मीठ्ठे बच्चे : " ईस शरिर रुपी रथ पर विराजमान आत्मा रथी है, रथी समझकर
कर्म करो तो देह- अभिमान छुट जायेगा ".
प्रश्न : बाप के बात करने का ढंग मनुष्यो के ढंग से बिल्कुल ही निराला है, कैसे ?
उत्तर : बाप ईस रथ पर रथी होकर बात करते है और आत्माओ से ही बात करते है ।
शरिरो को नही देखते । मनुष्य न तो स्वयं को आत्मा समझते और न आत्मा से बात करते
तुम बच्चो को अब यह अभ्यास करना हौ किसी भी आकारी वा साकारी चिञ को
देखते भी नही देखो । आत्मा को देखो और एक विदेही को याद करो ।
गीत : तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो तुम ही...
धारना के लिए मुख्य सार :
१) सतोप्रधान संन्यास करना है , इस पुरानी दुनिया में रहते इससे ममत्व मिटा देना है ।
देह सहित जो भी पुरानी चिजे है उनको भुल जाना है ।
२) अपना बुद्धी योग उपर लटकाना है । किसी भी चिञ वा देहधारी को
याद नही करना है । एक बाप का ही सिमरण करना है ।
वरदान : कल्याणकारी युग में स्वयंम का और सर्व का कल्याण करने वाले प्रक्रृति जित वा
माया जित भव.
स्लोगन : न्यारे , प्यारे होकर कर्म करने वाले ही संकल्पो पर सेकंड मे फ़ुल स्टोप लगा सकते है ।
ब्रह्माकुमार भगवान भाई ,ब्रह्माकुमारीज ,माउंट आबू राजस्थान (भारत) 5000 स्कूलों और 800 कारागृह (जेलों) में नैतिक मूल्यों का पाठ पढ़ाकर इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज है
Thursday, November 11, 2010
मीठे बच्चे - तुम सच्चे-सच्चे राजऋषि हो, तुम्हारा कर्तव्य है तपस्या करना, तपस्या से ही पूजन लायक बनेंगे''
मीठे बच्चे - तुम सच्चे-सच्चे राजऋषि हो, तुम्हारा कर्तव्य है तपस्या करना, तपस्या से ही पूजन लायक बनेंगे''
प्रश्न: कौन-सा पुरूषार्थ सदाकाल के लिए पूजने लायक बना देता है?
उत्तरः- आत्मा की ज्योति जगाने वा तमोप्रधान आत्मा को सतोप्रधान बनाने का पुरूषार्थ करो तो सदाकाल के लिए पूजन लायक बन जायेंगे। जो अभी गफ़लत करते हैं वह बहुत रोते हैं। अगर पुरूषार्थ करके पास नहीं हुए, धर्मराज की सज़ायें खाई तो सज़ा खाने वाले पूजे नहीं जायेंगे। सज़ा खाने वाले का मुँह ऊंचा नहीं हो सकता।
धारणा के लिए मुख्य सारः-
1) जैसे बाप सदा बच्चों के प्रति सुखदाई है, ऐसे सुखदाई बनना है। सबको मुक्ति-जीवनमुक्ति का रास्ता बताना है।
2) देही-अभिमानी बनने की तपस्या करनी है। इस पुरानी छी-छी दुनिया से बेहद का वैरागी बनना है।
वरदान: निश्चय की अखण्ड रेखा द्वारा नम्बरवन भाग्य बनाने वाले विजय के तिलकधारी भव
जो निश्चयबुद्धि बच्चे हैं वह कभी कैसे वा ऐसे के विस्तार में नहीं जाते। उनके निश्चय की अटूट रेखा अन्य आत्माओं को भी स्पष्ट दिखाई देती है। उनके निश्चय की रेखा की लाइन बीच-बीच में खण्डित नहीं होती। ऐसी रेखा वाले के मस्तक में अर्थात् स्मृति में सदा विजय का तिलक नज़र आयेगा। वे जन्मते ही सेवा की जिम्मेवारी के ताजधारी होंगे। सदा ज्ञान रत्नों से खेलने वाले होंगे। सदा याद और खुशी के झूले में झूलते हुए जीवन बिताने वाले होंगे। यही है नम्बरवन भाग्य की रेखा।
स्लोगन: बुद्धि रूपी कम्प्यूटर में फुलस्टॉप की मात्रा आना माना प्रसन्नचित रहना।
प्रश्न: कौन-सा पुरूषार्थ सदाकाल के लिए पूजने लायक बना देता है?
उत्तरः- आत्मा की ज्योति जगाने वा तमोप्रधान आत्मा को सतोप्रधान बनाने का पुरूषार्थ करो तो सदाकाल के लिए पूजन लायक बन जायेंगे। जो अभी गफ़लत करते हैं वह बहुत रोते हैं। अगर पुरूषार्थ करके पास नहीं हुए, धर्मराज की सज़ायें खाई तो सज़ा खाने वाले पूजे नहीं जायेंगे। सज़ा खाने वाले का मुँह ऊंचा नहीं हो सकता।
धारणा के लिए मुख्य सारः-
1) जैसे बाप सदा बच्चों के प्रति सुखदाई है, ऐसे सुखदाई बनना है। सबको मुक्ति-जीवनमुक्ति का रास्ता बताना है।
2) देही-अभिमानी बनने की तपस्या करनी है। इस पुरानी छी-छी दुनिया से बेहद का वैरागी बनना है।
वरदान: निश्चय की अखण्ड रेखा द्वारा नम्बरवन भाग्य बनाने वाले विजय के तिलकधारी भव
जो निश्चयबुद्धि बच्चे हैं वह कभी कैसे वा ऐसे के विस्तार में नहीं जाते। उनके निश्चय की अटूट रेखा अन्य आत्माओं को भी स्पष्ट दिखाई देती है। उनके निश्चय की रेखा की लाइन बीच-बीच में खण्डित नहीं होती। ऐसी रेखा वाले के मस्तक में अर्थात् स्मृति में सदा विजय का तिलक नज़र आयेगा। वे जन्मते ही सेवा की जिम्मेवारी के ताजधारी होंगे। सदा ज्ञान रत्नों से खेलने वाले होंगे। सदा याद और खुशी के झूले में झूलते हुए जीवन बिताने वाले होंगे। यही है नम्बरवन भाग्य की रेखा।
स्लोगन: बुद्धि रूपी कम्प्यूटर में फुलस्टॉप की मात्रा आना माना प्रसन्नचित रहना।
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