“मीठे बच्चे- नाज़ुकपना भी देह-अभिमान है, रूसना, रोना यह सब आसुरी संस्कार तुम
बच्चों में नहीं होने चाहिए, दु:ख-सुख, मान-अपमान सब सहन करना है”
प्रश्न: सर्विस में ढीलापन आने का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर: जब देह-अभिमान के कारण एक दो की खामियाँ देखने लगते हैं तब सर्विस में
ढीलापन आता है। आपस में अनबनी होना भी देह-अभिमान है। मैं फलाने के साथ नहीं चल
सकता, मैं यहाँ नहीं रह सकता.... यह सब नाज़ुकपना है। यह बोल मुख से निकालना
माना कांटे बनना, नाफरमानबरदार बनना। बाबा कहते बच्चे, तुम रूहानी मिलेट्री हो
इसलिए ऑर्डर हुआ तो फौरन हाज़िर होना चाहिए। कोई भी बात में आनाकानी मत करो।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बहुत मीठे, शान्त, अति मीठे स्वभाव का बनना है। कभी भी क्रोध नहीं करना है।
अपनी आंखों को बहुत-बहुत सिविल बनाना है।
2) बाबा जो हुक्म करे, उसे फौरन मानना है। सारे विश्व को पतित से पावन बनाने की
सेवा करनी है अर्थात् घेराव डालना है।
वरदान: ईश्वरीय नशे द्वारा पुरानी दुनिया को भूलने वाले सर्व प्राप्ति सम्पन्न
भव
जैसे वह नशा सब कुछ भुला देता है, ऐसे यह ईश्वरीय नशा दु:खों की दुनिया को सहज
ही भुला देता है। उस नशे में तो बहुत नुकसान होता है, अधिक पीने से खत्म हो
जाते हैं, लेकिन यह नशा अविनाशी बना देता है। जो सदा ईश्वरीय नशे में मस्त रहते
हैं वह सर्व प्राप्ति सम्पन्न बन जाते हैं। एक बाप दूसरा न कोई - यह स्मृति ही
नशा चढ़ाती है। इसी स्मृति से समर्थी आती है।
स्लोगन: एक दो को कॉपी करने के बजाए बाप को कॉपी करो।
बच्चों में नहीं होने चाहिए, दु:ख-सुख, मान-अपमान सब सहन करना है”
प्रश्न: सर्विस में ढीलापन आने का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर: जब देह-अभिमान के कारण एक दो की खामियाँ देखने लगते हैं तब सर्विस में
ढीलापन आता है। आपस में अनबनी होना भी देह-अभिमान है। मैं फलाने के साथ नहीं चल
सकता, मैं यहाँ नहीं रह सकता.... यह सब नाज़ुकपना है। यह बोल मुख से निकालना
माना कांटे बनना, नाफरमानबरदार बनना। बाबा कहते बच्चे, तुम रूहानी मिलेट्री हो
इसलिए ऑर्डर हुआ तो फौरन हाज़िर होना चाहिए। कोई भी बात में आनाकानी मत करो।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बहुत मीठे, शान्त, अति मीठे स्वभाव का बनना है। कभी भी क्रोध नहीं करना है।
अपनी आंखों को बहुत-बहुत सिविल बनाना है।
2) बाबा जो हुक्म करे, उसे फौरन मानना है। सारे विश्व को पतित से पावन बनाने की
सेवा करनी है अर्थात् घेराव डालना है।
वरदान: ईश्वरीय नशे द्वारा पुरानी दुनिया को भूलने वाले सर्व प्राप्ति सम्पन्न
भव
जैसे वह नशा सब कुछ भुला देता है, ऐसे यह ईश्वरीय नशा दु:खों की दुनिया को सहज
ही भुला देता है। उस नशे में तो बहुत नुकसान होता है, अधिक पीने से खत्म हो
जाते हैं, लेकिन यह नशा अविनाशी बना देता है। जो सदा ईश्वरीय नशे में मस्त रहते
हैं वह सर्व प्राप्ति सम्पन्न बन जाते हैं। एक बाप दूसरा न कोई - यह स्मृति ही
नशा चढ़ाती है। इसी स्मृति से समर्थी आती है।
स्लोगन: एक दो को कॉपी करने के बजाए बाप को कॉपी करो।
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