Pages

Monday, May 14, 2012

परमपिता परमात्मा



































                     सबसे पहले तीन सूक्ष्म देवता -ब्रह्मा,विष्णु और शंकर को रचते है और इस कारण शिव त्रिमूर्ति कहलाते है तीन देवताओं कि रचना करने के बाद वह  स्वयं इस मनुष्य लोक में एक साधारण एवं वृद्ध भक्त के तन में अवतरित होते है , जिनका नाम वे प्रजापिता ब्रह्मा रखते है I
                प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ही परमात्मा शिव मनुष्यात्माओं को पिता शिक्षक तथा सद्गुरु के रूप में मिलते है और सहज गीता ज्ञान तथा सहज राजयोग सिखाकर उनकी सद्गति करते है अर्थात उन्हें जीवन मुक्ति देते है I
                   शंकर  द्वारा कलियुगी सृष्टि का महाविनाश 
       कलियुग के अंत में प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सतयुगी देवी सृष्टि कि स्थापना के साथ परमपिता परमात्मा शिव पुराणी असुरी सृष्टि के महाविनाश कि तयारी भी शुरू करा देते है परमात्मा शिव शंकर के द्वारा विज्ञानं गर्वित तथा विपरीत बुद्दि अमेरिकन लोगो तथा यूरोपवासियों (यादवो) को प्रेर कर उन द्वारा एटम और हाइड्रोजन बम और मिसाईल्स तैयार करते है जिन्हें कि महाभारत में मुसल अथवा ब्रह्मास्त्र कहा गया हैI इधर वे भारत में भी देह-अभिमानी धर्म-भृष्ट तथा विपरीत बुद्दि वाले लोगो ( जिन्हें महाभारत कि भाषा में "कौरव" कहा गया है ) को पारस्परिक युद्द के लिए प्रेरते है I
                                   विष्णु द्वारा   पालना 
     विष्णु कि चार भुजाओ में से दो भुजाए श्री नारायण की और दो भुजाए श्री लक्ष्मी की प्रतिक है "शंख" उनका पवित्र वचन अथवा ज्ञान घोष की निशानी है , स्व्दर्शन चक्र आत्मा(स्व) के तथा सृष्टि  चक्र के ज्ञान का प्रतिक हे कमल, पुष्प संसार में रहते हुए अलिप्त तथा पवित्र रहने का सूचक है तथा गदा माया पार अर्थात पञ्च विकारो पार विजय का चिन्ह है I अत: मनुष्यात्माओ के सामने विष्णु चतुर्भुज का लक्ष्य रखते हुए परमपिता परमात्मा शिव समझाते है की एन अलंकारो को धारण करने से इनके रहस्य को अपने जीवन में उतारने से नर "श्री नारायण " और नारी "श्री लक्ष्मी" पद प्राप्त कर लेती है अर्थात मनुष्य दो ताजो वाला देवी या देवता पद प् लेता है एन दो ताजो में से एक ताज तो प्रकाश का ताज अर्थात प्रभा-मंडल है जो की पवित्रता व् शांति का प्रतिक है और दूसरा रत्न -जडित सोने का ताज है जो संपत्ति अथवा सुख का अथवा राज्य भाग्य का सूचक है I
      इस प्रकार परमपिता परमात्मा शिव सतयुगी तथा त्रेतायुगी पवित्र देवी सृष्टि (स्वर्ग) की पालना के संस्कार भरते है जिसके फलस्वरूप ही सतयुग में श्री नारायण तथा श्री लक्ष्मी ( जो की पूर्व जन्म में प्रजापिता ब्रह्मा और सरस्वती थे ) तथा सुर्यवंश के अन्य रजा प्रजा पालन का कार्य  करते है और त्रेतायुग में श्री सीता व् श्री राम और अन्य चंद्रवंशी रजा राज्य करते है I
      मालूम रहे की वर्तमान  समय  परमपिता परमात्मा शिव तथा प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा तथा तीनो देवताओं द्वारा उपर्युक्त तीनो कर्तव्य करा रहे है अब हमारा कर्तव्य है की परमपिता परमात्मा शिव तथा प्रजापिता ब्रह्मा से अपना आत्मिक सम्बन्ध जोड़कर पवित्र बनने का पुरुषार्थ करे  व् सच्चे वैष्णव बने मुक्ति और जीवन मुक्ति के ईश्वरीय जन्म सिद्द अधिकार के लिए पूरा पुरुषार्थ करे I

No comments:

Post a Comment