर्ण विचार ही है।
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2) आध्यात्मिक साधनाएँ बरगद के वृक्ष की तरह घीरे-धीरे बढती हैं, पर होती टिकाउ है।
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3) आध्यात्मिक वातावरण श्रेष्ठतर मानव जीवन को गढने वाली प्रयोगशाला है।
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4) आधा भोजन दुगुना पानी, तिगुना श्रम, चैगुनी मुस्कान।
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5) आकांक्षा एक प्रकार की चुम्बक शक्ति हैं, जिसके आकर्षण से अनुकूल परिस्थितियाँ खिंची चली आती है।
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6) आप ढूँढे तो परेशानी का आधा कारण अपने में ही मिल जाता है।
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7) आपका व्यवहार गणित के शून्य की तरह होना चाहिये, जो स्वयं में तो कोई कीमत नहीं रखता लेकिन दूसरो के साथ जुडने पर उसकी कीमत बढा देता है।
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8) अज्ञान ही वह प्रधान बाधा हैं, जिसके कारण हम अपने लक्ष्य की ओर नही बढ पाते है।
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9) अज्ञान से मुक्ति ही सबसे बडा पुरुषार्थ हैं, सारे कर्मो का मर्म है।
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10) अज्ञानी रहने से जन्म न लेना अच्छा हैं, क्योंकि अज्ञान सब दुःखों की जड है।
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11) अज्ञानी दुःख को झेलता हैं और ज्ञानी दुःख को सहन करता हैं ।
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12) आस्थाहीनता व्यक्ति को अपराध की ओर ले जाती है।
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13) आदमी वह ठीक हैं जिसका इरादा ठीक है।
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14) आदर-निरादर शरीर का और निन्दा-प्रशंसा नाम की होती हैं। आप इनसे अलग है।
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15) आत्मविद्या इस संसार की सबसे बडी विद्या और विश्व मानव की सुख-शान्ति के साथ प्रगति-पथ पर अग्रसर होते रहने की सर्वश्रेष्ठ विधि व्यवस्था है। किन्तु दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि इस संसार में प्राण-दर्शन की बडी दुर्गति हो रही हैं और इस विडम्बना के कारण समस्त मानव जाति को भारी क्षति उठानी पड रही है।
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16) आत्म ज्ञान का सूर्य प्रायः वासना और तृष्णा की चोटियों के पीछे छिपा रहता हैं, पर जब कभी, जहाँ कहीं वह उदय होगा, वहीं उसकी सुनहरी रश्मियां एक दिव्य हलचल उत्पन्न करती हुई अवश्य दिखाई देगी।
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17) आत्मबल का पूरक परमात्मबल है।
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18) आत्मविश्वास हो तो सफलता की मंजिल दूर नहीं।
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19) आत्मविश्लेषण किया जाए, तो शांति इसी क्षण, अभी और यहीं उपलब्ध है।
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20) आत्मविश्वास महान् कार्य करने के लिये सबसे जरुरी चीज है।
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21) आत्मनियन्त्रण से असीम नियन्त्रण शक्ति प्राप्त होती है।
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22) आत्मीयता का अभ्यास करने की कार्यशाला अपना घर है।
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23) आत्मा की पुकार अनसुनी नहीं करे।
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24) आत्मा का निर्मल रुप सभी ऋद्धि-सिद्धियों से परिपूर्ण होता है।
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आप भी हमारे सहयोगी बने।
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स्वयं का कल्याण
1) अपने मन को केवल दूसरों के कल्याण की भावना देते रहने मात्र से स्वयं का कल्याण हो जायेगा।
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2) अपने मन में वजनदार निर्भयता या प्रेम भावना हो तो घने जंगलो में भी आनन्द से रहा जा सकता है।
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3) अपने मूल्यांकन की एक ही कसौटी हैं- सद्गुणों का विकास और इनका एकमात्र सच्चा स्त्रोत हैं- व्यक्ति की पवित्र भावना। यह भावना जिसमें जितनी हैं, उसमें उसी के अनुरुप सद्गुणो की फसल लहलहायेगी। यदि भावना में कलुष हैं तो वहाँ पर दुर्गुणो को फलते-फूलते देर न लगेगी।
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4) अपने मित्रों को एकान्त में भला बुरा कहो, परन्तु उनकी प्रशंसा सबके सम्मुख करो।
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5) अपने सिद्धान्त पर जीने की शर्त के लिये त्याग आवश्यक है।
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6) अपने विश्वास की रक्षा करना, प्राण रक्षा से भी अधिक मूल्यवान है।
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7) अपने विचारों को लिखें, आखिर एक छोटी सी पेन्सिल, लम्बा याद रखने से बेहतर है।
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8) अपने निकट सम्बन्धी का दोष सहसा नहीं कहना चाहिये, कहने से उसको दुःख हो सकता हैं, जिससे उसका सुधार सम्भव नही।
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9) अपने पर विश्वास करना आस्तिकता की निशानी है।
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10) अपने शत्रुओं की बातों पर सदैव ध्यान दीजिये, क्योकि तुम्हारी कमजोरियों को उनसे अधिक कोई नही जानता है।
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11) अपने स्वार्थ से पहले दूसरों के लाभ का भी ध्यान रखना चाहिये।
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12) अपने सुख-दुःख का कारण दूसरों को न मानना चाहिये।
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13) अपने उपर विजय प्राप्त करना सबसे बडी विजय है।
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14) अपने दृष्टिकोण को सदा पवित्र रखे।
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15) अपने दोष-दुर्गुण खोजें एवं उसे दूर करे।
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16) अपने दोषो की ओर से अनभिज्ञ रहने से बडा प्रमाद इस संसार में और कोई नहीं हो सकता।
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17) अपने दोषो को सुनकर चित्त में प्रसन्नता होनी चाहिये।
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18) अपने दोष ही अंततः विनाशकारी सिद्ध होते है।
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19) अपने व्यक्तित्व को सुसंस्कारित और चरित्र को परिष्कृत बनाने वाले साधक को गायत्री महाशक्ति मातृवत् संरक्षण प्रदान करती है।
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20) अपने जीवन को अन्तरात्मा द्वारा निर्धारित उच्चतम मानदण्डो पर जीने का प्रयास करे।
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21) अपने आपको जानना हैं, दूसरों की सेवा करना हैं और ईश्वर को मानना हैं। ये तीनो क्रमशः ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग है। साथ में योग (समता) का होना आवश्यक है।
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22) अपने आचरण से शिक्षा देने वाला आचार्य कहलाता है।
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23) अपने गुण कर्म स्वभाव का शोधन और जीवन विकास के उच्च गुणों का अभ्यास करना ही साधना है।
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24) आराधना के समय उन लोगो से दूर रहो, जो भक्त और धर्मनिष्ठ लोगो का उपहास करते हो।

राजयोग से हम अपने इंद्रियों पर संयम रखकर अपने मनोबल को बढ़ा सकते हैं





राजयोग से हम अपने इंद्रियों पर संयम रखकर अपने मनोबल को बढ़ा सकते हैं। राजयोग से आंतरिक शक्तियों व सद्गुणों को उभारकर जीवन में निखार ला सकते हैं। शिवाजी नगर स्थित प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए माउंट आबू केंद्र के राजयोगी ब्रह्मकुमार ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि राजयोग के अभ्यास से सहनशीलता, नम्रता, एकाग्रता, शांति, धैर्यता व अंतरमुखता जैसे अनेक सद्गुणों का जीवन में विकास कर सकते हैं। राजयोगी भगवान भाई ने कहा कि राजयोग के अभ्यास से विपरीत परिस्थितियों में भी सकारात्मक चिंतन से मन को एकाग्र किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान परिवेश में तनावपूर्ण परिस्थितियों में मन को एकाग्र और शांत रखने के लिए राजयोग संजीवनी बूटी की तरह काम करता है। उन्होंने राजयोग की विधि बताते हुए कहा कि स्वयं को आत्मा निश्चय कर चांद, सूरज, तारांगण से पार रहने वाले परमशक्ति परमात्मा को याद करना तथा मन बुद्धि से उसे देखना व उनके गुणों का गुणगान करना ही राजयोग है। शीला बहन ने कहा कि परमपिता शिव सहज राजयोग और आध्यात्मिक ज्ञान से